अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

वक्त मजदूरों को आवाज़ दे रहा है!

Share

मंजुल भारद्वाज 

सदियों दासता, सामन्तवाद से संघर्ष करने के बाद दुनिया में मज़दूरों ने  1 मई 1886 को अपने अस्तित्व का परचम फ़हराया. महज 107 साल में ही पूंजीवाद ने अपने पसीने की महक से विश्व का निर्माण करने वाले मेहनतकश को नेस्तानाबूद कर दास बनाने का षड्यंत्र रच दिया. 1990 में भूमंडलीकरण के सुंदर शब्द में विश्व के मज़दूरों को दफ़न कर दिया. 

निजीकरण के नाम पर एक चेहरा विहीन फेसलेस अर्थ व्यवस्था को लागू किया, अदालतों ने दुनिया के 10 प्रतिशत अमीरों के  मानव अधिकार की रक्षा के नाम पर  मजूदरों के संघर्ष हथियार ‘हड़ताल’ पर कुठाराघात किया. मज़दूरों के संघर्ष को महानगरों के चिड़ियाघर की तरह एक नुमाइश बना दिया. पूंजीवादी मीडिया ने मज़दूरों को अपने समाचारपत्रों और चैनल से गायब कर दिया. सर्वहारा की खेवनहारी वामपंथी पार्टियां सोवियत संघ के विघटन के सदमें से आज तक नहीं सम्भल पाई हैं ना ही सम्भलना चाहती हैं. यूनियन मज़दूरों में राजनैतिक चेतना जगाने में नाकाम हैं. 

निजीकरण ने संगठित मजदूरों को दर दर की ठोकरे खाने वाला भिखारी बना दिया और यूनियन की औकात  ठेकेदार को धमकाने की भी नहीं रही, मांगे मनवाना तो दूर की बात. सर्वहारा को मुक्ति दिलाने वाली पार्टियां मृत हैं. 

पर जब अँधेरा घना हो जाता है तभी सवेरे की पौ फटती है. आज मज़दूरों को स्वयं अपनी राजनैतिक चेतना की लौ जलानी है. अपने संख्या बल को संगठित कर, लोकतंत्र में अपनी संख्या बल के बल पर सत्ता पर काबिज़ हो,संसद में मज़दूर के हितों को बहाल करना हैं. अहिंसा के,सत्य के मार्ग पर चलते हुए भारतीय संविधान का संरक्षण करने का वक्त है आज. आज वक्त मजदूरों को आवाज़ दे रहा है,’हम भारत के लोग’ की परिभाषा को सार्थक करने की चुनौती दे रहा है, संसद के मार्ग पर चलो,अपना मुक्ति गीत खुद लिखो !

इंक़लाब ज़िंदाबाद!

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें