ज्योतिषाचार्य पवन कुमार
अलबरूनी ने लिखा है :
‘ज्योतिष शास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में 18 अंकों (इकाई,दहाई,सैकड़ा …) तक की संख्या के लिए नाम हैं जिनमें अंतिम संख्या का नाम परार्ध बताया गया है।’
मैक्समूलर ने कहा :
‘भारतवासी आकाशमंडल और नक्षत्रमंडल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। इन वस्तुओं के मूल आविष्कर्ता वे ही हैं।’
फ्रांसीसी पर्यटक फ्राक्वीस वर्नियर भी भारतीय ज्योतिष-ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं :
‘भारतीय अपनी गणना द्वारा चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की बिलकुल ठीक भविष्यवाणी करते हैं। इनका ज्योतिष ज्ञान प्राचीन और मौलिक है।’
फ्रांसीसी यात्री टरवीनियर ने भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और विशालता से प्रभावित होकर कहा है :
‘भारतीय ज्योतिष ज्ञान प्राचीनकाल से ही अतीव निपुण हैं।’
इन्साइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटैनिका में लिखा है :
‘इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे (अंग्रेजी) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है। संभवत: खगोल-संबंधी उन सारणियों के साथ जिनको एक भारतीय राजदूत ईस्वीं सन् 773 में बगदाद में लाया, इन अंकों का प्रवेश अरब में हुआ। फिर ईस्वीं सन् की 9वीं शती के प्रारंभिक काल में प्रसिद्ध अबुजफर मोहम्मद अल् खारिज्मी ने अरबी में उक्त क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरबों में उसका प्रचार बढ़ने लगा। यूरोप में शून्य सहित यह संपूर्ण अंक-क्रम ईस्वी सन् की 12वीं शती में अरबों से लिया गया और इस क्रम से बना हुआ अंकगणित ‘अल गोरिट्मस’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।’
(चेतना विकास मिशन)