अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ‘लिबरेशन डे’ को दूसरे विश्व युद्ध के बाद वैश्वीकरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचाने वाला कदम कहा जाएगा। ट्रंप ने वादे के मुताबिक 2 अप्रैल को व्यापार में साझोदार सभी देशों पर जवाबी शुल्क लगा दिया। वास्तव में ये टैरिफ अधिकांश लोगों की सोच से अधिक नुकसान पहुंचाने वाले हैं। इसे एक और अहम घटना के लिए याद रखा जाएगा, जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और महाशक्ति अमेरिका का राजनीतिक नेतृत्व दशकों से अपने हाथ में रही वैश्विक कमान छोड़ने का इच्छुक दिख रहा है। वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का रूप तथा प्रकृति काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिकी टैरिफ पर किस तरह की प्रतिक्रिया देती हैं। अभी तक प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं मगर सही स्थिति आने वाले दिनों और हफ्तों में ही स्पष्ट हो सकेगी।

अमेरिका ने सभी पर 10 फीसदी आधार शुल्क लगाया है, जो 5 अप्रैल से लागू होगा। अलग-अलग देश पर जवाबी शुल्क 9 अप्रैल से लगेगा। अमेरिका के लिए आयात के सबसे बड़े स्रोत यूरोपीय संघ को 20 फीसदी शुल्क या टैरिफ झेलना होगा। भारत से आयात पर 27 फीसदी शुल्क लगेगा। चीन पर 20 फीसदी शुल्क पहले से है और 2 अप्रैल को घोषित 34 फीसदी जवाबी शुल्क मिलाकर यह 54 फीसदी हो जाएगा। जापान और दक्षिण कोरिया से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 20 फीसदी से अधिक टैरिफ लगेगा और वियतनाम से आयात पर 46 फीसदी टैरिफ होगा। टैरिफ में इस भारी इजाफे और साझेदार देशों द्वारा संभावित प्रतिरोध से विश्व व्यापार पर बहुत असर पड़ेगा।
ट्रंप के अनुसार दुनिया ने अमेरिका के साथ ज्यादती की है, जो उसके व्यापार घाटे में नजर भी आती है। 2024 में अमेरिका का वस्तु व्यापार घाटा 1.2 लाख करोड़ डॉलर था। ऐसे में उच्च टैरिफ के कारण अमेरिका के लोग अमेरिकी वस्तुएं खरीदेंगे और विदेशी कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन करना पड़ेगा। मुख्य धारा का कोई अर्थशास्त्री शायद ही इस तर्क से सहमत होगा। वास्तव में अमेरिका सेवा क्षेत्र में अधिशेष की स्थिति में है। क्या अमेरिका अन्य देशों के साथ गलत कर रहा है? मगर दुनिया ऐसे नहीं चलती। फिर भी हो सकता है कि ऊंचे टैरिफ के कारण अमेरिका का चालू खाते का घाटा निकट भविष्य में कुछ कम हो जाए। मगर कम व्यापार घाटे और संभवत: ऊंची ब्याज दर से डॉलर मजबूत होगा, जिसका असर अमेरिका के निर्यात पर पड़ेगा। इससे चालू खाते के घाटे वाला फायदा खत्म हो जाएगा। साथ ही टैरिफ ने अनिश्चितता बहुत बढ़ा दी है, जिससे खपत और निवेश मांग प्रभावित हुई हैं। इससे वैश्विक वृद्धि सुस्त हो सकती है।
भारत को भी 27 फीसदी टैरिफ झेलना होगा मगर औषधि क्षेत्र को अभी राहत दी गई है। भारत पर चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों से कम टैरिफ लगाया गया है और काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता किस तरह आगे बढ़ती है। यह भी ध्यान रहना चाहिए कि टैरिफ के मामले में भारत को मिली बढ़त शायद ज्यादा न टिके। अन्य देश भी अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों पर बात करेंगे। मगर भारत के लिए लब्बोलुआब यह है कि उसे टैरिफ तथा दूसरे कारोबारी प्रतिबंध घटाने होंगे। यह भारत के ही हित में होगा और अमेरिकी बाजार में उसकी पैठ बढ़ेगी। उसे अन्य कारोबारी साझेदारों मसलन यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ व्यापार वार्ताओं को आगे भी बढ़ाना चाहिए। ट्रंप ने ऐसे बदलाव शुरू किए हैं जो मध्यम अवधि में अमेरिका और विश्व अर्थव्यवस्था दोनों को प्रभावित करेंगे। भारत खुद को तेजी से ढाले ताकि न केवल नुकसान कम हो बल्कि वह अवसरों का लाभ भी उठा सके।
Add comment