स्वदेश कुमार सिन्हा
मैं जब पिछले दिनों दिल्ली का पुराना किला देखने गया, तो पता लगा कि किले के म्यूजियम हॉल का दस से बारह गज़ हिस्से का फ़र्श 20 फुट अधिक नीचे धंस गया है।
ASI की राष्ट्रीय प्रवक्ता नंदिनी भट्टाचार्य साहू ने एनबीटी को बताया कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। वे इस पद पर नई नियुक्त हुई हैं। मामले के बारे में पता किया जा रहा है।
मथुरा रोड से किले के विशाल मुख्य दरवाजे के अंदर घुसते ही दाईं तरफ किले की दीवार के साथ एक गैलरी बनाई गई है, इसके पहले खंड में आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम है, बीच में प्रशासनिक कार्यालय है, उसके बाद विशेष तौर पर गैलरी ऑफ कॉन्फिस्केटेड एंड रिट्रीविड एंटीक (gallery of confiscated and retrieved antique) बनाया गया है।
इसी गैलरी का एक हॉल सितंबर के महीने में करीब 20 फुट गहरा धंस गया है। वहां रखा आर्कियोलॉजिकल सामान हटा लिया गया है। इस गैलरी में वे मूर्तियां, शिल्प आदि रखे हुए हैं, जो भारत से तस्करी करके अमेरिका और यूरोप के देशों में चले गए थे।
उन्हें मोदी सरकार के एक विशेष अभियान के तहत वापस लाया गया है। उनमें तीसरी ईस्वी से लेकर 14वीं-15वीं ई. तक के सिक्के। 12वीं से 13वीं शताब्दी के किरातार्जुनयम् शिल्प की मूर्तियां, मानवीय आकृतियां, भाले, हारयाना टाइल्स और बौद्ध प्रतिमाएं आदि शामिल हैं।
लोगों को दिखाने के लिए इस गैलरी का विशेष तौर पर बनाया गया था, मगर गैलरी का फर्श धंस जाने के कारण वहां से पुरातत्व महत्व का सामान हटा लिया गया है। म्यूजियम की दीवारों का फर्श भी कई जगह से उखड़ गया है। ऐसे में म्यूजियम देखने में बहुत भद्दा लग रहा है।
ASI के एक अधिकारी ने बताया कि अक्टूबर में मरम्मत के लिए हेड क्वार्टर के पास ख़र्च का ब्यौरा भेजा गया था। मरम्मत की अनुमानित लागत 45 लाख रुपए से अधिक की बताई जा रही है। अधिकारी ने बताया,कि उसके बाद से अभी तक मरम्मत करने के बारे में कोई निर्देश नहीं आए हैं। फंड की कमी के कारण कोई काम नहीं हो पा रहा है।
कंजर्वेशन फंड नहीं मिलने के कारण दिल्ली के पुरातत्व महत्व के कई स्मारक व भवन की मरम्मत का काम रुका हुआ है या बहुत सुस्त गति से चल रहा है।
उनमें 14वीं शताब्दी का अलाई दरवाजा और खिड़की मस्जिद के अलावा शीश महल, रोशनआरा महल और बाराखंबा पुल की मरम्मत आदि का काम प्रमुखता से शामिल है।
ज्ञातव्य है कि पुराने किले का पांच बार उत्खनन हो चुका है। इन उत्खननों के पीछे यह सिद्ध करना मंशा थी कि यहां पर मिथकों की पौराणिक कालीन इन्द्रप्रस्थ की खोज करना। अनेक स्तरों की सभ्यताओं की खोज करने के बावज़ूद ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि यहां कोई पाण्डव कालीन राजधानी थी।
पुरातत्ववेत्ताओं ने साफ़-साफ़ बताया कि यहां बौद्ध कालीन सभ्यता के अवशेष तो मिलते हैं, लेकिन महाभारत काल के नहीं। आख़िर किसी मिथक के पुरातात्विक प्रमाण मिल भी कैसे सकते हैं? लगता है इसके बाद ही पुरातत्व विभाग की रुचि प्राचीन किले से हट गई।
एक ओर पुरातत्व विभाग दावा करता है कि वह धन की कमी से जूझ रहा है, दूसरी और यही विभाग संभल और चंदौसी के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में कुएं तथा बावड़ियों में हिन्दू तीर्थ-स्थलों की तलाश कर रहा है।
जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार संभल के 68 में से 6 तीर्थ और 19 कुएं मिले, जिन्हें ग्रन्थों के आधार पर खोजे जा रहे हैं।
ये निशान हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जब मस्ज़िद के सर्वेक्षण पर रोक लगा दी, तब केन्द्र और प्रदेश की सरकार पुरातत्व विभाग के सहयोग से केवल संभल ही नहीं, चंदौसी तथा प्रदेश के अन्य स्थानों पर इस तरह के उत्खनन कराकर जनता के मन में यह धारणा बना रही है कि मुस्लिम काल में इस तथाकथित तीर्थों को नष्ट करके ज़मीन में दबा दिया गया था।
सच्चाई यह है कि भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले देश में देश भर में ऐसे बहुतायत प्राचीन स्थल दबे पड़े हैं। लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापन तथा सदियों के बीत जाने के बाद बहुत से प्राचीन स्मारक भौगौलिक परिवर्तन के कारण ज़मीन में दब जाते हैं।
ऐसे ढेरों स्थल मैंने ख़ुद पूरे उत्तर प्रदेश में देखे हैं, विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, आजमगढ़ और बस्ती आदि के इलाक़ों में। इन विरासत को स्थानीय लोगों के द्वारा नष्ट किया जा रहा है, लेकिन इनके संरक्षण पर पुरातत्व विभाग का ध्यान कभी नहीं जाता है।
इस पर पुरातत्व विभाग हमेशा धन की कमी की बात करता है,परन्तु क्यों एकाएक वह सक्रिय होकर संभल के मुस्लिम बहुल इलाक़ों के कुएं-बावड़ियों में तीर्थ खोजने लगता है?
दुर्भाग्यवश आज केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकार ने हर विभाग की तरह पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी अपने हिन्दुत्ववादी एजेंडे को पूरा करने तथा देश में नफ़रत फैलाने का एक उपकरण बना लिया है।(
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