पुष्पा गुप्ता
_सिपाही की सफाई को अनसुना करते हुये दरोगा ने लाठी को गौर से देखा. पुलिस सर्विस में आये हुये इतने वर्ष हो गये थे, मगर अपनी काठी को छोड़ कर उसने लाठी को कभी गौर से नहीं देखा था।_
……………….
बापू अचानक थाने आये। उनको पकड़कर लाया नहीं गया था, वे खुद आये थे। जब थाने में आ गये तो थानेदार उनको देखकर बहुत अचंभित हुआ। उसने बापू को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा बापू के माथे पर पसीने की बूंदें ढलक रहीं थीं।
दरोगा ने बापू को बैठ जाने का आग्रह किया। उनके लिये तुरंत पानी लाने का आदेश दिया।( जानता हूँ आप इस बात पर विश्वास नहीं कर रहे होंगे, पर दरोगा ने ऐसा किया।)
‘कैसे आना हुआ बापू!’ दरोगा ने बेहद नर्म लहजे में पूछा।(जी यह सच है)
‘मेरी लाठी नहीं मिल रही है!’ बापू बोले।
‘लाठी!’ दरोगा उचक कर बोला।
‘हां,मेरी लाठी चोरी हो गई!’ बापू ने धीरे से कहा।
यह सुनकर दरोगा ठठा कर हंसा। उसके साथ-साथ थाने के उपस्थित सिपाही भी हँसे।पर बापू शांत बैठे रहे।
‘क्या बापू! यहां कितनी बड़ी-बड़ी वारदातों की लोग रिपोर्ट लिखवाने आते हैं और एक आप हैं कि लाठी को लेकर आ गये!’ दरोगा अपनी हँसी को काबू करते हुये बोला।
‘लेकर कहां आया हूँ भाई..’ बापू ने अपने हिसाब से सफाई दी ।
बापू का यह कहना ही था कि दरोगा की हँसी छूट गयी। पर बापू का लिहाज करते हुये जल्दी ही उस पर काबू पा लिया।(सच में)
‘ओ बापू आप कितने भोले हैं!’ दरोगा एकटक बापू को देखता रहा।
‘आप घर जाइये! आपकी लाठी मिलते ही आपको सूचित किया जायेगा!’
‘मगर आपने मेरी रपट नहीं लिखी!’
‘आप ने कह दिया,समझो हो गई! अब आप घर जाएं।’ दरोगा ने मुस्करा कर कहा।(सच मे)
बापू उठ कर जाने लगे। सहसा उन्हें कुछ याद आया। वह पुनः बैठ गये।
‘ये बताइये !आप मेरी लाठी को पहचानेंगे कैसे!’
‘पहचानना क्या! सभी लाठी एक सी तो होती हैं!’ दरोगा ने लापरवाही से जवाब दिया।
‘न, सभी लाठी एक सी नहीं होतीं!’ बापू दो टूक बोले।
दरोगा अपनी कुर्सी पर कसमसाया।
‘अगर सभी लाठी एक सी हो भी जाएं तब भी एक सी नहीं होगीं!’ बापू आगे बोले।
दरोगा को बापू की यह बात समझ में न आयी और न ही उसने समझने की चेष्ठा की। उसने बापू के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखा। बापू का चेहरा उसे दृढ़ लगा।मुस्कुराते हुये बोला,’ लाठी की कोई फोटो है!
‘बापू ने एक फोटो मेज पर रख दी।
‘वाह बापू! पूरी तैयारी से आये हैं!’
बापू शांत बैठे रहे।
‘अच्छा, अब आप जाइये!’ फोटो को देखते हुये दरोगा बोला।
बापू उठकर जाने लगे।
‘अरे आजकल का माहौल ठीक नहीं चल रहा। आपके साथ सिपाही को भेजे देता हूं।’ दरोगा ने चिंता प्रकट की।(सच में)
‘मैं आजकल के नेताओं की तरह भयभीत नहीं हूँ भाई!’ बापू ने हाथ हिलाकर ऐसा करने से मना किया।
‘और बापू हो सके तो अंदर ही रहें! आजकल बाहर खतरा बहुत है।’ बापू बिना बोले चले गये।
बापू के जाने के बाद दरोगा कुछ सोच में पड़ गया।
‘सर यहां सरकार हमारे बम्बू किये है, अब इनकी लाठी कहां से ढूंढी जाये। एक सब इंस्पेक्टर बोला।
‘हूं…’ दरोगा अपना सर खुजलाते थाने में इधर-उधर देखने लगा।
‘अरे यार! कोई भी लाठी दे दो जो इससे मिलती हो!’ दरोगा ने यह कहते हुये वह फोटो सब इंस्पेक्टर के सामने बढ़ा दी।
सब इंस्पेक्टर ने थाने में सभी साथियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया ।(सच में) संजोग से एक लाठी फोटो से मिलती जुलती पायी गयी।
‘सर ये रही बापू की लाठी!’
लाठी देखकर दरोगा खुशी से उछल पड़ा।(सही में) फिर गम्भीर होकर पूछा ,
‘अगर बापू पहचान गये तो!’
‘आपको अलग लग रही!’ सब इंस्पेक्टर ने पूछा।
‘न! कतई नहीं!’ दरोगा अपनी खुशी को छुपाते हुये बोला।
‘अरे सर सवाल ही नहीं उठता! इस उम्र में नज़रें इतनी तेज नहीं होती!’ सब इंस्पेक्टर ने बहुत विश्वास के साथ कहा।
दरोगा ने राहत की सांस ली।(सच में) दरोगा ने तय किया वह खुद ही बापू के पास लाठी लेकर जाएगा।मगर वह वर्क लोड के कारण ऐसा कर न सका। तीसरे दिन बापू थाने खुद ही आ गये।
‘आईये बापू!’ दरोगा ने बापू का अभिवादन किया।(सच में)
कुछ ही देर में बापू के सामने लाठी हाजिर थी।
‘यह लीजिये बापू आप की लाठी। बहुत मेहनत करनी पड़ी।’ दरोगा लाठी बापू के हाथ मे थमाते हुये बोला।
बापू ने लाठी को जैसे ही हाथ मे लिया। वह उठ खड़े हुये।
‘यह मेरी लाठी नहीं है!’
‘बापू यह आपकी ही लाठी है।’ दरोगा भावशून्य होकर बोला।
‘यह मेरी हो ही नहीं सकती”
‘आप ही की है बापू!’ दरोगा ने लाठी के पास उसकी फोटो दिखाते हुये कहा।
‘न’ बापू दृढ़ स्वर में बोले।
‘अच्छा! आपको कैसे पता! पुलिस आप हैं कि हम!’
‘मैंने आप से कहा न यह मेरी लाठी नहीं है। जब मिल जाये तो कृपया सूचित करियेगा। मैं पुनः आ जाऊंगा।’
बापू उठकर जाने लगे।
‘आप कैसे कह सकते हैं कि यह आप की लाठी नहीं है! दरोगा ने पूछा।
‘जिसमें खून का धब्बा लगा हो, वह मेरी लाठी हो ही नहीं सकती।’ बापू उठे और जाने लगे।
,’खून का क्या है! अभी धुल जाएगा।लाठी चकाचक हो जाएगी’ सब इंस्पेक्टर उत्साहपूर्वक बोला।
पर बापू कुछ न बोले।
‘बापू लेते जाइये! आपको चलने में दिक्कत होगी!’ दरोगा जोर से बोला।
‘ आप लोगों की तरह मैं नहीं हूं! बिन लाठी के मैं चल लूंगा। धन्यवाद!’
और बापू चले गये।
देने से पहले पोंछ तो लेते!’ बापू के जाने के बाद दरोगा ने सिपाही से कहा।(सच में)
‘सर ये लाठीचार्ज के बाद ही आ गये। टाइम ही नहीं मिला!’
सिपाही की इस सफाई को अनसुना करते हुये दरोगा ने लाठी को गौर से देखा। पुलिस सर्विस में आये हुये इतने वर्ष हो गये थे, मगर अपनी काठी को छोड़ कर उसने लाठी को कभी गौर से नहीं देखा था। (चेतना विकास मिशन)