बादल सरोज
इस बार 5 नवम्बर को सभी को चौंकाते हुए, जो आदमी, अमरीका के राष्टपति का चुनाव जीता है वह निर्लज्ज नस्लवादी, अंग्रेजी में बोले तो रेसिस्ट बन्दा है और जैसा कि नियम है इस तरह के लोग विकृत–परवर्ट-और हर मामले में हर तरह से भ्रष्ट- करप्ट – होते हैं, बन्दा व्यक्तिगत जीवन और चालचलन में भी निहायत गन्दा और अमानुष है। स्त्रियों के यौन उत्पीड़न के, यौन उत्पीड़न इसके अपराधों के लिए छोटा शब्द है, दो मामलों में यह दोषी साबित हो चुका है, ऐसे ही कोई चार मुकदमे और चल रहे हैं। करोड़ों डॉलर की आर्थिक और वित्तीय धोखाधड़ी, पिछली बार के चुनाव परिणाम को उलट देने के लिए सत्ता केंद्र कैपिटोल हिल पर हथियारबंद हमला करवाने सहित कोई 34 ऐसे मुकदमे इस आदमी–डोनाल्ड ट्रम्प–के खिलाफ चल रहे हैं, जिनमें निर्धारित सजाओं का जोड़ उनकी अब तक की आयु से भी अधिक होगा।
ट्रम्प पहले अमरीकी राष्ट्रपति है जिनके खिलाफ गुंडागर्दी करने के मुकदमे दर्ज हैं, पहला अमरीकी राष्ट्रपति है जो गुण्डागर्दी के आरोप में दोषी सिद्ध किया जा चुका है। अंग्रेजी मुहावरे में कहें तो इस दुःख में छुपा सुख यह है कि अंततः अब पूरी दुनिया पर अपनी गुण्डागर्दी चलाने वाले अमरीकी साम्राज्यवाद को विधि द्वारा प्रमाणित, खुद उसके न्यायालयों द्वारा स्थापित एक गुण्डा राष्ट्रपति भी आधिकारिक रूप से मिल चुका है।
जाहिर है कि पूरी दुनिया, यहाँ तक कि खुद जिस देश का वह राष्ट्रपति बना है उस संयुक्त राज्य अमरीका में भी इस नत्तीजे के बाद ख़ुशी की लहर नहीं दौड़ी। हर जगह, जैसी कि अपेक्षा थी वैसी, चिंता, अनिश्चितता और परेशान महसूस करने की प्रतिक्रियाएं देखने में आयी। अमरीका में भी, वहां के मीडिया सहित आम लोगो में फ़िक्र ही देखने को मिली। शायद ही कोई अमरीकी अखबार या टीवी चैनल ऐसा होगा जिसने बांहें फैलाकर, बिना किसी अगर मगर या किन्तु परन्तु के इस कथित जनादेश का स्वागत किया हो।
अधिकांश-और ये सिर्फ लिबरल या प्रगतिशील रुझान के नहीं हैं-ने अपने सम्पादकीयों में ट्रम्प के निर्वाचन में निहित खतरों और अन्देशों को ही दर्ज किया। उसकी जीत को, बकौल उनके, जो अमरीका की पहचान है उस विविधता के समावेश, मानवाधिकार, प्रेस की आजादी और लोकतंत्र के लिए आशंकाओं से भरा बताया। उनकी इस आशंका को खुद ट्रम्प ने पहले ही झटके में वास्तविकता में बदल दिया जब फ्लोरिडा के बीच पर अपनी जीत की घोषणा वाली सभा में उसने अंतर्राष्ट्रीय पहुँच वाले सीएनएन, एमएसएनबी सहित कई मीडिया समूहों के प्रवेश को ही प्रतिबंधित कर दिया।
उसकी नाराजगी तो एकदम अपनी पालतू लोमड़ी जैसे रुपर्ट मुर्डोक के घोर प्रतिक्रियावादी चैनल फॉक्स से भी थी, जिसका कसूर यह था कि उसने डेमोक्रटिक पार्टी के विज्ञापन दिखाए थे। ट्रम्प की ‘जीत’ पर बाकी आक्रोश और भी कई तरह से निकला, इनमे नारी अधिकारों के प्रति सजग महिलाओं का एलान एक अलग ही तरह का था जिन्होंने घोषणा की कि जिन जिन मर्दों ने ट्रम्प को वोट दिया है वे उनके साथ चार नकार बरतेंगी; न तो डेट पर जायेंगी, न शादी करेंगी, न किसी तरह के संबंध रखेंगी, न दोस्ती करेंगी।
मगर धरती के दूसरी तरफ जम्बूद्वीपे भारतखण्डे में भक्तों के झुण्ड में हो रही बल्ले बल्ले आकाश पाताल एक किये हुए है। व्हाइट हाउस में हुई जचकी की सोहर गाई जा रही है, बेगानी डिलीवरी के आल्हाद में बन्दनवार सजाये जा रहे हैं और मार तालियाँ बजा बजाकर ‘सज रही ….. सुनहरे गोटे में, रुपहले गोटे में’ गा गाकर गला बिठाया जा रहा है। शुरुआत ऊपर से हुई और अमरीका के 50 राज्यों में गिनती पूरी होने, परिणाम की औपचारिक घोषणा के पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार साल से दबी अपनी तीव्र इच्छा ‘अपने दोस्त’ को बधाई देकर पूरी कर मारी।
विदेश मंत्री जयशंकर यह जानकारी देते हुए चहक उठे कि जीतने के बाद ट्रम्प जिन 3 नेताओं से ट्रम्पियाये उनमें से एक मोदी ‘जी’ थे। यह आल्हाद सिर्फ राजनीतिक भुजा के फड़कने में ही नहीं दिखा, मात पिता संगठन का भी रोम रोम रोमांचित था- पान्चजन्य सीधे लेबर रूम से पल पल की अपडेट अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर दिखा सुना रहा था। उत्साह इतना गजब का था कि ट्रम्प के पुराने, खासतौर से मुस्लिम विरोधी विडियोज नत्थी किये जा रहे थे। बिना यह जाने कि अमरीकी जेलों में कैदियों की ड्रेस का रंग नारंगी होता है।
मई महीने की किसी रैली में मोदी-योगी के नारंगी रंग के परिधान वाले युगल फोटोज में उनके चेहरे की जगह डोनाल्ड ट्रम्प और उसके इस अभियान के वित्त पोषक और सूत्रधार, ट्विटर के मालिक और दक्षिणपन्थ के भी धुर दक्षिणपंथ के मौजूदा पुरोधा एलन मस्क की मुण्डी चिपका कर उन्हें भगवा परिधान में दिखाते हुए ‘अमेरिका में भी हिंदुत्व का जलवा, लहराया भगवा परचम’ की टैग लाइन लगाकर हीन ग्रंथि सहलाने की सारी सीमाएं लांघी जा रही थीं। ‘विश्व के चार सबसे ताकतवर नेताओं की तस्वीर में ट्रम्प और युद्द अपराधी नेतन्याहू के साथ मोदी की तस्वीर का ग्राफिक वायरल किया जा रहा था और कुनबे की आई टी सैल उन्हें फ़ॉरवर्ड करते करते दोहरी हुई जा रही थी।
राजा से भी ज्यादा वफादार दिखने की व्याकुल आतुरता इतनी थी कि अमरीकी जनता की प्रतिक्रियाओं, उनके ट्रम्प को धिक्कारने वाले जिन बयानों का ट्रम्प और उसकी जुन्डली जवाब नहीं दे पा रही थी उनको लेकर भी वे ट्रम्प से असहमत अमरीकियों को ऐसे धिक्कार रहे थे जैसे इधर वाले प्रश्न उठाने वालों को धिक्कारते हैं। महिलाओं के 4 बी की तर्ज पर चार ‘ना’ की घोषणा तो ऐसी चुभी थी कि पूरी फ़ौज ही इन पर टूट पड़ी और अपनी अश्लील और घिनौनी मातृभाषा की पूरी कीच फैला कर रख दी। इन महिलाओं को कम्युनिस्ट तक बता दिया। इस जीत की तुलना हरियाणा चुनाव से कर ली और कमला हैरिस को कमला हारिस लिखते लिखते इतने प्रमुदित हुए कि उनमे राहुल गांधी का अक्स ढूंढ लाये!
यह सब किसके लिए हो रहा था ? यह सोहर किसके लिए गायी जा रही थी? उसके लिए जो खुद अमरीकी स्टैण्डर्ड से भी भयानक नस्लवादी है, जिसके इस बार के पूरे चुनाव अभियान की धुरी ही एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के अश्वेत और कम श्वेत मनुष्यों और आप्रवासियों के प्रति नफरत पर टिकी थी। इस हद तक कि खुद उसने राष्ट्रपति उम्मीदवारों की राष्ट्रीय बहस में आव्रजन के बारे में एक सवाल के जवाब में कहा कि “आप्रवासी कुत्तों को खा रहे हैं, वे बिल्लियों को खा रहे हैं। वे वहां रहने वाले लोगों के पालतू जानवरों को खा रहे हैं, और यही हमारे देश में हो रहा है, और यह शर्मनाक है।”
यह बात अलग है कि उस डिबेट के पूरा होने के पहले ही जिस जगह का यह जिक्र कर रहा था वहाँ की म्युनिसिपल सरकार ने इसके दावे का खंडन कर दिया। उसका घोषित एजेंडा ही सारे एशियाइयों को अमरीका से खदेड़ बाहर करना था। नतीजों के बाद उसकी प्रचार टीम का दावा है कि इसी एजेंडे को आगे रखकर यह चुनाव जीता गया है।
हालांकि जिन घुसपैठियों, शरणार्थियों के नाम पर आज इतना उन्माद खड़ा किया जा रहा यदि ये सब अमरीका नही आये होते तो डोनाल्ड ट्रम्प तो कुंवारे ही रह जाते। उनके सभी घोषित विवाह उन स्त्रियों से हुए हैं जो “बाहर” से आयी थीं। इवाना जेलनिकोवा चेकोस्लोवाकिया से आयी थीं, मारला मैपल्स भी शरणार्थी थी और मौजूदा पत्नी मेलेनिया ट्रम्प स्लोवेनिया से आयी शरणार्थी हैं।
उनकी आधा दर्जन “दोस्त” भी खांटी अमरीकन नहीं है। कोई फ्रांस से है तो कोई अर्जेंटीना से! वैसे भी ये खांटी अमरीकन है किस चिड़िया का नाम? अमरीका तो रेड इंडियंस और ऐसे ही अन्य आदिवासियों का था-बाकी सब तो ट्रम्प की भाषा में कहें तो 500 साल के घुसपैठिये ही हैं।
आज जिन आप्रवासियों की बात की जा रही है वे कौन हैं ? तीन वर्ष पहले यानि 2021 तक कोई ढाई करोड़ (24 मिलियन) अमरीकी ऐसे थे जिन्हें एशियाई कहा जाता है, ये कुल अमरीकी आबादी का 7.1% होते हैं। पिछले कुछ दशकों से एशियाई लोग अमरीका में सबसे तेजी से बढता नस्लीय समूह है। इन एशियाइयों में भी सबसे बड़ा समूह भारतीयों का है जो करीब 54 लाख हैं। इनका 66% आप्रवासी है, बकाया यहीं जन्मे हैं। इसी के साथ जिन्हें अवैध रूप से रहने वाला आप्रवासी बताकर, उनके लिए विशेष जेल बनवाने और जबरिया खदेड़ बाहर करने के बोलवचन चुनाव जीतने के बाद भी बोले जा रहा है उनमे से करीब दस लाख (एक मिलियन) भारतीय हैं-इनमे भी बड़ी, काफी बड़ी संख्या गुजरातियों की है।
हाल का रिकॉर्ड बताता है कि तकरीबन एक लाख भारतीय बिना कागज पत्तर के दाखिल होने की कोशिश-डंकी करते हुए- हर साल पकड़े जाते हैं। उनमें भी गुजराती सबसे ज्यादा होते हैं। इनके लिए हिटलर की नाजी जर्मनी में बने शिविरों की कायमी का एलान करने वाले बंदे की जीत पर ख़ुशी किस तरह की मनोदशा का परिचायक है? ट्रम्प का इसी तरह का नस्लवादी दावा काम करने गए विशेषज्ञों को मिलने वाले एच-1बी वीजा में कटौती और जिन्हें मिल चुका है उसकी पुनर्समीक्षा का है।
क्या सोहर गाने वालों को पता है कि एच-1बी वीजा पर काम करने वालों में भी इन्डियन सबसे ज्यादा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2023 में ही इस तरह के वीजा की 3.86 लाख मंजूरियां हुईं इसका 72.3% यानि 2.79 लाख भारत से गए भारतवासी हैं। इस तरह के कुल वीजा धारक करीब 580,000 हैं जिनमे भारतीयों का अनुपात लगभग उतना ही है जितना ऊपर दर्शाया गया है। इन सबको घर वापस भेजने का बीड़ा उठाकर जीतने वाले के लिए बैंड-बाजा-बारात सो भी तीनो एक साथ! कमाल ही है! खैर, अमरीका में रहने वाले भारतीय इस खतरे को जानते हैं यह इन चुनाव नतीजों में भी दिखा जब कुल भारतियों में से करीब आधे से ज्यादा इंडियन अमेरिकन्स जिन चार राज्यों में रहते हैं उनमे से 3 कैलिफ़ोर्निया, न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में इस ट्रम्प की हार हुई है।
ट्रम्प का भारत वैर नया नहीं है। अपने पहले कार्यकाल में हाउडी मोदी और अबकी बार ट्रम्प सरकार के सारे प्रयत्नों के बावजूद उसने अपना भारत विरोध स्थगित तो दूर कम तक नहीं किया था। यही था जिसने खुले खजाने अप्रैल 2020 में कोरोना के समय प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि “मैंने मोदी से बात की और उन्हें सराहा कि उन्होंने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन अमरीका भेजने की अनुमति दे दी है। अगर वह अनुमति नहीं देता तो, ठीक है ऐसा ही सही…..मगर उसे इसके नतीजे भुगतने होते, हम छोड़ते तो थोड़े ही।” इसी कार्यकाल में एक सार्वजनिक भाषण में भारत को गंदा देश बोला था। यह अकेले उदाहरण नहीं है, ऐसे अनेक हैं।
यह ट्रम्प का ही प्रशासन था जिसने ऊपर के वीजा वगैरा में खुन्नस निकालने के साथ आर्थिक और व्यापारिक मामलों में भी अड़ीबाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सबसे पहले तो उसने भारत को मिला जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रैफरेंसेज) हटाया, इस तरह भारत से जाने वाले माल का अमरीका आना मुश्किल किया। उसके बाद यहाँ से जाने वाले माल पर भारी टैक्स लगा दिए। इस बार भी आप्रवासियों के बाद उसका दूसरा मुख्य मुद्दा पारस्परिक कर प्रणाली लागू करने का है जिसका भारत के व्यापार पर खासतौर से आईटी, कपड़ा और दवा उद्योग पर भारी असर पड़ने वाला है। उसकी जीत पर पगलाए शोर के बीच भी भारत के अर्थशास्त्री और कुछ पूर्व राजदूत अभी से व्यापार युद्ध-ट्रेड वॉर– तक की आशंका जताने लगे हैं।
हालांकि कुछ बगलगीर उम्मीद जताए बैठे हैं कि चीन को ज्यादा नुकसान होने का फायदा भारत को मिल जाएगा? कैसे यह न कोई पूछ सकता है, ना ही वे बताएँगे क्योंकि यह उन्हें ही नहीं पता! यहाँ उस विराट अमरीकी परियोजना की बात न भी करें जो आजादी के बाद हमेशा भारत को कमजोर करने, उसे घेरने और प्रोजेक्ट ब्रह्मपुत्र जैसी कुटिल योजना बना कर उसे खंड खंड करने की रही हैं तब भी अमरीकी प्रशासन का नियंत्रण ट्रम्प जैसे व्यक्ति के हाथ में जाना किसी भी तरह से स्वागत योग्य नहीं कहा जा सकता। तब क्या वजह हो सकती है कि जो देश के हित में नहीं है उसका हितू मोदी संघ और उनकी भाजपा बनी हुई है ?
एक तो यह कि ये वे हैं जिन्हें बेबी-पन से ही देश की बजाय साम्राज्यवाद का बेस पसंद है। तब बकिंघम पैलेस में बैठी चोरों की रानी उनकी आराध्या थी अब व्हाइट हाउस में बैठने जा रहा लुटेरों का राजा उनका आराध्य है। भारत का हितैषी हो या न हो, यदि वह नस्लवादी है, बर्बर और तानाशाह है और कहीं इसी के साथ मुस्लिम विरोधी भी हो तो फिर भले भारत का विरोधी ही क्यों न हो इनके लिए वह पूज्य और स्तुत्य है।
यही कारण है कि लिखापढ़ी में वहां के भारतियों और इधर के समूचे भारत के हितों के खिलाफ होने और दिखने दोनों के बावजूद ट्रम्प की सोहर गाने में मगन होना इन्हें भाता है। यही इनका राष्ट्रवाद है-इधर खेलकूद, गीत संगीत और सोते जागते में पाकिस्तान पाकिस्तान करते हैं और उधर अडानी और बाकी घरानों के धंधे को चमकाने के लिए नवाज शरीफ की नातिन की शादी में बिनबुलाये, भात में पठानी सूट और बनारसी साड़ियाँ लेकर पहुँच सकते हैं।
राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे के बाद एक राजनीतिक विश्लेषक कहा है कि ट्रम्प ने जिस पहचान की राजनीति-आइडेंटिटी पॉलिटिक्स- को उभारा है और उसे अमरीका फर्स्ट का संबोधन देकर राष्ट्र का पर्याय बनाने की कोशिश की है वह खतरनाक है क्योंकि “राष्ट्रवाद की खाल ओढ़कर आये नस्लवाद, क्षेत्रवाद की आड़ में अब असली नाजी आसानी से छुप सकते हैं।” इन्हें और अधिक सफाई से छुपाने की तैयारी ट्रम्प ने अभी से शुरू दी है। उसने एलान किया है कि जनवरी में राष्ट्रपति बनते ही वह पहला काम अमरीका के शिक्षा विभाग को बंद करने का करेगा। भक्त खुश हो सकते हैं कि शिक्षा का भट्टा बिठाने के मामले में मोदी के दोस्त ने उनसे सीख ली है।
अमरीकी प्रेस ने एक और महत्वपूर्ण बात दर्ज की है कि “हमने विवेकशील पाठक और दर्शक वर्ग को खो दिया है।“ अब उन्हें उनके खोये विवेकशील पाठक, दर्शक मिलें या न भी मिलें भारत सहित दुनिया में जहां जहां भी ट्रम्प जैसी डिलिवरीज रोकनी हैं वहां वहां आम जन का विवेक जगाना होगा।
(बादल सरोज लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं)
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