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कहाँ तुम चले गए…… जगजीत सिंह के ज़िंदगीनामे पर राजेश बादल की नई किताब 

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प्रकाशक : मंजुल पब्लिकेशन

जगजीत सिंह जब मुंबई में क़िस्मत आज़माने पहुँचे थे तो सिख थे। एच एम वी कंपनी ने उनका पहला रिकॉर्ड जारी किया। रिकॉर्ड के कवर पर प्रकाशित करने के लिए जगजीत की फ़ोटो माँगी। कहा गया कि एक सिख को ग़ज़ल गाते हुए संगीत के शौक़ीन स्वीकार नहीं करेंगे। बेहतर होगा कि जगजीत की फ़ोटो बिना पगड़ी और दाढ़ी के छापी जाए। जगजीत को धक्का लगा।क़िस्मत यह कैसी परीक्षा ले रही थी। रात भर करवटें बदलते रहे। सही है कि मुंबई में सिख को गाते देखकर लोग चौंकते हैं। गायन की तारीफ तो तब करेंगे, जब सुनेंगे।अगर किसी ने कवर देखकर रिकॉर्ड नहीं खरीदा तो वह सुनेगा कैसे ? फिर एक सच्चे नामधारी सिख का बेटा अपने केश दान कैसे कर सकता है ?  

एक तरफ पिता का चेहरा और आस्था तो दूसरी तरफ भविष्य के सपनों का द्वार ।आख़िरकार सपनों ने बाज़ी मारी और जगजीत ने सिख वेश त्यागने का फ़ैसला किया।लेकिन मुश्किल यह थी कि पिताजी को सूचना कैसे दी जाए।पहले सोचा कि लुधियाना में पड़ोस के फ़ोन पर पिताजी से बात की जाए।लेकिन हिम्मत नहीं पड़ी।अंत में बड़े भाई जसवंत सिंह के माध्यम से ही सन्देश देने का निर्णय किया । नौ जनवरी, 1966 को जगजीत ने अपने बड़े भाई को अंतर्देशीय पत्र लिखा। यह पत्र अँगरेज़ी में लिखा गया था।इसमें  लिखा था , 

” बहुत दिनों बाद आपको पत्र लिख रहा हूँ।एच एम वी कंपनी ने 14 जनवरी को मेरी एक रिकॉर्डिंग करने का फ़ैसला किया है। मैं इसमें दो ग़ज़लें गाऊंगा और फरवरी के अंतिम सप्ताह तक इसका रिकॉर्ड जारी हो जाएगा। इस बारे में आपसे एक राय लेना चाहता हूँ। दरअसल फ़िल्म इंडस्ट्री में सिख होना अच्छा नहीं माना जाता।इसी कारण अनेक अवसर मेरे हाथ से निकल चुके हैं।चूँकि मैंने अब बम्बई में ही रहने का फ़ैसला कर लिया है ।यहाँ मुझे एक गायक के रूप में ही क़ामयाबी मिल सकती है। लेकिन यहाँ के लोग एक सिख को गायक के रूप में स्वीकार नहीं करते ।मैं जानता हूँ कि मेरे इस निर्णय से आप लोगों को दुःख पहुंचेगा ,पर मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि मैं सिख वेश से मुक्त हो जाऊँ।कृपया मुझे माफ़ करें और किसी तरह पिताजी को भी समझाने की कोशिश करें “। 

इसके बाद जगजीत सिंह ने अपना धर्म संकट मिस्टर बेरी से साझा किया। मिस्टर बेरी ने भी उसे भविष्य की ख़ातिर सफ़ाचट हो जाने की सलाह दी। जगजीत ने भारी मन से उनकी राय मान ली। मिस्टर बेरी उन्हें अपनी जान पहचान के एक सैलून में ले गए। वहाँ हज्जाम को बताया तो वो हैरान रह गया। उसके जीवन में पहली बार कोई सिख इस तरह सफ़ाचट होने के लिए आया था। उसने कई बार जगजीत को ऊपर से नीचे तक देखा और समझाने की कोशिश की।उसने तो यहाँ तक कहा कि अपने घरवालों से भी एक बार पूछ लेना चाहिए था । लेकिन इससे जगजीत का इरादा नहीं बदला। हारकर बेमन से उसने जगजीत सिंह के बालों पर कैंची चलाई। इधर कैंची चल रही थी, उधर जगजीत के आँसू झर रहे थे। जब हज्जाम पूरा काम कर चुका तो उसने देखा। जगजीत की आँखें बंद थीं और आँसू गालों से लुढ़कते हुए नीचे गिर रहे थे।उसने पूछा भी कि यदि इतने ही दुखी हो रहे हो तो केश क्यों कटवाए । जगजीत सिंह ने बिहार के उस हज़्ज़ाम से कहा ,

” बाबू ! आप नहीं समझोगे कि मैं अपने आप से कितना लड़ रहा हूँ “। 

नए रूप में आने के बाद जगजीत सिंह ने खुद को आईने में देखा तो एक बारगी पहचान ही नहीं पाए। हाँ – इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि वे पहले से अधिक हैंडसम लगने लगे थे – कुछ कुछ दिलीप कुमार या राजेंद्र कुमार की तरह ……..

( इसी किताब का एक अंश )

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