अग्नि आलोक
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अब भी बैठे हैं गिद्ध उन्हीं दरख्तों पर…!

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किसानों ! तुम जा तो रहे हो…
पर..
वो कीलें देते जाना…..!
कहना रख लो फिर काम आएंगी…!

किसानों ! तुम जा तो रहे हो….
पर…
लखीमपुर खीरी याद रखना…!
हत्यारे अभी भी काबिज है सत्ता पर…!
अभी-अभी फिर से भराए हैं ताज़े ईंधन…!
अपनी-अपनी थार, बुलेरो, पजेरो में…!
रस्ते में टायरों के निशान तरो ताज़ा हैं अभी..!
खेत परती पड़े हैं सारे….!
रक्तबीज की आस में….!

किसानों ! तुम जा तो रहे हो…
पर याद रखना……
प्रधानमंत्री ने कहा था कि
केवल ‘कुछ ‘ हो तुम….!
तो याद रखना बाकियों को भी….
खेत मजूरों को……..!
देना मजूरी सारी की सारी…
जन को शामिल करना….
घर में……,
संगठन में….,
मन में……!

किसानों ! तुम जा तो रहे हो…..
पर याद रखना …….
रोटियां जो बनानी सीखी थी बॉर्डर पर….!
घर में भी बनाना जारी रखना….!
बलविंदर कौर को देना ज़रा आराम….!
करना उनके घुटनों की…..
मालिश ज़रा……..!

किसानों ! तुम याद रखना…….
उन्होंने भी…..
लहराईं थीं बसंती चुन्नियां हर ओर…..!
टीकरी, सिंधु, गाजीपुर बॉर्डर….!
पर सड़क किनारे
सोते हुए……..!
कुचली गईं थीं कई सारी……!
दी थीं शहादतें……..!

अबकी बार जो रुक्का लिखना तो…
लिखना ज़मीनें अपनी बेटियों के नाम भी….!
याद रखना आंदोलन से लौटे हो तो…,
ज़माने से आगे ही बढ़ना….!

इतिहास का सफ़हा…
परचम बन लहराए तो सही…..!

      अमिता शीरीं,

            प्रस्तुकर्ता - श्रीचंद भाटी,ग्रेटर नोयडा,संपर्क - 94663 65740

             संकलन -निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क - 9910629632

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