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*लोक-संस्कृति : करवाचौथ- व्रत मुझे प्रिया क्यों?*

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      नीलम ज्योति

 यह मेरा तरीका है आभार व्यक्त करने का : उस इंसान के प्रति जो मेरे गर्भ से जन्में हमारे बच्चों लिए सबकुछ करता है। मैं व्रत रखती हूँ बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनी ख़ुशी से। 

अन्न जल त्याग क्यों ?

  क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता अन्न जल जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण वस्तु से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। यह मुझे याद दिलाता है कि हमारा रिश्ता किसी भी चीज़ से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह मेरे जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के होने की ख़ुशी को मनाने का मेरा तरीका है। 

सजना- सवरना क्यों ?

मेरे भूले हुए गहने साल में एक बार बाहर आते हैं। मंगलसूत्र , गर्व और निष्ठा से पहना जाता है। मेरे जीवन में उनके आने से मेहँदी , सिन्दूर ,चूड़ियां सब मेरे लिए अमूल्य हैं। यह सब हमारे भव्य संस्कारों और संस्कृति का हिस्सा हैं। शास्त्र दुल्हन के लिए सोलह सिंगार की बात करते हैं। इस दिन सोलह सिंगार कर के फिर से दुल्हन बन जाने से विवाहित जीवन फिर से खिल उठता है। 

कथा क्यों और वही एक कथा क्यों ?

   एक आम जीव और एक दिव्य चरित्र देखिये कैसे इस कथा में एक हो जाते हैं। पुराना भोलापन कैसे फिर से बोला और पढ़ा जाता है. इसमें स्त्री तर्क से अधिक मासूम परंपरा के समक्ष सर झुकाती हैं। हम सब जानते हैं लॉजिक हमेशा काम नहीं करता। कहीं न कहीं किसी चमत्कार की गुंजाईश हमेशा रहती है। वैसे भी तर्क के साथ दिव्य चमत्कार की आशा किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाती। प्रेम और रिश्ता ‘हृदय’ मांगता है, ‘मस्तिष्क’ नहीं. मस्तिष्क से व्यापार होता है, प्यार का आधार हृदय है.

मेरे पति को भी व्रत करना चाहिए ?

   यह उनकी इच्छा है. वैसे वो तो मुझे भी मना करते हैं। मेरे नहीं मानने पर वे खुद भी रखना चाहते हैं : मगर यह मेरा दिन है और सिर्फ मुझे ही वो लाड़ चाहिए। इनके साथ न तो यह लाड़ बाँटूंगी और न ही इनसे लूंगी। 

भूख- प्यास का नियंत्रण कैसे ?

   कभी कर के देखो क्या सुख मिलता है। कैसे आप पूरे खाली होकर फिर भरते हो. इसका मज़ा वही जानता है, जिसने किया हो। त्याग बिना भोग सिर्फ़ शव है. कुछ फील नहीं कराता ऐसा भोग.

चन्द्रमा की प्रतीक्षा क्यों ?

  असल मे यही एक रात है जब मैं प्रकृति को अनुभव करती हूँ। हमारी भागती ज़िन्दगी में कब समय मिलता है कि चन्द्रमा को देखूं। इस दिन समझ आता है कि चाँद-सी सुन्दर क्यों कहा गया है मुझे।

और हाँ बहनों ! अगर आप पति की इज़्ज़त नहीं करती , फेमिनिस्ट के चक्कर में हो और फालतू के कुतर्को से जूझ रही हो या बाजार के चक्कर में तोहफों का इंतज़ार कर रही हो तो यह व्रत रहने ही दो।

   व्रत कर के किसी पर एहसान नहीं कर रही हो. यह तुम्हारी अपनी शुद्धि के लिए है। अगर करवाचौथ पर बने चुटकुले एक दूसरे को भेजती हो तो बिलकुल ही नहीं मनाओ इसे।

   याद रखो, यह देश सावित्री जैसी देवियों का है जो मृत्यु से भी अपने पति को खींच लायी थी. तो कुतर्कों पर मत जाओ. अंदर की श्रद्धा को जगाओ। (चेतना विकास मिशन).

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