अग्नि आलोक
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शीर्षकविहीन*

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शशिकांत गुप्ते

नव वर्ष की शुरुआत हो गई। नव वर्ष में क्या होगा? वैसे तो अच्छेदिन आकर सात वर्ष हो गए हैं। देश में भ्रष्ट्राचार समाप्त हो गया है। कालाधन का खात्मा तो नोट बंदी ने ही कर दिया है। दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाले थे, अतः अब तक चौदह करोड़ से अधिक बेरोजगरों को रोजगार मिल ही गया है।
देश के दूरदराज़ के आँचल की कोई भी स्त्री अब लकड़ी या कोयले के चूल्हे पर खाना नहीं पकाती है। सभी को गैस के चूल्हे मिल गएं हैं।
किसानों को उनकी फसलों का एक सही एक बता दो के हिसाब से मूल्य मिल रहा है।
भारत विश्व गुरु बनगया है। भारत के हर गली मोहल्लों में मंदिर स्थापित हैं ही।
भगवान रामजी का जन्म त्रेतायुग में हुआ था, ऐसा रामजी की कथा में लिखा है। इस बात को कलयुग में आस्थावान लोगों द्वारा प्रमाणित किया जा रहा है।और सेम टू सेम उसी स्थान पर रामजी का दिव्यभव्य मंदिर निर्मित हो रहा है।
द्वापरयुग में जन्मे कृष्ण भगवान की ओरिजनल जन्मस्थली का भी उद्धार होने ही वाला है।
उपर्युक्त सारी उपलब्धियां देश वासियों को सन 2014 के बाद ही प्राप्त हुई है।
सन 2014 पूर्व का इतिहास शून्य है। सन 2014 के पूर्व का इतिहास कैसा था यह शोधकर्ताओं की खोज का विषय है? शोधकर्ताओं को अपना शारीरिक और मानसिक श्रम जाया नहीं करना चाहिए, जब इतिहास में कुछ था ही नहीं उन्हें मिलेगा क्या?
उपर्युक्त दर्शाई गई सभी उपलब्धियों का प्रमाण स्पष्ट दिखाई दे रहा है। देश का प्रधान सेवक दिन भर में चार बार परिधान बदलता है। धार्मिक आस्था को विश्वभर में प्रचारित करने के लिए पचपन कैमरों की निगरानी में पवित्र नदी में स्नान करता है। यह तो नदी का सौभग्य है? यह आलोचना की नहीं, प्रशंसा की बात है।
हर भारतवासी को गर्व होना चाहिए।
इतना सक्षम,आस्थावान, धार्मिक, भ्रष्ट्राचार का घोर विरोधी प्रधान सेवक तो न भूतों न भविष्यति मिलेगा।
इक्कतीस दिसंबर की रात में बाहर बजे बाद उक्त उपलब्धियों को एक एक कर स्मरण कर रहा था, कब नीद लग गई पता ही नहीं चला।सुबह मोबाइल पर नवबर्ष की शुभकामनाओं के संदेश आने लग गए तब श्रीमती ने मुझे झकझोर कर जगाया।और प्रवचन शुरू कर दिया बार बार समझाती हूँ। अपनी उम्र और पाचन शक्ति की क्षमता को ध्यान रख कर पीना खाना चाहिए।
पता नहीं रात में क्या क्या बड़बड़ा रहे थे। सम्भवतः जो बड़बड़ा रहे थे वही लिख रहे थे।
नींद की खुमारी जब दूर हुई तब याद आया कि रात तलत महमूद ने गाए फिल्मी गीत सुन रहा था।
कब नीद लगी पता ही नहीं चला, मोबाइलऑन किया तो सन 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म
एक गाँव की कहानी का गीत सुनाई दिया, यह गीत लिखा है गीतकार शैलेन्द्रजी ने।
दिल धड़कने की आवाज़ बनी शहनाई
साथ में थी हसीं चांदनी की बारात
फरिश्तों ने बरसाए फूल कई रंग के
दुल्हन की तरह सजी थी सारी कायनात।
दिल की उमंगे कुछ इस कदर थी बुलंद।
बिखर गए ख्वाब, टूट गए सपने
तन्हाई की फिर से हो गयी शुरुआत
रात ने क्या क्या ख्वाब दिखाए
रंग भरे सौ जाल बिछाए
आँखें खुली तो सपने टूटे
रह गये ग़म के काले साएं

यह गीत सुनने के बाद रात को मैने जो लेख लिखा है, वह पढ़ा तो
असमजंस्यता की स्थिति बन गई।
लेख का शीर्षक मेरे देश की हक़ीक़त लिखने वाला था।तुरंत ध्यान में आया कि यह शीर्षक व्यंग्यात्मक होगा।
इसलिए सिर्फ कोई भी शीर्षक लिखना ठीक नहीं समझा।
शीर्षकविहीन लेख है।
( इस नव वर्ष को मानो या न मानो तारीख वार देखने के लिए कैलेंडर बदलना ही पड़ेगा)

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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