अग्नि आलोक
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*हम तो ऐसे न थे?

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शशिकांत गुप्ते

करोडों रुपयों के नकली नोट बरामद हुए। हेरोइन मतलब मादक पदार्थ जिसे ड्रग भी कहते है, तादाद में बरामद किया गया।
जहरीली शराब भी बरामद हुई। इसतरह की ख़बर पढ़,सुन कर बहुत आश्चर्य होता है। ड्रग की तादाद किलोग्राम में मापी जाती है। ज़हरीली शराब लीटर में बरामद होती है।
इनदिनों लीटर,किलोग्राम का उच्चारण करते हुए बहुत ध्यान रखना पड़ता है।
उच्चरण करते समय तनिक भी गलती हो जाती है। एक आई टी सेल बवाल मचा देता है।
किसी व्यक्ति के मुँह से गलती से आटे की कीमत लीटर में बताई गई। एक पल में ही भूल को सुधार भी कर लिया और लीटर को किलो कहा गया फिर भी एक आई टी सेल के द्वारा आदतन खिल्ली उड़ाने की कोशिश की गई।
जिस व्यक्ति ने आटे को गलती से लीटर कहा वह व्यक्ति असल में महंगाई पर सावल उपस्थित कर रहा था।
इस विशिष्ठ आई टी सेल को महंगाई की बिलकुल भी चिंता नहीं है। चिंता है तो स्लिप ऑफ टँग की। कारण देश के निपुण वित्त विशेषज्ञ के अनुसार तो देश में महंगाई है ही नहीं?
बहरहाल मुख्यमुद्दा है। तादाद में नकली नोट का और मादक पदार्थ का बरामद होने का?
इसतरह की ख़बर पढ़ते,सुनते ही कानों में कर्कश आवाज गूंजने लगती है। विज्ञापनों में प्रकाशित, प्रसारित स्लोगन स्मृति पटल पर उभर आतें हैं।
1) minimum government maximum governance
(न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन)
2)इस स्लोगन के साथ शारीरिक सौष्ठव का नाप( 56इंच) भी याद आता है।
3) सत्तर वर्ष तक देश का शून्य इतिहास और सत्तर वर्ष तक देश में कचरा था, इस संवाद का भी स्मरण होता है।
4) पूर्व में डायन शब्द महंगाई का पर्यायवाची शब्द होता था,अब डार्लिग शब्द महंगाई का पर्यायवाची बन गया है,यह सामान्यज्ञान भी सीखने को मिलता है।
5) सीमा के पार से एक के बदले दस सिर लाने का दमदार वाक्य कानों में गूंजने लगता है।
6) आतंकवाद और कालाधन को मिटाने की अवधि सिर्फ पचास दिन की होती है,यह बात देश के किसी चौराहे पर ही आकर याद आ जाती है? वैसे वह चौराहा भूतल के नक्शे से तुरंत नदारद भी हो गया है।
यह फेरहिस्त लंबी है। कहां तक याद किया जाए।
उपर्युक्त बातें सोचते हुए कब रात हो गई पता ही नहीं चला,वह तो सड़क पर गश्त लगाते हुए चौकीदार की आवाज सुनाई दी जागतें रहो। तब समझ में आया रात हो गई है।
एक फिल्मी गीत की पंक्तियाँ याद आती है।
देंगे दुःख कब तक भरम के ये चोर
ढलेगी ये रात प्यारे फिर होगी भोर
कब रोके रुकी है,समय की नदियां
घबराके यूँ गिला मत की जे
एक बात गांठ बांध कर रखनी चाहिए। सर्वशक्तिमान ने कोई भी रात ऐसी नहीं बनाई जिसका सवेरा न हुआ हो।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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