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मुझे गिराने वालों यह नहीं सोचा गिरा तो मसअला बन खड़ा हो जाऊंगा

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आनन्द पुरोहित

(त्वरित टिप्पणी- अक्षय कांति बम प्रसंग)

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं, मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा ।।

वसीम बरेलवी के इस उम्दा शेर को ताजा सियासती दौर में आज इन्दौर की सरजमीं पर उस समय रूबरू देखा जब एक अप्रत्याशित, सनसनीखेज और हैरान करने वाले घटना क्रम में कांग्रेस के घोषित और अधिकृत प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने बतौर लोकसभा प्रत्याशी अपना दाखिल नामांकन वापिस ले लिया।…. सियासी हलकों में कुछ थाना कोर्ट कचहरी के वाकयात को लेकर सोशल साइट्स पर टीका टिप्पणी का दौर चल पड़ा वहीं स्वयं बम को उनकी ही पार्टी के कर्ताधर्ताओं द्वारा आर्थिक एवं मानसिक प्रताड़ना के शगुफे भी उजागर होने लगे। उंगली कांग्रेस पार्टी के ही प्रदेश शीर्ष नेतृत्व और उनके इर्दगिर्द बैठे नासमझ कुंठित और आत्ममुग्धता से ग्रस्त शातिर सलाहकारों की कारगुजारियों को भी इंगित करती नजर आई जिनके कुटिल प्रयासों की परिणिति पार्टी में इस हादसे के रूप में हुई

।….. हालांकि इस सनसनीखेज वाकये के पहले अक्षय कांति बम जीत के प्रति आश्वस्त नहीं होते हुए भी पूरे दम से किला लड़ाने का मन बना चुके थे और उसके लिए प्रयासरत भी थे।… पार्टी संगठन, तथाकथित आत्मकुठिंत पदाधिकारियों और वरिष्ठ कहे जाने वाले कार्यकर्ताओं का दिल से सपोर्ट नहीं मिलने के बावजूद….. संग चलने को तेरे कोई हो ना हो तैयार अकेला चल चला चल…. की रणनीति बना शनै शनै लक्ष्य की और बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। …… अपनों का साथ नहीं मिलने पर भी हौसला कम नहीं किया था…. परन्तु उपर बैठे ये जो बिलावजह अड़ंगा लगातार लगा रहे थे उससे आहत हो गये थे। सामने मुकाबिल पार्टी के घनघोर रूप से मंझे हुए सियासी खेल के सिद्धहस्त नेताओं ने उनकी इस ऊंहापोह की स्थिति को भांपा और उसका भरपूर लाभ ले कांग्रेस के लिए इस वाकये को अंजाम दे दिया।

….. बात किसी और के नहीं कांग्रेस पार्टी और उसके शीर्ष नेतृत्व को ही समझने की है…. और उन चेहरों को पहचानने की है जो उनके पास कुछ और गैरों के पास कुछ और कहते अंदरुनी सूचना पहुंचा देते हैं। हालांकि मुकाबले में प्रत्याशी इतना भी दमदार नहीं था परन्तु वहां संगठन और पार्टी के नेता चाहे अनमने मन से ही एक जुट हो शीर्ष केन्द्रीय नेतृत्व के लक्ष्य चार सौ पार को साधने में जुटे हुए है और इधर ये कांग्रेसी अपनी इतनी प्रतिष्ठा खोने के बावजूद साजिशे रचने रचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

….इस मामले में पल्ला झाड़ते कह सकते हैं कि 307 वाला मामला था परन्तु वो तो…. दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छा है ….वाली ही बात होगी…. इस मामले में तो कहा जा सकता कि मौका हाथ से निकल गया…. परन्तु अभी इश्क में इम्तहान और भी है ….वाली बात को नज़र अंदाज़ नहीं करते इन आत्मकुठित सलाहकारों की साज़िश भरी सलाहो से प्रदेश और केंद्र के शीर्ष पर बैठे नेता सतर्क हो जाएं, तो मौके ही मौके है… अन्यथा आखिरकार जब आंख खुले तो यही कहते रहना कि …. हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था।।

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