,मुनेश त्यागी
आजादी के बाद आज हमारा देश एक भयंकर संकट से गुजर रहा है। आज भारत के वर्तमान लुटेरे और शासक वर्ग की वजह से अंधविश्वास, धर्मांता और अज्ञानता की आंधी चल रही है। भारतीय शासक वर्ग संस्कृति की रक्षा के नाम पर वैज्ञानिक नजरिए, तर्कशीलता, प्रगतिशीलता और धर्मनिरपेक्षता की जगह अंधश्रद्धा, संकीर्णता, अंधविश्वास, अज्ञानता और सहिष्णुता को बढ़ावा दे रहा है। समाचार पत्र तांत्रिकों, झाड़-फूंक, जादू टोना, गंडा और ताबीज की महिमा गा रहे हैं। अखबारों में बंगाली बाबा, तांत्रिक, चमत्कारी पुरुष और ज्योतिषाचार्य के विज्ञापन छाप रहे हैं। जप तप, हवन, कर्मकांड और फलित ज्योतिष को विज्ञान बताया जा रहा है।
टीवी चैनलों में मनोकामना पूर्ण करने के यंत्र तंत्र-मंत्र और अंगूठी की बिक्री हो रही है। वशीकरण मंत्र बेचे जा रहे हैं और अंधविश्वासों, पुनर्जन्म और भूत-प्रेत की महिमाएं गई जा रही हैं। समाज के शीर्ष पर बैठे लोगों के आचरण जनता में अंधविश्वास अंधश्रद्धा और चमत्कारों को अनुकरणीय बना रहे हैं। अधिकांश राजनीतिक दलों के नेता इन बाबाओं और प्रवचनकर्ताओं के साथ वोट की खातिर सांठगांठ कर रहे हैं।
विज्ञान और टेक्नोलॉजी की उपलब्धियां मुट्ठी भर हरामखोरों की गिरफ्त में हैं। बहुसंख्यक लोगों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। हमारे देश में करोड़ों लोगों की पहुंच में विज्ञान ज्ञान की रोशनी नहीं है। शिक्षितों की भीड़, वैज्ञानिक, इंजीनियर, वकील, जज, पत्रकार, शिक्षक, गणेश की मूर्तियों को दूध पिला रहे थे। इनमें से अधिकांश आज भी धर्मांता और अंधविश्वासों के गर्त में जा रहे हैं। हमारे शासक वर्ग और धार्मिक स्वार्थी तत्वों ने लोगों का वैज्ञानिक नजरिया विकसित नहीं होने दिया है। वे इसमें तरह-तरह की अवरोध पैदा कर रहे हैं। अब तो कमाल देखिए की संविधान में लिखित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को ताक पर रखकर, भारतीय राज्य और भारत की सरकार मंदिर बनाने के काम में जुट गई है।
पढ़े-लिखे लोग कुतर्कों के जरिए, अंधविश्वासों को सही ठहरा रहे हैं। वैज्ञानिक तरीकों का दुरुपयोग करके बच्चों को पेट में मर जा रहा है। आज भी आदमी कार्य और कारण का ज्ञान, जानने और परखने को तैयार नहीं है। साम्प्रदायिक और स्वार्थी तत्वों ने जनता की ज्ञान विज्ञान की यात्रा को बंद कर दिया है। मध्यकाल में सामंती शासकों ने धर्म के साथ सांठगांठ और गठजोड़ करके धर्मभीरुता, कट्टरता और अंधश्रद्धा को बढ़ाया था। इस अंधे युग में विज्ञान के विकास को रोक दिया था।
15वीं शताब्दी के यूरोप में पुर्नजागरण ने ज्ञान विज्ञान के विकास को आगे बढ़ाया। इसने सामंती शासन की जकडबंदी को तोड़ा, धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास के साम्राज्य को हिलाया और तोड़ा और समाज को तर्कसंगत बनाया, तर्क की कसौटी को आगे बढ़ाया, प्रकृति के रहस्यों से पर्दा उठाया। इस पूरे दौर में वैज्ञान और वैज्ञानिक नजरिए की बेतहाशा बढ़ोतरी हुई थी। पिछली सदी में दुनिया के कई देशों में हुई समाजवादी क्रांतियों ने विज्ञान की संस्कृति को और ज्ञान की साम्राज्य को बढ़ाया और वे देखते-देखते ही दुनिया की महाशक्तियां बन बैठीं।
आज विचित्र स्थिति पैदा हो गई है। आज वैज्ञानिक नजरिया गायब हो रहा है। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, समाजवाद और क्रांति के योग से पूंजीपति वर्ग ने सामंती तत्वों, तरह तरह की धर्मांधताओं और मान्यताओं से समझौता कर लिया है। आज पूंजीवादी देशों में भी कट्टरपंथी, अतार्किक और श्रद्धांध विचारों से गठजोड़ कर लिया गया है और वे उन्हें तमाम तरह की सुविधा और पैसा मोहिया कर रहे हैं और इस जनविरोधी मुहिम को जारी रखने में उनकी तमाम तरह से मदद कर रहे हैं। वे भी वैज्ञानिक विचारों और नजरिये से डरकर भयभीत हो गए हैं।
हमारे देश के पूंजीपति वर्ग ने भी समाजवादी, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों से डरकर सामंतवादी और अंधविश्वासों को बढ़ाने वाली ताकतों से समझौता कर लिया है। आज धार्मिक भावनाओं पर चोट करने की आड़ में प्रगतिशील विचारों का गला घोंटा जा रहा है। सरकार नारियल फोड़ने, हवन, पूजन, भजन और कीर्तन करने में संलग्न है, अंधविश्वासों और अंधश्रद्धाओं को बढ़ाया जा रहा है, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक नजरिया का मजाक उड़ाया जा रहा है। बहुसंख्यक जनता का वैज्ञानिक नजरिया नहीं बनाया गया है, शिक्षित लोग अंधविश्वास और भावनाओं की गिरफ्त में फंस गए हैं।
आज पूंजीपति और सामंतों की सरकार के गठजोड़ का, जनता का वैज्ञानिक नजरिया पैदा करने में कोई विश्वास नहीं है। वे इस काम को नहीं कर सकते, क्योंकि वे जनता के वैज्ञानिक नजरिए और शिक्षित दृष्टिकोण से डर गए हैं। क्योंकि जनता जिस दिन सोच समझकर ज्ञान विज्ञान का नजरिया अपना कर, अंधविश्वासों को छोड़कर, अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी, तो वह विवेक और तर्क की बातें करने लगेगी और अपनी पराजय और पतन के कारण समझने और ढूंढने लगेगी और उस दिन वह पूंजीपत्तियों की सरकार और शासन का तख्ता पलट देगी और उनसे सत्ता छीनकर उन्हें गद्दी से अपदस्त कर देगी।
आज के वैज्ञानिक युग में मध्ययुगीन, अवैज्ञानिक और अतार्किक मानसिकता का प्रभाव होना, बहुत बड़ी चिंता का विषय है। यह हमारे देश और समाज की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन गई है। हालांकि वैज्ञानिक चेतना और दृष्टिकोण के प्रचार प्रसार में कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं सक्रिय थीं, मगर अब उनका प्रभाव धीरे-धीरे बहुत सीमित और कम होता जा रहा है और बहुत सारी जनता उनके प्रभाव से बाहर निकल गई है। वह उनके विचारों को नहीं जानती।
वैज्ञानिक विचार और नजरिए में विश्वास रखने वालों को, संविधान में लिखित वैज्ञानिक संस्कृति की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए, और भारत की सारी जनता में वैज्ञानिक नजरिया उत्पन्न करने के लिए पूरी जनता को अपने साथ लेना पड़ेगा। इसमें राजनीतिक नेताओं, किसानों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, वकीलों, जजों, वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, शिक्षकों, छात्रों, नौजवानों कवियों, लेखकों, नाटककारों, संस्कृति कर्मियों को विशाल पैमाने पर कार्य करना होगा और जनता में वैज्ञानिक नजरिया पैदा करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाना होगा। यह इस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती और जरुरत बन गई है।