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क्यों  बनाई कंगना रनौत ने फिल्म इमरजेंसी !

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 ब्रजेश जोशी 

इंदिराजी के जीवन दर्शन में जिद थीं तो जुनून भी था , सत्ता और सियासत थी तो अपनों से संग्राम भी था । आखिर तमाम तरह के विवादों के बाद स्वर्गीय इंदिरा गांधी पर बनी  कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी  17 जनवरी शुक्रवार को बड़े पर्दे आ ही गई । अब सवाल यह है  कि गांधी परिवार की विरोधी ,परिवारवाद की विरोधी , कांग्रेस राहुल विरोधी कंगना रनौत को इंदिराजी की जीवन यात्रा में ऐसी कौनसी खासियत नजर आई थी कि कंगना ने उन पर फिल्म बना दी ।फिल्म जब बनना शुरू हुई थी तो कंगना ने इंदिराजी के साहस , शौर्य,व्यक्तित्व की खूब तारीफें की थी लेकिन इमरजेंसी के  रिलीज के पहले उनका इंदिराजी के विषय कुछ भी बोल जाना , उनके नीतियों , कार्यशैली पर सवाल उठाना यह बताता है कि कंगना रनौत इंदिराजी से कितनी प्रभावित थी यह वह ही जाने !  फिल्म में ऐसा कुछ विशेष नजर नहीं आया कि फिल्म इंदिराजी के नाम पर दर्शकों को खींच सके । 

इंदिराजी जैसे विराट व्यक्तित्व,प्रभावशाली व्यक्तित्व पर कंगना रनौत ने फिल्म उस विचारधारा के लोगों से प्रेरित होकर ही बनाई है जो इमरजेंसी  को देश का काला अध्याय बताती है और इंदिराजी को सबसे बुरा राजनेता  । कंगना जानती थी कि जिस देश में  india is Indira, indira is india बोला जाता है वहां उन्हें इंदिराजी पर फिल्म बनाकर खूब लोकप्रियता हासिल हो सकती हैं।एजेंडा क्लियर था कि राजनीति के क्षेत्र में आगे जाने है लिए वो उनके हिसाब से चले जिनके लिए इंदिरा गांधी खलनायक थी ।यही कारण था कि जिस फिल्म इमरजेंसी को इंदिराजी की बायोपिक कहकर प्रचारित किया जा रहा है वो मधुर भंडारकर  की इंदु सरकार जैसी ही साधारण फिल्म बनकर रह गई । फिल्म में ना तो भव्यता है ना ही वो खास बातें जो इंदिराजी को  एक कुशल ,कामयाब शासक बताती है ।  

फिल्म इमरजेंसी को हम किसी सूरत में इंदिराजी की बायोपिक तो नहीं कह सकते । क्योंकि इस फिल्म में भी मधुर भंडारकर की तरह कंगना ने भी इंदिराजी ,संजय गांधी पर ही फुल फोकस किया है  । इंदिराजी गले में रुद्राक्ष की माला पहनती थी ,वो धार्मिक भी थी ,सामाजिक भी । लेकिन इस  विषय पर फिल्म में कहीं प्रकाश नहीं डाला गया है, संसद में दी गई उनकी  खास स्पीच भी कहीं नहीं दिखी ।फिल्म में इंदिराजी है तो जयप्रकाश नारायण भी दिखेंगे ,अटलजी भी दिखेंगे ,जॉर्ज फर्नांडिस ,जगजीवन राम भी दिखेंगे, बरुआ भी दिखेंगे , सेना प्रमुख और मोरारजी देसाई भी ।लेकिन फिल्म की शुरुआत में ये कहीं नहीं दिखाया गया है किसने फिल्म में किसका रोल किया है । ये फिल्म देखकर ऐसा नजर आता है कि ये फिल्म सिर्फ उनके लिए बनाई गई  है जो इंदिराजी  के शासनकाल में   ,कांग्रेस पार्टी में कमियां   ढूंढते हैं । देश नहीं सत्ता और सियासत ही इंदिराजी का मिशन था ये सोचते है । 

देश जानता है कि 26 जून 1975  से 1977 का दौर जिसे हम इमरजेंसी कहते है,इंदिराजी के जीवन का भी काला अध्याय था और  आजाद भारत का भी काला अध्याय । मच अवेटेड पॉलिटिकल ड्रामा पर बनी फिल्म इमरजेंसी में फिल्मकार कंगना रनौत ने भी इमरजेंसी में हुई उथल पुथल पर ज्यादा फोकस किया है । फिल्म इमरजेंसी बनाते वक्त उनके रडार पर सिर्फ और सिर्फ दो ही किरदार थे , इंदिरा और संजय गांधी । कंगना ने पूरी फिल्म इन दो किरदारों में ही उलझाकर रख दी ।कहने का अभिप्राय यह है 2017 में इंदु सरकार में जो काम मधुर भंडारकर ने किया कंगना ने उसे नए तरीके से कर दिखाया लेकिन वो भी फिल्म में वो कुछ नहीं दिखा पाई जो लोगों को पता नहीं था । फिल्म का विरोध सिख समाज ने भरपल्ले किया जिसके चलते फिल्म में कांट छांट भी खूब हुई , स्वर्ण मंदिर का सच भी सामने नहीं आ पाया ।  सबसे खास बात ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ उनके लिए ही बनकर रह गई है जो इंदिराजी के  विरोधी थे  । युवा फिल्म से जुड़े ऐसा कुछ फिल्म में है नहीं ! फिल्म मेकिंग देख ऐसा लगता हैं कि निर्देशक जल्द से जल्द इमरजेंसी पर जाना चाहता है  । खूब विवादित होने के  बाद भी  फिल्म पहले दिन दर्शकों को  थियेटर तक नहीं बुला पाई ,अधिकांश सीटें खाली थी । कंगना की फिल्म को आज मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी  कंगना रनौत के साथ देखा ,उनके अभिनय की तारीफ भी की ।वो इंदिराजी पर भी बोले एमरजेंसी पर भी बोले लेकिन उन्होंने इंदिराजी की  कुछ बातों और भारत पाक युद्ध को लेकर  तारीफ भी लेकिन फिल्म में इंदिरा विरोधी  किरदार पाकिस्तान पर जीत के बाद भी इंदिराजी पर सवाल उठाते दिखे । 

फिल्म में कंगना रनौत ने तीन भूमिका निभाई है वो फिल्म की निर्माता भी है ,निर्देशक भी है और नायिका भी ।लेकिन जब आप एक ही फिल्म में तीन भूमिकाओं में होते है तो सभी के साथ न्याय नहीं कर पाते है ।फिल्म निर्माण की दृष्टि से कमजोर है और निर्देशन की दृष्टि से भी ।हां , इंदिराजी पर फिल्म बनाने वाली कंगना ने इंदिराजी को बड़े पर्दे पर बखूबी उतारा है । जिन्होंने इंदिराजी का दौर देखा है वो कंगना के अभिनय की तारीफ करेंगे ।मैं भी मानता हूं कि कंगना रनौत ने अपनी  अभिनय क्षमता से इमरजेंसी में  प्राण फूंकने का काम किया है,सही मायनों में उन्होंने इंदिराजी को जिया है ।लेकिन सवाल यह है कि जिस प्रभावशील व्यक्तित्व ,शख्सियत पर उन्होंने फिल्म इमरजेंसी बनाई है उसमें नीयत और उद्देश्य साफ होता तो फिल्म यादगार बन जाती ।लेकिन कंगना ने फिल्म एक परसेप्शन ( धारणा) को लेकर बनाई है । यही मामला गड़बड़ हो गया  ।या तो कंगना रनौत फिल्म में इंदिराजी की इमरजेंसी पर ही फोकस करती तो हो सकता था कि फिल्म लोगों को खूब पसंद आती ,या फिर उनकी उपलब्धियों पर फोकस करती तो फिल्म लोगों को पसंद आती है । अभिनेत्री ,निर्देशक कंगना रनौत इंदिराजी के जीवन के  स्वर्णिम दौर और इमरजेंसी के काले दौर को बेलेंस करने में नहीं लगती तो एक अच्छी  फिल्म दर्शकों को देखने को मिलती लेकिन फिल्म देखकर ऐसा लगता है कि इंदिराजी पर वो कुछ नहीं दिखाया गया जो देश ओर दुनिया नहीं जानती । सब देखा , सुना सा लगता है ।

कुलमिलाकर  हम तो यही कहेंगे कि कंगना फिल्म बनाते हुए कन्फ्यूज थी कि इंदिराजी को बड़ा बताया जाए या इमरजेंसी में हुए घटनाक्रम को  या इंदिरा विरोधियों को । इसी उलझन में उलझी कंगना ने एक अच्छी बनती फिल्म को मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार बना दिया ,जिसमें इंदिरा थी ,संजय थे लेकिन वो प्रसंग नहीं थे  जिसमें  इंदिराजी को दुर्गा भी बताया गया था ,वो दौर भी नहीं था जब देश में indira is india, Indira is India का नारा  लगता था । फिल्म देखकर लगा कि आखिर कंगना ने यह फिल्म क्यों बनाई । नहीं बनानी थी ।इंदिराजी को उनके व्यक्तित्व को सवा दो घंटे में समेटना संभव नहीं ।हां ,कंगना रनौत के अभिनय को लेकर ये जरूर कह सकते है कि यह फिल्म साबरमती रिपोर्ट तो नहीं बनेगी । हां,मोदी सरकार इस फिल्म को भी कर मुक्त कर सकती है ,,दिल्ली में चुनाव जो है ।जय रामजी की , जय रणजीत,

 ब्रजेश जोशी 

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