लेखक: रहीस सिंह
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप साउथ कैरोलाइना में निकी हेली को उनके गृह राज्य में पराजित कर रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी कमोबेश पक्की कर चुके हैं। ऐसे में अमेरिका की तरफ देखते समय ट्रंप की तरफ देखना जरूरी हो जाता है।
ट्रंप पर फोकस
इसकी कई वजहें हैं। पहली, उनका कार्यकाल अनिश्चित अमेरिकी विदेश नीति का काल रहा। दूसरी, कैपिटल हिल जैसी घटना अमेरिकी गृहयुद्ध के बाद पहली बार घटी, जिसमें अमेरिकी लोकतांत्रिक मूल्य कुचले जाते दिखे। तीसरी, वह लगातार कह रहे हैं कि वही एक मात्र उम्मीदवार हैं, जो दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर जाने से रोक सकते हैं। चौथी, उन्होंने यह भी कहा कि ‘जो नैटो देश अपने बिल नहीं भरते, उन पर मनचाही कार्रवाई करने के लिए वह रूस को प्रोत्साहित करेंगे।’
क्या है उलझन
क्या ये बातें अमेरिका के सीधी और स्पष्ट रेखा पर चलने का संकेत देती हैं? एक बात और, नैटो देशों पर ट्रंप का ऐसा बयान उत्तरी अटलांटिक ब्लॉक की सुरक्षा की दृढ़ता का परिचायक है या नई कमजोरी का संकेत? वास्तव में ऐसी अनिश्चितता दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध से बचाएगी या उसी दिशा में धकेल देगी? ऐसी टिप्पणियों के बाद भी ट्रंप का रिपब्लिकन कैंडिडेट्स में आगे होना आश्चर्य में डालता है। पता नहीं यह ‘पोस्ट ट्रुथ’ का कमाल है या राष्ट्रपति जो बाइडन की शिथिलता और घटती लोकप्रिता का।
शांति के प्रयास नहीं
करीब 17 वर्ष पहले म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था – नैटो शांति नहीं, उकसावे की मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है। आज ये बातें इसलिए प्रासंगिक लगती हैं क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध और इस्राइल-गाजा संघर्ष के चलते दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के कगार पर न भी हो तो शीतयुद्ध के भंवर में अवश्य दिख रही है। ध्यान रहे, रूस-यूक्रेन युद्ध के दो वर्षों में किसी भी दिशा से शांति के वास्तविक प्रयास नहीं दिखे।
रूस की सोच
यूरोप इसके लिए मॉस्को को कठघरे में खड़ा करता है। उसका तर्क है कि रूस की कार्यवाही से यूरोप की सामरिक स्थिति बदली है। इसे न्यूट्रलाइज करने के लिए ही रूस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गए और यूक्रेन को हर तरह की मदद दी गई है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। हकीकत यह है कि अमेरिका और उसके सहयोगी पूर्वी यूरोप की ओर नैटो का विस्तार करने की कोशिश करते रहे हैं। इसी से यूरोप की सामरिक स्थिति बदली, जिसे रूस ने अपने अस्तित्व पर गहरा रहे संकट के रूप में देखा।
नैटो के विस्तार के प्रयास
दरअसल, जब बर्लिन की दीवार टूटी और जर्मनी का एकीकरण हुआ, तब सोवियत संघ को भरोसा दिलाया गया था कि यह डिवेलपमेंट सोवियत संघ पर सामरिक दबाव का कारण नहीं बनेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नैटो न केवल बना रहा बल्कि उसका पांच बार विस्तार कर सोवियत संघ के उत्तराधिकारी रूस को भू-राजनीतिक तौर पर घेरने की रणनीति अपनाई गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिमी ब्लॉक के देशों को यह अच्छी तरह से मालूम था कि रूस सैन्य खर्च में अमेरिका का मुकाबला नहीं कर पाएगा।
रूस का जवाब
इसके खिलाफ रूस की पहली प्रतिक्रिया 2014 में क्राइमिया पर कब्जे के रूप में आई। इससे उसने सेवास्तेपोल को बचाया और ‘ब्लैक सी’ में स्थिति मजबूत कर ली। पश्चिमी ब्लॉक के लिए यह एक बड़ा झटका था क्योंकि इसने अचानक पूर्वी यूरोप सहित यूरेशिया के अंदर के रणनीतिक समीकरण को बदल दिया। यही नहीं, क्रेमलिन इसके जरिए एक नया संदेश देने में कामयाब हो गया।
नैटो का मकसद
यह पश्चिमी ब्लॉक के लिए अपनी समीक्षा और अमेरिका के लिए अपने पुनर्मूल्यांकन का समय था। रूस-यूक्रेन युद्ध के दो वर्ष पूरे होने के बाद भी अमेरिका सहित पश्चिमी ब्लॉक ऐसा कर पाया, यह कहना मुश्किल है। आज जब ट्रंप नैटो देशों को धमकी दे रहे हैं कि वह उनके खिलाफ रूस को उकसाएंगे, तब क्या इस विषय पर विचार नहीं करना चाहिए कि 1991 के बाद नैटो को बनाए रखने का उद्देश्य क्या था।
नए शीत युद्ध की शुरुआत
तो क्या वर्ष 1991 सोवियत संघ के पतन के साथ-साथ नए शीत युद्ध की शुरुआत और भावी युद्धों के लिए ‘लाइन ऑफ डिमार्केशन’ का वर्ष था? यदि नहीं, तो सोवियत संघ के पतन से लेकर 2024 तक तक दुनिया जिन संघर्षों से गुजरी, वे नैटो के होते हुए कैसे संभव हो गए? नैटो के रहते मध्य-पूर्व में पहले तानाशाहों और फिर आतंकवाद का उदय क्यों हुआ? और यह भी कि नैटो के होते हुए एंग्लोस्फेयर इंटेलिजेंस अलायंस (आई फाइव), ऑकस आदि की आवश्यकता क्यों पड़ी?
रूसी इकॉनमी
बहरहाल इस समय पुतिन यूरोप को धमकी देते हुए दिख रहे हैं। यह शायद रूसी अर्थव्यवस्था के G7 की तुलना में मजबूत होने का ही एक संकेत है। फरवरी के पहले सप्ताह में IMF द्वारा जारी आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। तो क्या यह कहा जा सकता है कि पश्चिमी ब्लॉक जब प्रतिबंधों पर दांव लगाए हुए थे, तब रूस अपनी अर्थव्यवस्था को ‘मॉबिलाइज्ड वॉर इकॉनमी’ में बदल रहा था?
यूरोप गौर करे
यदि ऐसा है तो पश्चिमी ब्लॉक को अपनी रक्षापंक्ति और मजबूत करने की जरूरत है। विशेषकर तब जब अमेरिका बहुत हद तक डगमगाता हुआ ही नहीं ट्रंप के नेतृत्व की ओर सरकता दिख रहा है। जाहिर है, आज ट्रंप की लोकप्रियता और पुतिन की आक्रामकता से जुड़े तमाम पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है, जो पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले हैं।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)