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उषा बारले:पहले जो लोग मना करते थे अब दे रहे बधाई

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छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली उषा बारले को पद्म श्री सम्मान देने का निर्णय लिया गया है।
बारले काे सात वर्ष की उम्र से ही पंडवानी लोक गीत के प्रति लगाव रहा। उम्र बढ़ने के साथ-साथ
लगाव बढ़ता गया और लोक संगीत का यह दायरा घर-परिवार से निकल कर समाज और देश-प्रदेश
होते हुए विश्व के कुछ देशों तक पहुंच गया। बारले कहती हैं कि शुरुआती दौर में लोग कहते थे कि
किस तरह की गीत-संगीत में लगी है, लेकिन समय बढ़ता गया और पंडवानी संगीत के प्रति मेरा
रुझान बढ़ता चला गया। समय के साथ लोगों की ओर से इस लोक संगीत को खूब पसंद किया जाने
लगा। अलग-अलग कार्यक्रमों में गीत प्रस्तुति के लिए बुलाया जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि
मुझे प्रदेश के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी लोग जानने लगे। संगीत प्रेमी और कला-संगीत की समझ
रखने वाले करीबी लोगों के कहने पर मैंने देश के नागरिक सम्मान के लिए आवेदन किया। हालांकि
करीब पिछले 21 वर्षों से इस सम्मान के लिए प्रयास कर रही थींं लेकिन अंततः इस वर्ष केंद्र की
वर्तमान सरकार की ओर से पद्म सम्मान देने का निर्णय लिया गया। यह न सिर्फ मेरे लिये बल्कि
जो लोग लोक-संगीत को नजरअंदाज करते हैं और गुमनामी में रहकर अपनी संस्कृति को जिंदा रखे
हैं, उनके लिए भी यह अवार्ड प्रेरणास्रोत साबित होने वाला है। 45 से अधिक वर्षों से वह इस लोक
संगीत को गा रही हैं।

होमोप्रोवा चुटिया
रेशम पर सपने बुनते-बुनते अध्यात्म से जुड़ी

असम के डिब्रूगढ़ जिला स्थित मोरान की रहने वाली होमोप्रोवा चुटिया को भी पद्म श्री सम्मान देने
का निर्णय लिया गया है। कहा जाता है कि असम की महिलाएं रेशम पर अपने सपने को बुन सकती
हैं लेकिन उन्होंने अपनी बुनाई कौशल से कई सुंदर रचनाएं बनाई। इन्होंने सूती, रेशमी और बारीक
कटे बांस के टुकड़ों और विभिन्न प्रकार के कपड़ों का उपयोग करके कई तरह के धार्मिंक ग्रंथ तैयार
किए। 280 फीट लंबे और दो फीट चौड़े कपड़े के टुकड़े में अंग्रेजी भाषा में पूरी भगवद गीता की बुनाई
की। इनमें एक विशेष खासियत यह है कि इन्होंने कपास और रेशम गोमोशा में सुंदर डिजाइन बनाने
के लिए मोतियों का इस्तेमाल किया जो इस क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले डिजाइन से बहुत अलग है।

280 फीट लंबाई और दो फीट चौड़े कपड़े के टुकड़े में अंग्रेजी भाषा में पूरी भगवद गीता की बुनाई
की।

आज भी लोगों के दिलों में हैं सुमन कल्याणपुर

सुमन कल्याणपुर लगभग 30 वर्षों से गायिकी से दूर हैं लेकिन आज भी इनकी आवाज लोगों के
दिलों के करीब है। शायद यही वजह रही कि इतने वर्षों बाद 85 वर्ष की उम्र में सुमन कल्याणपुर को
पद्म भूषण सम्मान देने का निर्णय लिया गया। चार दशकों से भी ज्यादा समय तक संगीत प्रेमियों
को अपनी आवाज से रोमांचित किया और आज भी इनके गाने सुन कर दिल को सुकून मिलता है।
इन्होंने 750 से अधिक गीत गाए हैं जिसमें एलबम के अलावा हिन्दी, मराठी, बांग्ला, असमी सहित कुल
11 भाषाओं में अपनी आवाज दी। 10 से ज्यादा संगीतकारों के साथ इन्होंने काम किया जिसमें शंकर
जयकिशन, एसडी बर्मन और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल शामिल हैं। मोहम्मद रफी के साथ जुगलबंदी में
140 से अधिक गीत गाए। इन्हें महाराष्ट्र सरकार की आेर से लता मंगेशकर अवार्ड के साथ-साथ
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड और मिर्ची म्यूजिक अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।

वाणी जयराम
भजन से लेकर परंपरागत, पॉप और गजल को दी अावाज

गुड्‌डी फिल्म की वह मशहूर प्रार्थना ‘हम को मन की शक्ति देना’ भारत के कई स्कूलों में आज भी
प्रार्थना के तौर पर गायी जाती है, इसे अपनी आवाज देने वाली तमिलनाडु की मशहूर गायिका वाणी
जयराम को भी पद्म भूषण देने का निर्णय लिया गया। 50 वर्षों से ज्यादा समय से अपने गीतों से
संगीत प्रेमियों का मन मोहने वाली इस गायिका ने 20 हजार से ज्यादा फिल्मी गाने और भजन गाए
हैं। उन्होंने 15 से अधिक भाषाओं में गीत गाए जिसमें हिन्दी, तमिल, मलयालम, मराठी, और गुजराती
शामिल है। पॉप म्यूजिक, गजल, भजन, परंपरागत भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक गीतों को अपनी
आवाज दी। आठ वर्ष की उम्र से उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर अपनी प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी।
सबसे कम उम्र में संगीत पीठ सम्मान पाने वाली गायिका बनीं। वर्ष 1976, 1980 और 1992 में
राष्ट्रीय सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

डॉ. सुकामा आचार्य
शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और अध्यात्म जरूरी

हरियाणा के रोहतक में विश्ववारा कन्या गुरुकुल रुड़की की आचार्य डॉ. सुकामा आचार्य को भी पद्म
श्री दिए जाने की घोषणा हुई है। डॉ.सुकामा ने महिला सशक्तीकरण एवं शिक्षा में अपना अहम
योगदान दिया। 34 वर्षों से ज्यादा समय से वैदिक संस्कृति के लिए काम कर रही हैं। गुरुकुल में
कन्याओं को संस्कारवान शिक्षा देने में जुटी हैं। उनका मानना है कि वर्तमान समय में केवल शिक्षा
से काम नहीं चलेगा। शिक्षा के साथ-साथ संस्कार व अध्यात्म होना बहुत जरूरी है। इस गुरुकुल में
भारत के 10 से ज्यादा राज्यों के 800 से ज्यादा लड़कियों को शिक्षा दी जा रही है। यहां 45 से
अधिक महिला शिक्षक हैं। इन्हें संस्कृति सेवा सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

के.सी.रुनरेमसंगी
मिजो लोक संगीत को दे रहीं बढ़ावा

मिजोरम के आइजोल की रहने वाली लोक गायिका के.सी.रुनरेमसंगी को पद्म श्री सम्मान देने का
निर्णय लिया गया है। तीन दशकों से ज्यादा समय से देश में मिजो लोक संगीत को बढ़ावा देने पर
काम कर रही हैं। रुनरेमसंगी ने बताया कि कम उम्र में गायन और नृत्य को सर्फ शौक के लिए

अपनाया था लेकिन धीरे-धीरे संगीत में रूचि बढ़ती गई और लोग भी उनकी इस लोक गायकी से
प्रभावित होने लगे। शुरुआती दौर में चर्च के कार्यक्रमों और शादी समारोहों में मिजो गीत गाती थीं।
आकाशवाणी में भी पंजीकरण कराया था। लोक, धर्म शिक्षा और प्रेम सहित विभिन्न शैलियों में
लगभग 50 से अधिक मिजो गीत रिकॉर्ड किए। लोक संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए
वर्ष 2017 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

सुभद्रा देवी
पेपर मेसी कला को रखा है जीवंत

बिहार के मधुबनी की रहने वाली सुभद्रा देवी को पेपर मेसी कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म
श्री सम्मान देने का निर्णय लिया गया है। 65 वर्षों से अधिक समय से सुभद्रा देवी इस कला में जुटी
हैं। उनकी कृति पर केंद्रित कई आर्ट और क्राॅफ्ट वर्कशॉप का आयोजन किया गया। ब्रिटिश म्यूजियम
और इंटरनेशनल इंडियन फोक आर्ट गैलरी में भी भागीदारी की। सुभद्रा देवी को वर्ष 1980 में राज्य
स्तरीय और वर्ष 1992 में राष्ट्रीय सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

जोधइया बाई बैगा
अपनी कला से आदिवासी महिलाओं और बच्चों के जीवन यापन में कर रहीं मदद

चित्रकला के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वाली मध्य प्रदेश की जोधइया बाई बैगा को चित्रकारी के लिए
पद्म श्री सम्मान देने का निर्णय लिया गया है। अपने हुनर से जनजातीय क्षेत्रों और वहां की
महिलाओं के लिए कार्य कर रही हैं। 200 से ज्यादा आदिवासी महिलाओं और बच्चों को बैगा चित्रकला
का प्रशिक्षण देकर उनके जीवन यापन में मदद कर रहीं हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की
चित्रकारी प्रदर्शनी में उनकी चित्रकारी का प्रदर्शन होता है। उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार के अलावा
महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से भी सम्मानित किया गया है।

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