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यूएनओ…..एक विफल और पक्षपाती संस्था 

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विश्वमानवता के लिए वरदान सोवियत अक्टूबर क्रांति - अग्नि आलोक

मुनेश त्यागी

यूएनओ यानी संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण 1945 में हुआ था। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क अमेरिका में है। इसमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस और चीन को वीटो पावर प्राप्त है। यूएनओ के मुख्य उद्देश्य हैं,,,, अंतरराष्ट्रीय का सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानवाधिकार की रक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा। आज यूएनओ को बने 77 वर्ष हो गए हैं। इस बीच बहुत सी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं बनती बिगड़ती रही मगर आज मुख्य सवाल यह है कि क्या यूएनओ  अपने उद्देश्यों को की पूर्ति करने में कामयाब हो पाया है? क्या दुनिया में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति कायम हो पाई है? क्या दुनिया में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम हो पाई है? क्या लगातार हो रहे युद्धों से बचा जा सका है?
  यहीं पर सवाल उठता है कि यूएनओ के पवित्र उद्देश्यों से किसने इनकार किया और आज भी इन उद्देश्यों की पूर्ति में कौन आडे आ रहा है? यहीं पर बहुत अहम सवाल खड़ा होता है कि जब यू एन ओ के उद्देश्यों को रौंदा जा रहा था, धता बताया जा रहा था और विफल किया जा रहा था तब यू एन ओ क्या करता रहा? क्या इन वर्षों में दुनिया में शांति और सुरक्षा कायम हुई और यूएनओ के उद्देश्यों को रौंदने वाले देशों के खिलाफ यूएनओ ने क्या किया?
  यूएनओ का इतिहास देखकर यह बात पूरे इत्मीनान के साथ कही जा सकती है कि यूएनओ के उद्देश्यों को सबसे ज्यादा साम्राज्यवादी अमेरिका और दूसरे साम्राज्यवादी देशों के गुट  नाटो ने रौंदा है और यूएनओ उनके खिलाफ कोई  प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाया, बल्कि यह कहा जा सकता है कि अमेरिका और नाटो की आक्रामकता को लेकर यूएनओ मूक दर्शक बना रहा। उसने इन ताकतों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की और यह उनकी पक्षधरता करता रहा और उनके साथ खड़ा रहा। यूएनओ समाजवादी देशों और गुटनिरपेक्ष देशों पर हमलों को लेकर अमेरिका का मोहरा बना रहा।
  जब दक्षिणी अमेरिका के चिली में ऐलेंडे की चुनी हुई सरकार को अमेरिका के इशारे पर पिनोशे द्वारा तख्तापलट कर दिया गया तो यूएनओ खामोश बना रहा। जब इंडोनेशिया, पनामा और ग्रेनाडा में अमेरिका के इशारे पर सीआईए वहां के देशों में हस्तक्षेप करता रहा है और तख्तापलट की कार्यवाहियां करता रहा है और इंडोनेशिया में पांच लाख से ज्यादा कम्युनिस्टों का कत्लेआम कर दिया गया था तो यूएनओ ने चुप्पी साध ली और वह अंधा और बहरा हो गया। जब 1949 में और उसके बाद से इजराइल फिलिस्तीनियों की जमीने हड़पता रहा, उनकी हत्या करता रहा, तब यूएनओ ने इजराइल के खिलाफ क्या कार्रवाई की?
 जब 70 के दशक में 1960 से 1968 तक अमेरिका वियतनाम में बम बरसाता रहा, उसे नापाम बमों से पाटता रहा और वहां लाखों  निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारता रहा तब यूएनओ कहां था? और उसने साम्राज्यवादी अमेरिका के खिलाफ क्या कार्रवाई की? जब अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस की सरकारें इराक और लीबिया के प्राकृतिक संसाधनों तेल और गैस के भंडारों पर कब्जा करने के लिए झूठ बोल कर उन पर हमला कर रही थीं, उनकी  संप्रभुता को रौंद रही थी, तब यूएनओ कहां था?  उसने इन आक्रमणकारियों और देश कब्जाने वालों के खिलाफ क्या प्रभावी कार्यवाही की? जबकि राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन  कुरान पर हाथ रखकर कसम खा रहे थे कि "हमारे यहां महाविनाश के हथियार नही हैं" और हकीकत यह है कि महाविनाश के हथियार आज तक भी प्राप्त नहीं हुए हैं। इस सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र ने इन साम्राज्यवादी लुटेरों के खिलाफ कोई प्रभावकारी कार्यवाही नहीं की और यूएनओ एक पक्षपाती संस्था बनी रही।
 जब 1992 में यूएसएसआर के टूटने पर अमेरिका और रूस में यह सहमति बनी थी कि नाटो बर्लिन के पूर्व में यूएसएसआर से अलग हुए 14 देशों को नाटो का सदस्य नहीं बनाएगा, मगर अमेरिका और नाटो के सदस्य, इन देशों को, रूस के विरोध के बावजूद नाटो के सदस्य बनाते रहे और रूस की सुरक्षा संबंधी आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया, तब से आज तक संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका और नाटो के खिलाफ क्या किया?  क्या तब भी संयुक्त राष्ट्र एक निशक्त और पक्षपाती संस्था बनकर ही नहीं रह गई थी?
 इसके अतिरिक्त साम्राज्यवादी लुटेरा अमरीका आए दिन दक्षिण अमेरिका के देशों  के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहता है, वहां की चुनी हुई सरकारों को काम नहीं करने देता और वहां आए दिन सीआईए के बल पर तख्तापलट की कार्यवाही को अंजाम देता रहता है। पनामा, साल्वाडोर,अल साल्वाडोर, कोलंबिया, वेनेजुएला, बोलीविया आदि देश इसके स्पष्ट उदाहरण हैं यहां पर यूएनओ ने अमेरिका के खिलाफ क्या कार्रवाई की? अमेरिका पर क्या प्रतिबंध लगाए? वह यहां भी मूकदर्शक की भूमिका में बना रहा और उसने कभी भी अमेरिका की जन विरोधी और देश विरोधी और शांति विरोधी हरकतों पर उंगली नहीं उठाई और अमेरिका यू एन ओ के लक्ष्यों को खुलेआम रौंदता रहा।
   क्यूबा में 1959 में समाजवादी क्रांति होने के बाद अमेरिका ने आज तक क्यूबा के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है और उसे स्वतंत्र रूप से अपना काम नहीं करने दे रहा है। युवा सरकार द्वारा लगातार मांग करने के बावजूद भी अमेरिका के खिलाफ यू एन ओ जनरल असेंबली या सिक्योरिटी काउंसिल ने पिछले 63 सालों में  अमेरिका के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है और अब रूस और युक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ मैदान में कूद पड़ा है, उसके खिलाफ कार्यवाही का आह्वान कर रहा है। वह रूस के सुरक्षा मामलों की अनदेखी करते हुए अमेरिका और नाटो के इशारों पर नाच रहा है और उनके खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही करने को तैयार नहीं है। वह जैसे अमेरिका और नाटो का पैरोकार बन गया है।
 उपरोक्त तमाम तथ्यों की रोशनी में यही निष्कर्ष निकलता है कि यूएनओ यानी संयुक्त राष्ट्र संघ स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रह गया है। वह दुनिया के हितों का नहीं, लुटेरे साम्राज्यवादी अमेरिका, साम्राज्यवादी लुटेरों और नाटो देशों का पक्ष पोषक बन गया है और पक्षपाती हो गया है। यूएनओ अब एक विफल संस्था बनकर रह गई है। अब इसके पुनर्गठन की जरूरत है।
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