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पेशावर विद्रोह के जनक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली

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 मुनेश त्यागी 

      वीर चंद्रसिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 को हुआ था । परिवार गरीब था अतः इन्हें पढ़ा नहीं पाया। उन्होंने पहले कहार से, फिर ईसाई मास्टर से और फिर गांव के पंडित से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने फौज में भर्ती होकर गढ़वाली सैनिकों के साथ 15 अगस्त 1915 को फ्रांस की लड़ाई में भाग लिया। दूसरी बार गढ़वाल फौज के साथ 1917 में मैसोपोटामिया गए। वहां भीषण कठिनाइयों के बाद तुर्की सेना पर फतह हासिल की। उन्होंने 1918 में बगदाद की लड़ाई में भाग लिया।

     युद्ध क्षेत्र से लौटने के बाद तरक्कियां मिलीं। पहले लांसनायक, फिर नायक और अंत में हवलदार का ओहदा हासिल किया। फ्रांस और मेसोपोटामिया के युद्ध मोर्चों पर गोरे और काले सैनिकों में ऐसा भेदभाव देखा कि अंततः अंग्रेजों के खिलाफ मन में असंतोष और विद्रोह घर कर गया।

      युद्ध मोर्चे से लौटकर लैंसडाउन में आर्य समाज उसे परिचय हुआ तो अपने पुराने विचारों और अंधविश्वासों को तिलांजलि दे दी। अखबारों के माध्यम से हिंदुस्तान की राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करने लगे।राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में अपने विचारों को पलटन में फैलाने लगे कि “अंग्रेजों की नहीं, देश सेवा हमारा परम परम कर्तव्य है।”

       इनके कमरे में ही रात में खिड़कियों पर कंबल डालकर गुप्त मिटिंगे होने लगीं, जहां पर स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सैनिकों की रूपरेखा तैयार होने लगी। अंग्रेजों को इन गतिविधियों की भनक पड़ने पर इन्हें खैबर दर्रा भेज दिया गया और 1929 में इन्हें पेशावर में हरिसिंह लाइंस में रखा गया।

      उन्हीं दिनों कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। समस्त सीमांत प्रदेश और पेशावर में खान बंधुओं के नेतृत्व में खुलेआम नमक तोड़ा जाने लगा और खुदाई खिदमतगार भी उस देशव्यापी आंदोलन में भागीदारी करने लगे। तभी 22, 23, 24 अप्रैल 1930 को पेशावर की विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाएं घटीं। तभी पेशावर के शाहीबाग में हो रही कांग्रेस की बैठक में हो रहे देशवासियों के निश्चय को इन भारतीय सैनिकों ने सुना “ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा हम अपना शोषण नहीं होने देंगे और फिर हमने भी निश्चय कर लिया कि हम भी अपने देशवासियों का साथ देंगे.”

      22 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों ने गढ़वाल पल्टन को जरूरत पड़ने पर गोली चलाने का आदेश दिया और अंग्रेजों ने गढ़वाली सैनिकों को उकसाया कि “मुसलमान हिंदुओं पर अत्याचार करते हैं, उन्हें सताते हैं, उन पर जुल्म करते हैं.” तभी गढ़वाली जी ने अपने साथियों से कहा “यह बात गलत और बेबुनियाद है। आजादी के आंदोलन में हिंदू-मुसलमान सभी शामिल हैं। सरकार देश की इस ताकत को तोड़ना चाहती है आंदोलन को दबाना चाहती है और कल हमें वहां भेज कर अपने भाइयों पर गोली चलाने को कहा जाएगा। मेरा सवाल है कि क्या गढ़वाल इसके लिए तैयार हैं?” सब ने एक स्वर में कहा कि”नहीं, हम अपने भाइयों पर गोली नहीं चलाएंगे.”

     बाद में बैठक में तय हुआ कि हम उन्हें दूसरी जगह ले जाएंगे, गिरफ्तार कर लेंगे, मगर गोली नहीं चलाएंगे और गोली चलाने का आदेश होने पर गढ़वाली ओहदेदार उन्हें तुरंत हुकम देंगे ,,,”सीज फायर, गोली मत चलाओ।” 23 अप्रैल को अंग्रेज अफसर द्वारा हिंदू मुस्लिम आंदोलनकारियों पर गढवाल सैनिकों को, तीन राउंड फायर करो, का आदेश दिया गया। इसके बाद तुरंत ही एक गरजती हुई आवाज आई, “सीजफायर,गढ़वाली सैनिकों गोली मत चलाओ,  और जुलूस पर तनी हुई बंदूकें जमीन पर आ टिकीं। यह सीजफायर यानी गोली मत चलाओ, कहने वाले, महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी वीर चंद्रसिंह गढ़वाली ही थे।

      इसके बाद इन 60 क्रांतिकारी गढ़वाली सैनिकों की वर्दियां, पेटियां उतरवा ली गईं। इस्तीफे कर्नल वाकर को दे दिए गए। जब कर्नल वाकर ने बगावत की बाबत पूछा, तो गढ़वाली जी का लाजवाब उत्तर देखिए, “हम हिंदुस्तानी सिपाही हिंदुस्तान की हिफाजत के लिए सेना में भर्ती हुए हैं, न कि अपने भाइयों पर गोली चलाने के लिए। निहत्थी जनता पर सच्चे सिपाहियों का कर्तव्य नहीं कि गोली चलाएं।”

      इन समस्त बागियों पर मुकदमा चलाया गया, कोर्ट मार्शल द्वारा सजा सुनाई गईं, जिसमें चंद्र सिंह गढ़वाली को आजन्म कारावास, 17 लोगों को लंबी-लंबी सजाएं, 9 लोगों को नौकरी समाप्त और सात लोगों की बर्खास्तगी हुई। पेशावर घटना के बाद देश दुनिया में गढ़वाल और गढ़वाली सेना की कीर्ति फैल गई। चंद्रसिंह भंडारी, “वीर चंद्रसिंह गढ़वाली” हो गए। मशहूर अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने इनका साक्षात्कार लेकर कई पत्रों में छपवाया और देश-विदेश में गढ़वाली सेना और गढ़वाल का नाम रोशन किया।

     जेल में इन्हें 6 वर्षों तक बेड़ियां पहनाई गईं, तनहाई कोठरी में रखा गया। जेल में इनकी मुलाकात साम्यवादी बंदियों कामरेड ज्वाला प्रसाद, पी सी जोशी, पी सुंंदरैया और भगत सिंह के साथी शिव वर्मा और यशपाल से हुई। जहां ये साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होकर पूरी जिंदगी साम्यवादी पार्टी के सदस्य बन गए और तमाम जिंदगी गरीबों, किसानों, मजदूरों, वंचितों और शोषितों की मुक्ति और उत्थान के लिए काम करते रहे, ताकि सदियों से अन्याय और जुल्म के शिकार इन लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिल सके। जेल जीवन में ही गढ़वाली जी इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि “देश की मुक्ति और हित, आतंकवाद में नहीं, बल्कि जनवादी और साम्यवादी कार्यक्रम में हैं” 

      उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार गढ़वाली जी का अंतिम सरकार, 1 अक्टूबर 1979 को लाल झंडे में लपेट कर किया गया और हेमवती नंदन बहुगुणा ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी की। इस प्रकार गढ़वाली जी ने अंग्रेजों की हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने की साजिश को पूर्ण नहीं होने दिया। अपने जीवन और नौकरी को दांव पर लगा दिया और गढ़वाली सैनिकों के मुंह पर कालिख नहीं पुतने दी। सदैव धन्य रहेगी गढ़वाली की कुर्बानी। गढ़वाली सदैव ही नमन वंदन और अभिनंदन के पात्र रहेंगे और सदैव ही प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।

     गढ़वाली जी को चंद्रसिंह भंडारी, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, बड़ा भाई, नैनी जेल में क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया नाम,  कमांडर इन चीफ और कामरेड चंद्रसिंह गढ़वाली के नामों से जाना गया। गढ़वाली जी की प्रेरणा से ही 3000 गढ़वाली सिपाहियों ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज में भर्ती होने का निर्णय लिया था। महापंडित राहुल सांकृत्यायन की शब्दों में, इस तरह पेशावर का विद्रोह, विद्रोहों की एक श्रृंखला पैदा करता है जिसका भारत को आजाद कराने में भारी महत्व है। 1857 के बाद पहली बार भारतीय फौज में हलचल देखी गई थी। इस पेशावर विद्रोह के नेता और जनक वीर चंद्रसिंह ही गढ़वाली थे।

    चंद्र सिंह गढ़वाली ने सपने देखे थे,,,, सबको रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार और सुरक्षा, अंग्रेजी दासता नहीं, भारत की आजादी, हिंदू मुस्लिम एकता, देश की मुक्ति आतंकवाद में नहीं, साम्यवाद में, इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, जनता की सरकार, किसानों मजदूरों का राज और समाज में आमूलचूल परिवर्तन ताकि भारत में हजारों साल से चले आ रहे शोषण, अन्याय, भेदभाव और जुल्मों सितम का खात्मा किया जा सके।

      इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारा देश चंद्रसिंह गढ़वाली के क़र्ज़ को उतार नहीं सकता। आज जरूरत इस बात की है कि भारत के किसान मजदूर आम जनता और सभी मेहनतकश वीर चंद्रसिंह गढ़वाली के इन सपनों को साकार करें और देश में एक ऐसे समाज की स्थापना करें जिसमें शोषण, अन्याय, गैरबराबरी और भेदभाव ना हों, जिसमें समता, समानता हो, सबको रोटी मिले कपड़ा मिले, रोजगार मिले और सब की सुरक्षा हो।

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