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भोपाल गैस त्रासदी के सवाल कब होंगे हल ?

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सुसंस्कृति परिहा
भोपाल गैस त्रासदी के  37वर्ष पूरे होने को हैं ।गैस त्रासदी यूनियन की नेता रशीदा बी 37सवालों के साथ निरंतर आंदोलनरत हैं कुछ साथी पीड़ितों को मुआवजा दिलाने सुप्रीमकोर्ट के चक्कर दस साल से काट रहे हैं। गैस त्रासदी से प्राप्त दंश तो वे झेल ही रहे हैं दो साल से कोरोनावायरस ने भी बड़ी संख्या में उन्हें शिकार बनाया है।इस ओर किसी का ध्यान नहीं। भोपाल स्थित कैंसर चिकित्सालयों के आंकड़े भी यह बताते हैं कि गैस त्रासदी से अनेक पीड़ित महिलाएं, पुरुष और बच्चे फेंफड़ों के कैंसर से मृत हुए हैं।अन्य बीमारियां भी इन कमज़ोर लोगों को जकड़ लेती हैं अंततः वे अल्पायु में मौत के मुंह में समा रहे हैं।गैस त्रासदी  के बाद जन्म ली पीढ़ी में भी ये लक्षण आ रहे हैं जो चिंता जनक है जिस तरफ ध्यान देना जरूरी है।

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1984 के 2-3दिसंबर के दरम्यान यूनियन कार्बाइड फैक्टी से रिसी मिक गैस से छोला क्षेत्र के आसपास के अनेक परिवार जान बचाने भागने में चल बसे।जो बचे उनमें से दो सप्ताह के अंदर 3787 लोगों की पुष्टि सरकार ने की । जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक  इससे ज्यादा लोग तो त्रासदी के वक्त ही मर गए।कई लोग उस दौरान शहर छोड़कर भाग गए।ये वह दिन था जब अपने लोगों की लाशें छोड़ लोग भाग रहे थे। ऐसे कुछ दृश्य हमने कोविड के दूसरे चरण में भी देखें। रात का कहर जब सुबह सुबह थमा जहरीली गैस कम हुई तब मानवता पर आए इस कहर को देख भोपाल वासी सड़कों पर उतरे और हर तरह की सेवा में जुट गए।नगरनिगम की गाड़ियां शव उठारही थीं।वह बचे तड़फते लोगों को अस्पताल पहुंचाया जा रहा था। चारों ओर मातमी माहौल था।
लेकिन इसी बीच सात दिसंबर को यूनियन कार्बाइड का सी ई ओ वारेन एंडरसन भोपाल पहुंच गया उसे वहां की चिंता थी तभी वह आया लेकिन हमारी तत्कालीन  सरकार के मुख्यमंत्री  अर्जुनसिंह ने उन्हें पहले गिरफ्तार करवाया फिर छै घंटे बाद 2100 डालर के मामूली जुर्माना भरने के बाद सुरक्षित चुपचाप भोपाल से दिल्ली रवाना किया ।जहां से वे अमरीका रवाना हो गए। यहां सरकार की यह मंशा उजागर हुई कि वे नहीं चाहते थे भूमंडलीकरण के दौर में स्थापित एक कारपोरेट के साथ खराब व्यवहार होने पाए।जबकि उन पर रासायनिक आपदा से सम्बंधित प्रावधानों की धारा 30/4Aमें गिरफ्तार किया गया था।यह धारा लापरवाही के कारण लोगों की मौत से सम्बंधित है तथा इस धारा के तहत् अपराधी को अधिकतम दो वर्ष की सज़ा और जुर्माना लगाया जाता है।

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एंडरसन फिर नहीं आए यहां उनके कुछ अधिकारियों पर मुकदमे चले । सामान्य सजा हुई और वे सब भी भाग गए। एंडरसन के मरने के बाद अब सारा मामला  सिर्फ मुआवजे पर आकर टिका है।बताते हैं कि मृत व्यक्ति के परिवार को बहुत कम मुआवजे मिले पीड़ित लोगों को मुआवजे का कुछ अंश ही मिला है।अभी तक वास्तविक मृतकों की संख्या भी सामने नहीं आई है जबकि पीड़ितों की संख्या में भी निरंतर बढ़ोतरी हो रही है।2003के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस त्रासदी से 5,54,895 लोगों को मुआवजा आंशिक तौर पर दिया गया है।तथा 15,310 लोग मृत हुए हैं।2003 के आंकड़ों को ही यदि सच मान लिया जाए तो इस त्रासदी को समझा जा सकता है।जबकि ये आंकड़े भी वास्तविकता से कोसों दूर है।
आज की स्थिति में तो कोरोना और कैंसर के ज़ोर के कारण गैस पीड़ितों की हालत और भी बदतर है । जो गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए चिकित्सालय बने थे उनमें अभी तक गैस त्रासदी से जूझ रहे लोगों के लिए योग्य जानकार चिकित्सकों की कमी बनी हुई है।उनके बच्चों और बचे खुचे परिवारों की माली हालत बहुत खराब है। तथाकथित नि:शुल्क इलाज की लाइन इतनी लंबी होती है कि दैनंदिन मज़दूरी करने वाले को फाकाकशी से गुजरना पड़ता है। पौष्टिक आहार और राशन की उचित व्यवस्था सरकार चाहे तो घर घर पहुंचा सकती है लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं।आए दिन अस्पताल के चक्कर इतनी नियति बन चुकी है।
इसके अलावा वहां पर्यावरण और मानवीय समस्या भी विकराल रूप में मौजूद है।बताते हैं यूनियन कार्बाइड कारखाना में मौजूद 65 एकड़ जमीन जिसे स्मारक बनाकर तकरीबन 365टन जहरीले कचरे के साथ सुरक्षित रखा गया है। वहां सिर्फ दो पुलिस वालों की तैनाती है बच्चे वहां घुसकर खेल खेलते रहते हैं ।इस पर गंभीरता से विचार कर कचरे के निपटान की व्यवस्था होनी चाहिए।एक और महत्वपूर्ण बात उस क्षेत्र में एकत्रित जलजमाव में देखी गई है जहां मछली पालने वालों ने बताया कि यहां की मिट्टी और पानी में जहर है क्योंकि उन्होंने जब यहां मछलियां डालीं तो वे मर गई।संभव है कि उस जहरीले कचरे से बहने वाला जल उस क्षेत्र के आंतरिक स्त्रोंतो में पहुंच रहा हो ।इसकी भी जांच ज़रूरी है। लोगों में अंधापन , विकलांगता और निरंतर बीमारी से अब मानव को मानव से परेशानी भी हो रही है आखिरकार वे भी क्या करें जहां पीड़ाओं का कोई अंत ना हो ?
कुल मिलाकर दुनिया की एक बड़ी त्रासदी जो किसी प्रदेश की राजधानी में होने वाली इकलौती दर्दनाक घटना है उससे प्रभावित लोगों को सामाजिक न्याय मिलना चाहिए।ये दायित्व सरकार का बनता है।37साल बाद भी समस्या यदि बनी हुई है तो यह हमारी न्याय व्यवस्था की देरी और सरकार की सोच की वजह से है। नागरिक समाज का दायित्व है कि वे इस महती समस्या के समाधान में जागरूकता का परिचय देते हुए इन निरापराध लोगों के साथ ताकत बन कर खड़े हों।

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