अग्नि आलोक
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 *कौन मचाता शोर?*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी सन 1959 में प्रदर्शित फिल्म Love Marriage के गीत की पंक्तियां गुनगुना रहे थे। गीत लिखा है
गीतकार शैलेंद्र जी ने।
टीन कनस्तर पीट-पीट कर गला फाड़ कर चिल्लाना
यार मेरे मत बुरा मान ये गाना है न बजाना है

मैने सीतारामजी से पूछा गाने की उक्त पंक्तियों को गुनगुनाने का कोई खास मक़सद है आपका?
सीतारामजी ने कहा इन दिनों चारो ओर शोर शराबा मचा हुआ है। ध्वनि प्रदूषण हो रहा है।
मैने सहमति प्रकट करते हुए कहा,ध्वनि प्रदूषण तो सर्वत्र फैला रहा है।
कुछ लोगो को लगता है कि, झूठ को चीख चिल्ला कर प्रकट करने पर झूठ सच हो जाएगा।
सीतारामजी ने मुझसे कहा,आपके कथन पर मुझे शायर अहमद शनास का यह शेर सटीक लगता है।
जानकारी खेल लफ़्ज़ों का ज़बाँ का शोर है
जो बहुत कम जानता है वो यहाँ शह-ज़ोर है

( शह-ज़ोर= बलावन)
मैने कहा सच में इन दिनों देश की शिक्षित भावी पीढ़ी, तादाद में रोजगार प्राप्त करने के लिए,
संघर्ष कर रही है।
आम जनता मूलभूत समस्याओं के लिए सत्ता से गुहार कर रही है,दुर्भाग्य से इनकी आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।
सीतारामजी ने कहा इस मुद्दे पर शायर नसीम सहर का ये शेर प्रासंगिक है।
आवाजों की भीड़ में इतने शोर शराबे में
अपनी भी एक राय रखना मुस्किल है

मैने कहा मुझे भी इसी संदर्भ में शायर यासमीन हबीब रचित ये शेर याद आता है।
हमें भी तजराबा है,बे-घरी का, छत न होने का
दरिंदे, बिजलियाँ काली घटाएं शोर करती है

सीतारामजी ने हमारी चर्चा को विराम देने के पूर्व एक सहज एक प्रश्न उपस्थित किया?
त्रेता युग में दानव राज की आवाज कर्कश होगी?
मैने जवाब दिया त्रेता युग के दानवों की आवाज तो किसी ने सुनी नहीं होगी,लेकिन कल युग में रावण का अभिनय करने वाला हर शख्स कर्कश आवाज में ही बोलता है,अर्थात चीखता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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