*सरकार की लापरवाही और अफसरों की उदासीनता के कारण अग्निवीर भर्ती के लिए भी क्वालीफाई नहीं कर पा रहे संस्कृत विद्यालय के छात्र*
*विजया पाठक,*
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कथनी और करनी में बड़ा अंतर देखने को मिला है। दरअसल केन्द्र सरकार द्वारा देश के हर राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित किया जाता है। इन संस्कृति विश्वविद्यालय में देश के लाखों युवा अपने सपनों को पंख लगाने के उद्देश्य से इसमें एडमिशन लेते हैं और तीन से चार साल तक लगातार पढ़ाई करते हैं। लेकिन युवाओं का यह परिश्रम बेकार होता दिखाई पड़ रहा है। दरअसल संस्कृत विश्वविद्यालय से मध्यम और प्राक्शाशास्त्री कर नौकरी की तलाश में अग्निवीर भर्ती में पहुंचे युवाओं की शैक्षणिक अर्हता को रद्द कर दिया गया। यानि अग्निवीर जैसी शासकीय भर्ती में भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय से पास हुए छात्रों की मार्कशीट मात्र कचरा बनकर रह गई है। उल्लेखनीय है कि देश में संस्कृत शिक्षा के लिए कुल 18 विश्वविद्यालय और 760 कॉलेज हैं, जिनमें 03 केंद्रीय, 01 डीम्ड और 14 राज्य विश्वविद्यालय शामिल हैं।
*लाखों युवाओं के साथ हुए इस धोखे का जिम्मेदार कौन?*
देश में ऐसे लाखों युवा हैं जो संस्कृत विद्यालय और विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेकर विभिन्न कोर्स में पढ़ाई करते हैं। लेकिन भोपाल के संस्कृत विश्वविद्यालय से सामने आये इस मामले ने लाखों युवाओं के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। अब युवाओं को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह अपनी गुहार किसके पास लगाये। क्योंकि उनके साथ हुए इस धोखे की शिकायत वह कहां और किसके पास करें उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग ने इतने दिनों तक इस पूरे मामले पर संज्ञान क्यों नहीं लिया औऱ न ही इस दिशा में कभी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
*केंद्र के आदेश के बाद भी मान्यता नहीं दे रहे बोर्ड*
भोपाल के आर्यावर्त शर्मा ने 2024 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, भोपाल कैंपस से कक्षा 12वीं (प्राक्शास्त्री) की पढ़ाई की, लेकिन इसे मान्यता न मिलने के कारण किसी कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल रहा। वे सीयूईटी और अग्निवीर भर्ती में आवेदन नहीं कर पाए, क्योंकि ऑनलाइन फॉर्म में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और केंद्रीय संस्कृत विवि का नाम उपलब्ध नहीं। अब उन्हें प्राइवेट 12वीं की पढ़ाई करनी पड़ रही है। समाधान के लिए कैंपस में कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई सहायता नहीं मिली।
*1970 में देशभर में हुई थी संस्कृत विश्वविद्यालयों की स्थापना*
भारत सरकार ने 1970 में संस्कृत शिक्षा के विकास के लिए राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की स्थापना की थी। मई 2002 में इसे बहु परिसरीय मानित विश्वविद्यालय घोषित किया गया, जिसका भोपाल कैंपस साल 2002-03 से संचालित है। 2020 में इसे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में शामिल कर दिया गया। 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों और बोर्ड को सर्कुलर जारी कर स्पष्ट किया था कि उत्तर मध्यमा/प्राक्शास्त्री 11वीं और 12वीं के समकक्ष है, फिर भी कई संस्थान इसे मान्यता नहीं दे रहे हैं।
*जम्मू-कश्मीर के संस्कृत विद्यार्थी भी रोजगार के लिए परेशान*
जम्मू कश्मीर के संस्कृत स्कॉलरों ने अपने भविष्य से जुड़े मुद्दों को लेकर चिंतिंत है। स्कॉलर्स का कहना है कि यदि संस्कृत के साथ यही भेदभाव किया गया तो वे इस भाषा में पढ़ाई जारी नहीं रख पाएंगे। कई शोधकर्ताओं ने यहां तक कहा कि उन्हें इस भाषा के माध्यम से सरकारी नौकरी में उनका हक नहीं दिया जा रहा है। बाबा कैलख देव स्थान के महंत रोहित शास्त्री के अनुसार राज्य सरकार राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान मानित विश्वविद्यालय कोट भलवाल की डिग्रियों को मान्यता नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मान्यता प्राप्त यह विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षो से राज्य में चल रहा है।
*भारत की मातृभाषा के साथ हो रहा अन्याय*
संस्कृत विश्वविद्यालयों के छात्रों के साथ जो घटना हुई उसे देखने के बाद बार बार मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि संस्कृत हमारी मातृभाषा है, यह हमारी ज्ञान की भाषा है, यहां तक की इसी भाषा में वेद, पुराण, रामायण और महाभारत की रचना की गई। लेकिन आज वर्षों बाद भी भारतीय संस्कृत भाषा के साथ हो दुर्व्यवहार हो रहा है वह चिंता जनक है। यह बात सिर्फ युवाओं के रोजगार से जुड़ा चिंता का विषय नहीं है बल्कि यह सबसे बड़ा चिंता कारण है कि हमारी भाषा का अस्तित्व खतरे में आ गया है। चंद अफसरों की लापरवाही और उदासीनता के कारण आज लाखों युवाओं का भविष्य दांव पर लग गया है।
*धर्मगुरु, शिक्षक और प्रोफेसर बन सकते हैं*
अगर संस्कृत में शास्त्री या आचार्य तक की पढ़ाई विद्यार्थी ने कर ली है तो वह आर्मी में धर्मगुरु बन सकता है। स्कूलों में वर्ग एक, दो, तीन का शिक्षक बन सकता है और अच्छा ज्ञान प्राप्त कर ले तो कॉलेज में प्रोफेसर भी बन सकता है। चिकित्सा के क्षेत्र में जाना चाहते हैं तो आयुर्वेद की तरफ बढ़ सकते हैं, जिसमें चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, बागभट्ट जैसे विषयों का अध्ययन कर सकते हैं। इसके अलावा वास्तु ज्योतिष शास्त्र, योग, वैदिक गणित, वेद विज्ञान, इतिहास, 18 पुराण के अध्ययन से अलग-अलग क्षेत्र में जाने की अपार संभावनाएं हैं। शास्त्री की पढ़ाई करने के बाद जिस तरह से अभ्यर्थी ग्रेजुएशन करने के बाद कोई भी एसएससी, एमपीपीएससी या अन्य कंपटीशन एग्जाम दे पाते हैं, उसी तरह शास्त्री के अभ्यर्थी भी एग्जाम देने के पात्र होते हैं।
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