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वैदिक दर्शन : भारत की तीन गंगाएं 

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      डॉ. विकास मानव 

देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे।

शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले।।

   “रसौ वै सः” 

क्या है ये? 

आत्मा का परमात्मा की तरफ बहना। 

      आपने धुएं को आकाश में विलीन होते हुए देखा होगा। कुछ  धुँवा आकाश में अलग से बादल बना लेता है और कुछ धुवां विलीन हो जाता है। वायु योग के माध्यम से आप इसे प्राणायाम आदि समझ सकते है। जब कर्म की दीवालें गिरती है, तो जहां-जहां से जगह बनती है वहां वहां आत्मा अंदर से बाहर की ओर प्रसार करती है। आपने बादलों में से सूर्य की रोशनी को बाहर निकलते हुए देखा होगा। इसी प्रकार से आत्मा का अंदर से बाहर की ओर प्रसार होता है। 

       जैसे-जैसे कर्म के आवरण गिरते जाते है, जगह बनती जाती है, आत्मा बाहर की ओर बहने लगती है। यही वायु योग है। कई प्रकार के कर्म मिलकर एक शरीर बनाते हैं। इनमें जोड़ होते हैं। इन्हीं जोड़ के खुलने के कारण मनुष्य शरीर पूरा डिस्मेंटल हो जाता है। लेकिन श्राप के कारण ये जोड़ कंक्रीट हो जाते हैं। तो आत्मा बाहर नहीं निकल पाती है। 

        जैसे पहले से कोई रोग है तो उसका इलाज खोज लिया जाता है। उसी प्रकार से मुक्ति के तरीके भी खोजे गए हैं। कपिल मुनि का श्राप था, सगर के 60 हजार पुत्रों को, तो आत्मा अंदर ही कैद हो गई थी। अब जोड़ कैसे खुलें, उस समय तक कोई ऐसा मामला हुआ ही नहीं था, तो इस प्रकार की मुक्ति का विधान भी खोजा नहीं गया था। इन कंक्रीट आवरणों को कैसे नष्ट किया जाए? 

      तो सीधे ही ईश्वरीय सत्ता से एक ऐसा द्रव मांगा गया जो इन कर्मों को घोलकर नष्ट कर दे। जिससे आत्मा मुक्त हो सके। एक का नाम गंगा है, दूसरा आसमान से झरा हुआ अति पवित्र द्रव है जिसे गंगा कहा गया। कपिल मुनि के श्राप को नष्ट करने के लिए परम पवित्र द्रव की आवश्यकता थी, जो सिर्फ आकाश से ही मिल सकता था। इसके लिए भागीरथ ने तपस्या की थी।

      वो गंगा इस धरती पर मुक्ति के उदेश्य से ही आई थी।चूंकि वो आकाश से धरती पर झरा था तो उसका वेग बहुत ज्यादा था। ये है मुक्ति दायिनी गंगा। जो गंगा धरती पर मौजूद थी उसमें ये क्षमता नहीं थी, ये नदी है। जो आकाश से अवतरण हुआ था वो पाप, श्राप आदि को नष्ट करने वाला एक ईश्वरीय प्रसाद था।

      शब्दों के अंदर ही जवाब छुपे हैं। कोई गंगा स्वर्ग में या ब्रह्म लोक में नहीं रहती हैं। स्वर्ग में हम ही रहते है, जब हम पुण्य से पूंजीपति हो जाते हैं तब। ब्रह्म लोक में ब्रह्मा के ही समान लोग रहते हैं। शिव लोक में शिवत्व को प्राप्त लोग रह सकते हैं।जिस गंगा को भागीरथ लेकर आए थे उनका सीधा ही ईश्वर से अवतरण हुआ था, उससे पहले वो अस्तित्व में नहीं थी।

       पुरुष का अवतरण होता है, स्त्री अवतरित होती है। जब हम कहते हैं, गंगा अवतरित हुईं तो इसका सीधा ही अर्थ है, वो ईश्वर का अंश है। जैसे कहते हैं विष्णु के अवतार हुए वैसे ही गंगा अवतरित हुईं। अवतार अपना काम पूरा करके चले जाते हैं।जब गंगा धरती पर पहले से ही थी तो भागीरथ की गंगा कहा चली गईं? 

      जवाब भागीरथ की तपस्या में छुपा है। जब कोई साधना या तपस्या करता है, उससे पहले वो संकल्प लेता है। यदि कोई पंडित आपको कोई कर्मकांड करवाएगा तो पंडित संकल्प दिलाएगा। यदि साधना या तपस्या आप स्वयं कर रहे हैं तो पहले आपको संकल्प छोड़ना होगा। लिया गया संकल्प आपका और आपके इष्ट के बीच एक एग्रीमेंट होता है।

      मैं ये तपस्या करूंगा इसके बदले में मुझे ये फल चाहिए। आपका उदेश्य आपको पहले से ही अंजुली में जल लेकर छोड़ना होता है। तो भागीरथ ने गंगा को धरती पर, अपने पुरखों की मुक्ति के लिए संकल्प किया था। इस प्रकार की तपस्या या साधना अपना कार्य करके प्रभाहीन हो जाती है। वो हमेशा आपके साथ नहीं रहेगी। अगर कोई तपस्या आपके साथ हमेशा रहेगी तो ये बंधन हो गया।

      भागीरथ ने अपने पुरखों की मुक्ति के लिए तपस्या की, गंगा ने उनके पुरखों को मुक्त किया और कहानी खत्म। तो मुक्ति दायिनी वो गंगा है जो भागीरथ लेकर आए थे वो सउदेश्य आई और अपना कार्य करके गईं। इसे संकल्प सिद्धि कहा जाता है। कोई भी साधना या तपस्या बिना संकल्प के नहीं की जा सकती है। भागीरथ का संकल्प इतना ही था कि उनके पूर्वज मुक्त हो।

      एक वेदव्यास की गंगा हैं ये धरती पर अवतरित नहीं हुईं थीं, बल्कि खराब चरित्र के कारण भगाई गईं थी ब्रह्मलोक से। ब्रह्मा ने इन्हें श्राप दिया था, धरती पर मनुष्य होने का और शांतनु से विवाह का। जब ये धरती पर आ रही थीं, तो रास्ते में वसु मिले। वसु देवता हैं, ये आठ भाई हैं जिनके नाम 1.आप 2. ध्रुव 3.सोम 4.धर 5. अनिल 6.अनल 7. प्रत्यूष और 8. प्रभाष हैं। 

      इनमें से प्रभाष ने वशिष्ठ की गाय चोरी कर ली थी।वशिष्ठ ने इन्हें श्राप दिया था। जब गंगा धरती पर आ रहीं थी उसी समय ये वसु भाई भी आ रहे थे। रास्ते में मुलाकात हो गई। तो गंगा से इन्होंने कहा आप हमें जन्म देकर मार देना। आठ में से सात वसु पुत्रों को गंगा ने गंगा में डुबोकर मार दिया था। जिससे उनकी मुक्ति हो गई थी। आठवें भीष्म पितामह थे, जिन्होंने अपनी मुक्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण आने का इंतजार किया था। क्योंकि गंगा से इनकी मुक्ति संभव नहीं थी।

वर्तमान गंगा, शांतनु गंगा के जन्म से बहुत पहले हस्तिनापुर से बहती थी और आज भी वहीं हैं। इन गंगा ने भी सात वसु पुत्रों की गंगा नदी में डुबो के हत्या कर दी थी। इससे उनकी मुक्ति हो गई थी। इन सातों वसु पुत्रों को किसी भी गंगा ने मुक्त नहीं किया था। बल्कि मृत्यु से ही उनकी मुक्ति होनी थी। यदि अन्य किसी तरीके से उनकी मृत्यु होती तो भी उनकी मुक्ति हो ही जाती।

     हमारे सामने तीन गंगा हैं, एक वो जो काशी से होकर बहती हैं, ये हमेशा से इस धरती पर मौजूद हैं। दूसरी जिन्हें भागीरथ तपस्या करके धरती पर अवतरित किया था। ये 60 हजार प्रेतों की मुक्ति के उदेश्य से ही धरती पर आईं थी ये मुक्ति दायिनी गंगा हैं कोई नदी नहीं थी। इसे रस विद्या में शिव के माध्यम से शिवत्व की प्राप्ति कहा जाता है।

      तीसरी गंगा महाभारत की हैं जो एक स्त्री हैं, जिन्होंने शांतनु से विवाह किया और आठ पुत्रों को प्रसव के द्वारा जन्म भी दिया है। पाप नाश करने वाली गंगा पापिनी नहीं हो सकती हैं। जो गंगा अभी वर्तमान हैं वो हमेशा से ही इसी धरती पर मौजूद हैं। हमारे यहाँ गंगा, अकेली नहीं, यमुना, नर्मदा, अन्य सभी नदियों के किनारे लाशें जलाई जाती हैं। मुक्ति और मोक्ष का गंगा से कुछ लेना देना नहीं है। जैसा रोग होता है उसका समाधान भी वैसा ही करना होता है। 

      कबीर इस बात को कह गए हैं यदि गंगा नहाने से मुक्ति होती तो सभी मछलियाँ मुक्त हो गईं होती। लेकिन इससे गंगा या जमुना का महत्व कम नहीं होता है। 

     गंगा तब ज्यादा पावन हो जाती हैं जब सभी उससे दूर रहें। गंदगी न करें। जब से धरती है तभी से काशी है, और काशी बिना गंगा के मूल्यहीन हैं। तो जो गंगा वर्तमान में हैं वो गंगा हमेशा से हैं और हमेशा इस धरती पर बनी रहने वाली हैं।

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