अग्नि आलोक
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राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य*

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*1. एक जैकारे का सवाल है बाबा!*

यह तो विपक्ष वालों की बहुत ही गलत बात है। राहुल गांधी और विपक्ष के दूसरे छोटे–बड़े नेता‚ देश तो देश, विदेश में जाकर भी अपने मन की बात भी करेंगे और फिर इसकी शिकायत भी करेंगे कि सरकारी पार्टी उन्हें भारत–विरोधी कहती है। एक तो मन की बात पर मोदी जी के पेटेंट की चोरी और ऊपर से देशद्रोही नहीं कहने देने की सीना जोरी। तीसरी पारी में मोदी जी बैसाखिया गए हैं तो क्या‚ यह नहीं चलने देंगे।

वैसे तो देश में भी‚ पर विदेश में तो खास तौर पर‚ अपने मन की बात करने का पेटेंटशुदा अधिकार सिर्फ मोदी जी का है। अब मोदी जी की मर्जी है कि अपने अधिकार का उपयोग कैसे भी करें। देश में हरेक सरकारी कार्यक्रम को विपक्ष को पीटने के लिए अपने पार्टी कार्यक्रम में बदल दें। अब के विपक्ष को ही नहीं‚ अपने राजनीति में आने से पहले तक के अपने विरोधियों को सरकारी कार्यक्रमों में जम कर लठियाएं। नेहरू–वेहरू को आए दिन लतियाएं। 

विदेश में जाकर इसके किस्से सुनाएं कि कैसे उनका राज आने से पहले तक‚ भारत में कुछ भी नहीं था। न खाने को अनाज था। न पहनने को कपड़े थे। न रहने को घर थे। और तो और, शौचालय तक नहीं थे। भारत के लोग दुनिया में कहीं जाते भी थे‚ जो शर्मिंदगी से सिर ही नहीं उठाते थे। सिर धुन कर पछताते थे कि हम किस देश में पैदा हो गए। जरूर यह हमारे पिछले जन्म के बुरे कर्मों का फल होगा कि हम भारत में पैदा हो गए। या और कुछ भी। जैसे अब तो नाले की गैस का बेनिफिट लेकर‚ भारत में लाखों–करोड़ों नौजवान‚ चाय का स्वरोजगार कर रहे हैं और अपने साथ–साथ दूसरों की भी बेरोजगारी मिटा रहे हैं! 

पर विपक्ष वाले मोदी जी के पेटेंटेड अधिकार पर कैसे मुंह मार सकते हैं। देश में न भी सही‚ कम से कम विदेश में तो उन्हें भी मोदी जी के मन की बात ही करनी चाहिए। और बाहर वालों के सामने देश की बात तो उन्हें भूले से भी नहीं करनी चाहिए। और प्लीज कोई यह झूठा बहाना न बनाए कि विदेश में विपक्षी देश की बात नहीं करें, तो क्या करेंॽ जैकारा अलाउड है‚ विपक्षी जैकारा लगाएं। मोदी जी का जैकारा लगाएं और राष्ट्रभक्ति का सर्टिफिकेट पाएं। एक जैकारे का सवाल है बाबा!

**********

*2. अब की बार माफ़ी मंगवाओ सरकार*

संशयवादियों को भी अब तो मानना ही पड़ेगा कि अपने भारत में प्लेन डेमोक्रेसी नहीं, डेमोक्रेसी की मम्मीजी चल रही हैं। आखिर, डेमोक्रेसी की क्या पहचान है? डेमोक्रेसी में सरकार होती है, तो पब्लिक भी होती है। पब्लिक संतुष्ट नहीं होती है, तो शिकायत करती है। पब्लिक शिकायत करती है, तो सरकार सफाई देती है। फिर भी पब्लिक संतुष्ट नहीं होती है, तो सरकार और, और सफाई देती है। और सफाई से काम नहीं चले तो, सरकार माफी मांगती है। पर वह प्लेन डेमोक्रेसी में होता है। डेमोक्रेसी की मम्मीजी के यहां नहीं।

डेमोक्रेसी की मम्मीजी के यहां भी सरकार और पब्लिक, होते तो दोनों ही हैं। पर पब्लिक संतुष्ट नहीं होती है और शिकायत करती है, तो सरकार सफाई नहीं देती है, बल्कि पब्लिक को समझाती है कि उसकी शिकायत गलत है। उसे गलतफहमी हो गयी है। सचाई वह नहीं है, जो उसे लग रहा है कि सचाई है। उसे देश यानी सरकार के विरोधियों ने भ्रमित किया है, वगैरह। इतना समझाने के बाद भी पब्लिक सरकार की दिखाई सच्ची सच्चाई नहीं देखती है, तो सरकार उसकी आंखों में उंगली डालकर, दूसरों का खतरा दिखाती है। फिर भी पब्लिक सरकार का दिखाया वैकल्पिक यथार्थ नहीं देखती है, तो सरकार उसे अपना रौद्र रूप दिखाती है। अब सरकार पब्लिक से माफी मंगवाती है और उसके बाद ही उसका रौद्र रूप शांत होता है। 

तमिलनाडु में अभी एकदम दो-चार रोज पहले ही ठीक ऐसा ही हुआ है। सरकार ने अपना रौद्र रूप दिखाकर पब्लिक से माफी मंगवायी है। डेमोक्रेसी की मम्मी ने अपनी मम्मियत दिखाई है।

हुआ यह कि तमिलनाडु में मंझली सरकार यानी निर्मला ताई ने दरबार लगाया। पर तमिलनाडु ठहरा विरोधियों का इलाका। ताई ने लगाया दरबार और दरबार में पहुंचने वालों को लगा सरकार से दो-चार होने का मौका। लगाना था जैकारा और लगे पब्लिक बनकर शिकायतें करने। कोई होटल वगैरह की चेन है अन्नपूर्णा ग्रुप, उसके मालिक ने सरकार के सामने जीएसटी का रोना, रोना शुरू कर दिया। रोने तक ही रहता तो फिर भी गनीमत थी, अगला यह गिनाने पर उतर आया कि सरकार की जीएसटी कितनी बेतुकी है। मसलन क्रीम बन जिन चीजों से बनता है, उन सब पर जीएसटी है 5 फीसद, पर उनसे बने क्रीम बन पर जीएसटी है 18 फीसद। निर्मला ताई ने उसकी बातों को मजाक में उड़ाने की कोशिश की। पर बंदे के सिर पर तो डेमोक्रेसी की पब्लिक सवार थी, सो नहीं माना और अपनी बात पर अड़ा रहा। पर बात खत्म होते ही उसे सरकार का रौद्र रूप नजर आने लगा। रात भर डरावने सपनों ने परेशान किए रखा।

अगले दिन मंझली सरकार ने उसे, माफी मांगने का मौका दिया, जिससे सरकार का रौद्र रूप शांत हो सके। कारोबारी इतना डर गया कि उसने दौड़कर सरकार के चरण गहे और अपनी जुर्रत के लिए माफी मांगी। तब सरकार ने अपना रौद्र रूप छोड़ा।

पर इसके बाद भी कुछ कसर रह गयी। दरबार पब्लिक के बीच था। पब्लिक बनकर कारोबारी ने बाकी पब्लिक के सामने शिकायत की थी। और माफी मांगी बंद दरवाजे के पीछे। सरकार को इसका मलाल फिर भी रह गया कि शिकायत कर के उसकी शान में गुस्ताखी भरे दरबार में की गयी थी। माफी भी भरे दरबार में ही होनी चाहिए थी। जंगल में मोर नाचा, किसी ने ना देखा। पर आसान था। रौद्र रूप के सामने माफी मांगने का मार्मिक दृश्य वीडियो कैमरे में कैद हुआ ही था। बस उसे सार्वजनिक कर दिया गया। माफी का वीडियो ऐसा वायरल हुआ, ऐसा वायरल हुआ कि दरबार में हुई गुस्ताखी पर उससे टनों मिट्टी पड़ गयी। माफी मंगवाने वाली सरकार के तौर पर, मंझली सरकार की शान और भी बढ़ गयी।

पर किस्सा इतने पर भी खत्म नहीं हुआ। हमने शुरू में ही कहा, विरोधियों का इलाका था। वहां अब भी डेमोक्रेसी ही चल रही थी, मम्मीजी का उतना जोर नहीं चलता था। हल्ला मच गया कि ये कैसी सरकार है, जो पब्लिक से माफी मंगवा रही है। लगी जिंदाबाद-मुर्दाबाद होने। खैर! मंझली सरकार का तो क्या बिगडऩा था, पर माफी का वीडियो जारी करने के लिए एक दरबारी कर्मचारी की नौकरी चली गयी। यानी माफी मंगवाने तक तो ठीक था, पर उसका वीडियो बनाना और उसे वायरल कराना ज्यादा हो गया। सरकार पब्लिक से माफी मंगवाए, पब्लिक माफी मांगे, यहां तक तो ठीक है, पर इसे बाकी पब्लिक के लिए सबक बनाने का टैम अभी नहीं आया है। मोदी जी के तीसरे कार्यकाल में तो और भी नहीं, जहां सरकार तो है, पर परायी बैसाखियों पर टिकी है। कौन सी बैसाखी कब खिसक जाए, कोई नहीं कह सकता।

पर सरकार तो फिर भी सरकार है। और डेमोक्रेसी की मम्मी जी फिर भी मम्मी जी हैं। पब्लिक से माफी सिर्फ निर्मला ताई ही नहीं मंगवा रही हैं। पब्लिक से माफी मंगवाने में आदित्यनाथ, किसी ताई-वाई से पीछे नहीं हैं। गोरखपुर में दीनदयाल विश्वविद्यालय में एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, योगी जी ने एलान कर दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद को मस्जिद कहना दुर्भाग्यपूर्ण है। यानी जो मस्जिद को मस्जिद बताएगा, कसकर रगड़ा जाएगा। अब मस्जिद को मस्जिद कहने की जुर्रुत कौन करेगा? अब बाबरी मस्जिद को मस्जिद कहने की जुर्रत कौन करता है? और अब तक जिन्होंने मस्जिद को मस्जिद कहने की जुर्रत की भी है, वे भी फौरन माफी मांग लें, तो माफी शायद मिल भी जाए। वर्ना बाद में न जाने क्या हो।

मुसलमानों, दलितों और औरतों को तो खैर हर वक्त अपने होने की ही माफी मांगने की जरूरत होती है और विपक्ष वालों को भी। उत्तराखंड के बाद अब हिमाचल में भी मुसलमान, अपनी मस्जिदों के होने के लिए माफी मांग रहे हैं और देश भर में बहुत सारी संपत्तियां वक्फ किए जाने की भी। और अपने निजी कानूनों पर चलने की भी। पब्लिक के लिए माफियां ही माफियां हैं, मांग तो लें।

माफियां मंगवाने का यह सिलसिला तब तक रुकने वाला नहीं है, जब तक पब्लिक इस सरकार से ही माफी नहीं मांग लेती है – अब, दफा हो भी जाओ!    

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*3. ताजमहल में लीक!*

अब बोलें क्या कहते हैं मोदी जी के राज में लीक का शोर मचाने वाले? कितना शोर मचाया था, जब अयोध्या में राम मंदिर पहली ही बारिश में लीक करने लगा था। राम मंदिर में भी भ्रष्टाचार से लेकर, एक हजार साल के दावे और एक साल का भी इंतजाम नहीं तक, न जाने क्या-क्या नहीं कहा था। और जब नई-दिल्ली में प्रगति टनल में पानी भर गया और आखिरकार सात सौ करोड़ रूपये की टनल को पूरा उखाडक़र दोबारा बनाने का फैसला करना पड़ा था, तब बंदों ने खा गए, खा गए का कितना हंगामा किया था। सिर्फ इसलिए कि टनल का उद्घाटन बेचारे मोदी जी ने किया था और उन्होंने टनल को विज्ञान का चमत्कार भी बताया था, भाई लोग उनके हाथ लगाने में पनौती खोजने में नहीं चूके थे। और फिर जब मोदी जी की बनायी नयी संसद ने लीक करना शुरू किया और पानी जमा करने के लिए प्लास्टिक की बाल्टियों की सरकारी खरीद करनी पड़ी, तब तो पनौती सूंघने वालों की मौज ही आ गयी। शोर मचा दिया कि मोदी जी का हाथ लगा, तो लीक की गारंटी है। इमारत में हाथ लगा दें, तो इमारत के लीक करने की गारंटी है और अगर कोई परीक्षा-वरीक्षा करा दें, तो पेपर लीक की गारंटी है। पर अब विरोधी क्या कहेंगे — अब तो मोदी जी के हाथ लगाने से सैकड़ों साल पहले बना ताजमहल भी लीक कर रहा है।

जी हां! इस बारिश ने ताजमहल को भी लीक करा दिया। पुरातत्व सर्वे वालों की मानें, तो ताजमहल का मुख्य गुंबद लीक करने लगा है। बस इसका पता अभी नहीं लगा कि गुंबद रुक-रुक कर लीक कर रहा है, या लगातार लीक किए जा रहा है। हां! इतना पक्का है कि पानी रिसने से लीक हो रहा है और इमारत के लिए कोई खतरा नहीं है। खैर! खतरा तो संसद भवन के लिए भी किसने देखा था, फिर भी चंद बाल्टी पानी आने से ही पनौती-पनौती का शोर तो मच गया। हां! एक बात मोदी जी के लिए जरूर अच्छी हो गयी कि अब चाहे कोई भी इमारत लीक करे, कोई मोदी जी को इसका उलाहना नहीं दे सकेगा कि साढ़े तीन सौ साल पुराना ताजमहल तो लीक नहीं करता ; फिर मोदी जी राज के वास्तु में ही क्या खास है,  जो भी बनाते हैं, लीक करने लगता है। बारिश की भी शिकायत झूठी है, उसी बारिश में ताजमहल भी तो खड़ा है, पर ताजमहल तो लीक नहीं करता है! पर वो दिन लद गए, जब ताजमहल लीक नहीं करता था। इस बार की बारिश में तो ताजमहल भी लीक कर गया, फिर मोदी जी के संसद भवन या राम मंदिर के लीक करने पर ही शिकायत क्यों की जाती है?

अब अगर यह देश ताजहमल का लीक होना सहन कर सकता है, तो नयी संसद या नये राम मंदिर के लीक करने पर ही हंगामा क्यों? शाहजहां की इमारत लीक करे तो ठीक और मोदी जी की बनवाई इमारत लीक करे तो भ्रष्टाचार, यह तो कोई बात नहीं हुई। अगर इमारत के लीक होने से ही भ्रष्टाचार की जांच होने लगी, तो फिर शुरूआत क्यों नहीं, शाहजहां के टैम के भ्रष्टाचार से ही हो? भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार है, मुगलों का हो तो और नेहरू वगैरह का हो तो; मोदी जी माफ नहीं सकते हैं। मोदी जी के न खाऊंगा न खाने दूंगा, में न खाने दूंगा खासतौर पर पुराने टैम के खाने वालों के लिए है। और बात निकलेगी तो पीछे दूर तक जाएगी। मोदी जी शाहजहां से एक-एक पाई का, टपके की एक-एक बूंद का हिसाब लेकर रहेंगे। ताजमहल को मंदिर बनवाने का संघ परिवारियों का प्रोग्राम कैंसल! अकेले राम मंदिर ही लीक  क्यों करे ; मंदिर के बराबर में, लीक करने वाला मकबरा भी तो होना चाहिए।        

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर के संपादक हैं।)*

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