कृष्ण मुहम्मद
1967 मे शुरू हुआ यह आंदोलन, चारु मजूमदार, जंगल संथाल, क़ानू सान्याल, और तमाम जैसे लोगों के शहादत का प्रतीक है यह दिन…
1967 में भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन ने नई जवानी के युग में प्रवेश किया था जब दार्जिलिंग के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी में किसानों ने शोषण के विरुद्ध हथियार उठाया और ज़ालिम ज़मींदारों व उनकी संरक्षक पुलिस के रक्त से नक्सलबाड़ी की धरती लाल कर दी ।
देश भर के क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट इस महान जनयुद्ध के समर्थन में कूद पड़े और कम्युनिस्ट आंदोलन ने बुढ़ापे वाले संशोधनवादी ख्रुश्चेवी आवरण को त्याग कर माओ त्से तुंग विचार की नई क्रांतिकारी युवावस्था को धारण किया था नक्सलबाड़ी की इन घटनाओं पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने तुरंत प्रतिक्रिया दी,
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक क्रांतिकारी समूह के नेतृत्व में, ग्रामीण क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष के एक लाल क्षेत्र की स्थापना भारत में हो गई है,
बंगाल का नक्सलबाड़ी गाँव इस महान परिघटना का साक्षी बना l
यही वो दिन था जिसने संघर्षों की बलिवेदी पर कूदने के लिए कॉमरेड चारु मजुमदार के आह्वान पर देश भर के हज़ारों मुक्तिकामी युवाओं को क्रांति की राह में शहादत देने की प्रेरणा दी और एक पूरी पीढ़ी को आंदोलित किया
एक गुमनाम गांव में घटित इस युगांतकारी लड़ाई की खबर देश के कोने-कोने में जंगल की आग की तरह फैल गई । ।
चारु मजुमदार, कानू सान्याल, सौरेन बोस, जंगल संथाल, खोकन मजुमदार, कदमलाल मल्लिक, खूदनलाल मल्लिक, पंजाब राव, शांति मुंडा जैसे क्रांति की आग में तपे-तपाये नेताओं के साथ आ खड़ा हुआ
क्रांति के जोश से छलछला रहे शिक्षित छात्र-नौजवानों का एक नेतृत्वकारी समूह क्रांति की आग में तपकर इस्पात बने मजदूर वर्ग से आये नेमू सिंह, खेमू सिंह, कुरु मुंडा, जोसेफ मुंडा जैसे जुझारू नेतागण,
मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आये नौजवान नेतागण पबित्रपाणि साहा, रंजीत भौमिक, बकुल सेन जैस लोग भी शहीद हुए, और उनके साथ ही राजसत्ता की वाहिनी से लड़ते हुए शहीद हुए त्रिाबेनी कानू, शोभन अली, बड़का मांझी, अग्नू टोप्पो और पटल सिंह जैसे दलित-शोषित वर्ग के वीर योद्धागण ।
8 सितंबर 1968 को होचाई मल्लिक जोत पर सशस्त्र बल के साथ 8 घंटे तक चली भीषण गोलीबारी में वीर क्रांतिकारी नौजवान बाबूलाल विश्वकर्मा, नक्सलबाड़ी आंदोलन में शहीद होने वाले पहले सिपाही बने ।
CPI और CPI(M) के नेतृत्व द्वारा नक्सलबाड़ी का समर्थन करने वाले तमाम क्रांतिकारी नेताओं को पार्टियों से निकाल दिया गया । इसके बाद 22 अप्रैल 1969 को स्वतंत्र, अपने अलग रास्ते पर चलने वाली “भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी” यानी भाकपा-माले का जन्म हुआ,
उसी साल के नवंबर महीने में स्वतंत्र भारत की आतंकग्रस्त कॉग्रेस सरकार ने इस क्रांतिकारी पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया । इसके साथ ही भाकपा(माले) संगठन का जड़ से सफाया करने के लिये राजसत्ता ने अपनी समूची दमनकारी ताकतों को लगाकर खुली छूट दे दी ।
हर दिन, हर रात, हर शहर, हर गांव में राजसत्ता द्वारा प्रायोजित हत्याओं का नंगा नाच चला, इस हत्याकांड में दस हजार से अधिक प्रतिवादकारी छात्र, नौजवान, मजदूर और किसान को शहादत देनी पड़ी ,
पार्टी के राज्य सचिव सरोज दत्त की हत्या कलकत्ते के मैदान में की गई और महासचिव चारु मजुमदार को पुलिस के लॉकअप में मारा गया, समूचे देश में भाकपा(माले) के नेतागण बिना किसी मुकदमे के पूरे दशक तक जेल में कैद रहे,
इस दौरान CPI(M) नेता ज्योति बसु ने पहले अजय मुखर्जी नीत संयुक्त मोर्चा की सरकार में गृहमंत्री रहते हुए और फिर आगे 1977 के बाद बनी वाम मोर्चा की सरकार के मुख्यमंत्री रहते हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन का बर्बर दमन किया, इसके लिए दमनकारी राज्य की हर मशीनरी का इस्तेमाल किया और इस महान जनविद्रोह के साथ ऐतिहासिक गद्दारी करते हुए इसे कुचलने का काम किया ।
महान नक्सलबाड़ी संघर्ष ने आने वाले एक दशक के भीतर इस शोषक – हत्यारी भारतीय राजसत्ता की चूलें हिला दी थी, कहना गलत न होगा , महान नक्सल आन्दोलन , भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन की “जवानी” का आगाज़ था,देखते देखते इस मुक्तियुद्ध की आग बंगाल से होते हुए बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, आंध्र, उड़ीसा तक फैल गई ।
नक्सलबाड़ी की यह आग आज भी देश के असंख्य युवाओं के दिलों में मुक्ति की मशाल जलाने का काम करती है और हमेशा करती रहेगी.
कॉमरेड चारु मजूमदार का एक छोटा सा लेख “सच्चा कम्युनिस्ट होने की अहमियत क्या है” पढ़िए आप भी,
“शोषक वर्ग के खिलाफ संघर्ष कर पाना ही कम्युनिस्ट होने का एक मात्र मापदण्ड नहीं है।सच्चा कम्युनिस्ट कौन है?जो जनता के लिए आत्मत्याग कर सकता है
और यह आत्मत्याग किसी विनिमय की आशा में नहींदो रास्ते हैं,या तो आत्मत्याग या आत्मस्वार्थ।बीच का कोई रास्ता नहीं।चेयरमैन माओ का नारा जनता की सेवा करो का तात्पर्य यही है,
जनता की सेवा किये बिना जनता से प्यार नहीं किया जा सकता।सिर्फ आत्मत्याग कर ही जनता की सेवा की जा सकती है।सच्चा कम्युनिस्ट होने के लिए आत्मत्याग को आत्मसात करना होगा,
जनता की सेवा करने का मतलब है,जनता के स्वार्थ में,क्रांति के स्वार्थ में अवैतनिक काम करना।इस अवैतनिक काम करने के दौरान ही जनता के साथ एकरूप होने की क्रिया होगी,
सिर्फ इसी प्रक्रिया के दौरान जनता से प्यार किया जा सकता है और जनता की सेवा की जा सकती है।इसी प्रक्रिया के दौरान क्रांतिकारियों के रूपांतरण होता है।इसलिए क्रांति का मतलब सिर्फ भौतिक लाभ नहीं है,
क्रांति का मतलब है यही रूपांतरण-अनुभूति का,आदर्श का और विचारधारा का रूपांतरण इसलिए भौतिक लाभ का हिसाब कर क्रांति के लाभ पर विचार करना ठीक नहीं।क्रांति का मतलब है,चेतना का आमूल रूपांतरण।वह कौन सी चेतना है?
जनता की सेवा करने की चेतना,आत्मत्याग से उत्प्रेरित होने की चेतना और जनता से प्यार करने की चेतना।क्रांति का मतलब यही रूपांतरण है-क्या समाज का और क्या व्यक्ति का,
इसलिए 1927 से ही चेयरमैन माओ ने महान चीनी जनता के सामने जनता की सेवा करो का नारा दिया है।महान चीनी जनता ने लंबे अरसे में चेयरमैन का यह नारा आत्मसात किया है,
इसलिए महान चीनी जनता सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति सम्पन्न कर पाई है,सिर्फ यही नहीं,दुनिया की जनता का प्यार हासिल किया है और हासिल किया है विश्वक्रांति का नेतृत्व।”
*कृष्ण मुहम्मद*