डॉ. नेहा, दिल्ली
बहुत से लोगों को किसी काम को बार बार करने की आदत होती है। इस मेंटल डिसऑर्डर को ओसीडी (OCD) भी कहा जाता है, जो लोगों में आमतौर पर देखने को मिलती है। हर थोड़ी देर में हाथ धोना मायसोफोबिया कहलाता है।
इस प्रकार के फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति में धूल, मिट्टी और कीटाणुओं के प्रति डर की भावना बनी रहती है।
*मायसोफाबिया किसे कहते है?*
मायसोफोबिया यानि मनोरोग. यह ओबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों के मन मे बार बार अनचाहे विचार उठने लगते हैं। मायसोफोबिया एक प्रकार का फोबिया , जिसमें व्यक्ति हर समय हाथों पर कीटाणुओं और गंदगी रहने के भय का सामना करता है।
मगर बावजूद इसके व्यक्ति खुद को सेटिसफाई महसूस नहीं करता है। मरीज चाहते हुए भी अपने इन विचारों को रोक नहीं पाता है।
इस समस्या से ग्रस्त लोग हाथों को धोने के लिए ज्यादा मात्रा में हैंड वॉश और पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग नहाने में भी सामान्य से ज्यादा वक्त लगाने लगते हैं। अगर वे अपने कार्यों को नहीं दोहराते हैं, तो उन्हें एंग्ज़ाइटी का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा ये लोग चीजों को बार बार चेक करते है। समय के साथ ये समस्या बढ़ने लगती है। ऐसे में डॉक्टरी जांच बेहद आवश्यक होती है।
*लक्षण :*
~हर थोड़ी देर में हाथों को धोना और देर तक धोते रहना
~हाथों को गंदगी से बचाने के लिए दस्ताने पहनना और लोगों से हाथ मिलाने से बचना
~रोजमर्रा की चीजों को कवर करके रखना और साफ सफाई में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना
~कड़ीबद्ध तरीके से कार्यो को करना और अगर कुछ भूल हो जाएं, तो दोबारा से सभी कार्यों को दोहराना
~हैंड सेनिटाइज़र और हैंड वॉश का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करना
~दिन में 2 से 3 बार नहाना और देर तक नहाते रहना.
ये हैं मायसोफोबिया से बचने के उपाय :
*1. कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी यानि सीबीटी :*
फोबिया से ग्रस्त लोगों के मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी फायदेमंद साबित होती है। इससे नकारात्मक विचारों को दूर करके रिएलिटी से अवगत करवाया जाता है। हर समय महसूस होने वाली गंदगी से राहत मिलने लगती है। इसके अलावा एक्सपोज़र थेरेपी की मदद से भी इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
*2. डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ :*
मन का विचलित होना और एक ही कार्य को हर थोड़ी देर में दोहराना मानसिक अस्वस्थता का कारण बन जाता है। ऐसे में डीप ब्रीदिंग की मदद से मन को निंयत्रित करने में मदद मिलती है। साथ ही तनाव और एंग्ज़ाइटी को नियंत्रित किया जा सकता है।
*3. मेडिसिन :*
दवाओं का सेवन करने से मानसिक तनाव से राहत मिलती है। इसके अलावा व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है। हर वक्त कीटाणुओं से घिरे रहने की भावना व्यक्ति को परेशान करने लगती है। डॉक्टर के अनुसार दी दवाओं की मदद से एंग्जाइटी को दूर किया जा सकता है।
*4. सोने और उठने का फिक्स समय :*
देर तक सोना और रात में देर तक जागना व स्क्रीन एक्सपोज़र का बढ़ना तनाव का कारण बनने लगता है। इसके चलते ओसीडी का सामना करना पड़ता है। सोने और उठने का समय तय करने से शरीर में हैप्पी हार्मोन का रिलीज़ बढ़ने लगता है, जिससे व्यक्ति खुद को दिनभर रिलैक्स महसूस करता है।
*5. कैफीन इनटेक निषेध :*
ज्यादा मात्रा में चाय और कॉफी का सेवन करने से ब्रेन अलर्ट रहता है, जिससे नींद न आने की समस्या बढ़ जाती है। कैफीन ब्रेन केमिकल डोपामाइन को स्टीम्यूलेट करती है। इसकी कम मात्रा मूड सि्ंवग, एंगज़ाइटी और तनाव का कारण बनने लगती है। इसके अलावा स्मोकिंग और तंबाकू के सेवन से भी बचे।