कुछ दिन पहले यह कविता लिखी गई थी। आज के हालात फिर कह रहे हैं की हम भूतकाल में भी मिलकर लड़े हैं अट्ठारह सौ सत्तावन की पहली स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई हमने मिलजुलकर लड़ी थी हिंदू मुसलमानों ने मिलजुल कर ली थी। आज जो हमारी समस्याएं हैं उनसे हम एक साथ लड़कर ही निजात पा सकते हैं, अलग-अलग तो हम सामंतवाद और पूंजीवाद के गठजोड़ का शिकार होते रहेंगे। आज के हालात कह रहे हैं कि किसानों मजदूरों नौजवानों विद्यार्थियों महिलाओं सबको एक साथ होकर लड़ना पड़ेगा किसान आंदोलन इसकी गवाही हैं और 16 पार्टियों का गठजोड़ जो भविष्य में बनने जा रहा है उस एकता के बल पर ही हम लोग अपनी बुनियादी समस्याओं का हल कर सकते हैं। इसके अलावा हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है। कुछ समय पहले लिखी गई यह कविता मैं आपके सामने पुनः पेश कर रहा हूं,,,,,
,,,,,, मुनेश त्यागी
घर फूंको या फसल उजाडो,
हत्या करो या खून बहाओ,
जहनों में तुम जहर भरो,
या झूठ कपट की बात करो,
हम साथ रहे हैं साथ रहेंगे।
साझी रही विरासत अपनी,
साझी रही है शहादत भी,
साझी ही थी सियासत अपनी,
साझी रही इबादत भी,
हम साथ चले थे साथ चलेंगे।
जात धर्म की बात करो तुम,
खूंरेजी है धर्म तुम्हारा ,
पुजारी हैं हम अमन प्यार के,
भाईचारा है धर्म हमारा,
हम साथ मरे थे साथ मरेंगे।
इंसान नहीं, शैतान हो तुम,
इंसान की कहां औलाद हो तुम,
लहू पसीना एक है यारों,
दुख और गम भी एक से हैं,
हम साथ जिए थे साथ जियेंगे।
मुस्तरका* थी जंग हमारी
मुस्तरका है जंग हमारी,
मुस्तरका है खान पीन भी,
मुस्तरका है लहू हमारा
मुस्तरका ही जिए मरे थे
मुस्तरका ही जिए मरेंगे।
तुम आग लगाते फिरते हो,
हम आग बुझाते जाएंगे,
तुम मानवता के दुश्मन हो,
हम मानव मात्र के आशिक हैं
हम साथ लड़े थे साथ लडेंगे
हम साथ चले थे साथ चलेंगे।