सीमा सिरोही
पिछले दिनों वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पोती नाओमी की शादी हुई, जिसमें वह बहुत रिलैक्स्ड दिखे। इसकी वजह भी थी। अमेरिका में पिछले दिनों आए मध्यावधि चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि वोटरों ने कट्टरपंथियों को खारिज कर दिया। इससे लगता है कि बाइडन सरकार की पकड़ बनी रह सकती है। लेकिन उम्र के 80वें पड़ाव पर पहुंचने वाले बाइडन के लिए आगे कई चुनौतियां भी हैं।
- हाउस रिपब्लिकंस के कंट्रोल में है, जो उनके अजेंडे को कमजोर करने की कोशिश करेंगे।
- हो सकता है कि हाउस एक या दो कैबिनेट मेंबरों के खिलाफ अवैध इमिग्रेशन को ‘अनदेखा’ करके अमेरिकी सुरक्षा को खतरे में डालने के मामले की जांच शुरू करे।
- फिर डॉनल्ड ट्रंप तीसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने की हुंकार भर रहे हैं। इससे विदेशी और घरेलू दोनों मोर्चों पर बाइडन सरकार की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
- ट्रंप के खिलाफ चल रही जांच की निगरानी के लिए एक विशेष अभियोजक की घोषणा हुई है, जिसका मतलब है आने वाली परेशानी।
- बाइडन के नामित एरिक गार्सेटी के पास अभी भी सीनेट के वोटों की पुष्टि नहीं हुई है, वहीं उनकी शख्सियत पर भी सवाल उठने लगे हैं। उनके पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के दो नए मामले सामने आए हैं।
अमेरिकी कूटनीति
इस बीच वहां भारत के लिए क्या है? बाइडन के डिप्टी एनएसए जोनाथन फाइनर ने 2022 को भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से अहम साल बताया। उन्होंने वादा किया कि 2023 में भी दोनों देशों के बीच उच्चस्तर पर बातचीत होगी और आने वाला साल इस तरह से और भी अहम होगा। भारत की G-20 प्रेसिडेंसी उनके रडार पर है और इस दौरान अमेरिकी अधिकारी नई दिल्ली के कई कार्यक्रमों को हाइलाइट करने, उनमें हिस्सा लेने और उन्हें बढ़ावा देने की कोशिश करेंगे। बाली में जी-20 बैठक में भारत ने जिस तरह से साझे बयान पर सहमति बनाई, उसकी सभी ने तारीफ की। फाइनर के बयान से भी लगता है कि अमेरिका भारत से खुश है, लेकिन परदे के पीछे की तस्वीर जटिल है। दोनों पक्षों में यह भावना है कि राजनीतिक गर्माहट गायब है। यूक्रेन युद्ध पर भारत के सावधान रुख के बारे में अमेरिकी अधिकारियों के बीच गुस्सा अभी भी बना हुआ है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर लगातार चिंताएं जताई जा रही हैं। भारतीय राज्यों में आने वाले धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर कार्यकारी और विधायी दोनों शाखाएं चिंतित हैं। वहीं भारत की नाराजगी की भी लंबी लिस्ट है।
- सरकार के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने पीएम मोदी का उदाहरण देते हुए बताया कि अमेरिका स्थानीय अदालती मामलों से सऊदी क्राउन प्रिंस को कानूनी प्रतिरक्षा क्यों दे रहा था। यह प्रतिरक्षा उच्च पद के साथ आती है।
- आम लोगों के लिए अमेरिकी वीजा भी दुख की कहानी है। लोगों के फंसे होने की दुखद खबरें हैं, वे अपने बीमार माता-पिता से मिलने नहीं जा सकते हैं, या अमेरिका वापस नहीं जा सकते हैं क्योंकि उन्हें अपने पासपोर्ट में एक नए एच-1बी स्टैंप की जरूरत है।
- अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक बीते रविवार को नई दिल्ली में पर्यटक वीजा के लिए वेटिंग 936 दिनों की थी। जाहिर है, एजेंटों ने इसे अपने लिए अच्छा अवसर बना लिया है और ग्राहकों को परेशान कर रहे हैं।
- अभी भी भारत में कोई अमेरिकी राजदूत नहीं है। केवल टेंपरेरी अधिकारी हैं और उनमें से छह तब से हैं, जब से बाइडन ने पदभार संभाला है।
अड़चनें पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी रुख से भी है। F-16 लड़ाकू विमानों के लिए 45 करोड़ डॉलर का पैकेज, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की ग्रे-लिस्ट से पाकिस्तान को हटाना, अमेरिकी राजदूत डॉनल्ड ब्लूम का अचानक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाने का फैसला और यह कहना कि इसे ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ कहा जाता है, ये बातें दोनों देशों के संबंधों के लिए अच्छी नहीं हैं। इन्हें देखकर दीवार फिल्म का एक डायलॉग याद आता है- ‘मेरे पास मां है’। कुछ इसी तरह से अमेरिका ने भी इन हरकतों से संदेश दिया है कि ‘हमारे पास पाकिस्तान है!’