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हम क्यों नहीं समझें रजनीश को?

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नीरज बधवार

इस साल हिंदुस्तान के सबसे प्रीमियम संस्थान में से एक में जाने का मौका मिला। मित्र उस संस्थान में अधिकारी हैं। वही हमें पूरे कैंपस का दौरा करवा रहे थे। कुछ देर में हम उस कैंपस की लाइब्रेरी में पहुंचे। जहां कुछ ऐसी किताबें थी जो शायद कहीं और देखने-पढ़ने को न मिलें। लाइब्रेरी का गलियारा भी बहुत बड़ा था। वहां बहुत सी ऐतिहासिक शख्सियतों की तस्वीरें लगी थीं। लगभग तमाम बड़े मशहूर नाम इसमें शामिल थे। सिवाय एक के, वो थे…रजनीश।

मैंने मित्र से कहा कि इन तमाम बड़े लेखकों, कवियों, दार्शनिकों की लाइब्रेरी में तस्वीर लगाकर हम उनका सम्मान कर रहे हैं, ये अच्छी बात है। मगर हैरानी है कि जो शख्स हिंदुस्तान की ज्ञात तारीख का सबसे बड़ा गुरु है उसकी एक भी तस्वीर यहां नहीं है।

वो संस्थान ही नहीं, इस देश की संसद, विधानसभाएं, सरकारी लाइब्रेरी, सरकारी कार्यक्रम कहीं आपको रजनीश नहीं दिखेंगे। कोई राजनीतिक पार्टी उनके जन्मदिन की बधाई देती नहीं दिखती। कोई नेता उनका नाम लेता नहीं दिखता।

इसका कारण साफ है। जब भी समाज किसी का सम्मान करता है, तो एक तरह से उसके विचारों पर चलने की बात करता है। मगर उस शख्स का क्या करें जिसके बारे में पता ही नहीं कि उसके विचार क्या हैं।

रजनीश ऊपरी तौर पर सेक्स के समर्थक भी हैं और जब आप उनको थोड़ा गहरे समझेंगे, तो लगेगा वो सेक्स के सबसे बड़े आलोचक भी हैं। वो एक ही वक्त में आस्तिक भी हैं और ईश्वर के वजूद पर सवाल उठाने वालों में भी वो सबसे आगे हैं। वो पश्चिम के आधुनिकीकरण के समर्थक भी हैं मगर उसके खोखलेपन के सबसे बड़े आलोचक भी थे। वो भारत से सबसे ज़्यादा नाउम्मीद भी थे और सबसे ज़्यादा आशा उन्हें किसी देश में दिखती थी, तो वो भारत ही था। और जो भी आदमी इस तरह की विरोधाभासी बातों करता हो उसके साथ कोई भला कैसे खड़ा हो। कोई उसका कैसे सम्मान करे। क्योंकि किसी का सम्मान करने का मतलब है कि हम उनके विचारों को भी Own कर रहे हैं। उनके जैसा बनने का आह्वान कर रहे हैं। मगर जब हम अपनी समझ से किसी के विचार की Political Correctness को ही न समझ पाए, तो फिर उनके समर्थक कैसे बनें।

तो आप भी पूछेंगे कि फिर इसमें गलत क्या है। लोगों की, समाज की, सरकार की गलती क्या है। और ये सवाल ही इस पोस्ट को लिखने का असली मकसद है। आखिर हम रजनीश को कैसे समझें।

होता ये है कि जब भी हम किसी को सुनते हैं तो मोटे तौर पर अपनी विचारधारा के लिए तर्क तलाश रहे होते हैं। आज जितने भी लोग राइट विंग या लेफ्ट विंग विचारक होकर नाम कमा रहे हैं उनकी Fan Following के पीछे कौन लोग हैं। ये वो लोग हैं जिन्हें पता है कि इस दुकान से क्या माल मिलता है। जहां इन्हें अपनी मोहब्बत या नफरत के लिए तर्क मिलते हैं। इसलिए एक बार नाम कमाने के बाद किसी भा खास विंग का लेखक-विचारक अपने चाहने वालों को Offend नहीं करता। क्योंकि आप विचारधारा से तो समझौता कर सकते हैं लेकिन अपनी लोकप्रियता से नहीं। अगर आप काले-सफेद के बीच स्लेटी पर भी बात करने लगेंगे, तो काले-सफेद दोनों के प्रशंसकों को रूष्ट कर देंगे।

आप धर्म गुरुओं को सुन लीजिए, प्रवचन करने वालों को सुन लीजिए। वो चाहें गीता की बात करें, राम कथा करें, कुरान का ज़िक्र करें मगर उनकी लोकप्रियता इस चीज़ पर टिकी है कि वो अपनी तकरीर से उस धर्म को मानने वालों में महानता और आत्मगौरव का भाव पैदा कर पाए। जहां उन्होंने इस पर Objectively बोलने की कोशिश की वहीं वो खारिज कर दिए जाएंगे और अपनी लोकप्रियता खो बैठेंगे।

मतलब चाहें आप राइट विंग हों, लेफ्ट विंग, धार्मिक प्रचारक हों या नेता। Ultimately आपकी निष्ठा किसी विचारधारा के प्रति नहीं, उस विचारधारा को खूबसूरती से बयां करने से हासिल की गई आपकी लोकप्रियता रह जाती है। और जिस वक्त आप विचार के बजाए लोकप्रियता के गुलाम हो जाते हैं उसी वक्त आप बौधिक के तौर पर मक्कार हो जाते हैं। वैसे ही मक्कार जैसे मिठाई में मिलावटी खोया मिलाने वाला हलवाई होता है।

चूंकि पूरा समाज ही सरलीकरण के इस फॉर्मूले पर चलता है तो लोग अपनी और एक-दूसरे की ऐसी मक्कारियों को माफ कर देते हैं और अपने वक्त में Relevant बने रहना चाहते हैं। मगर सच Timeless होता है वो किसी किसी के जीवनकाल या सच न बोल पाने की किसी की मजबूरी का मोहताज नहीं होता।

राजेश खन्ना अपने वक्त में सबसे बड़े सुपरस्टार थे मगर आज उनकी की ज़्यादातर फिल्में बहुत बचकानी लगती हैं। कागज के फूल अपने वक्त में फ्लॉप हो गई। कोई भी उस वक्त हीरो की मौत को पचा नहीं पाया। लेकिन बतौर मेकर गुरुदत्त की कंवेक्शन थी कि नहीं इस कहानी में हीरो को मरना ही चाहिए। तो उनकी इसी कंवेक्शन ने उस फिल्म को भारतीय सिनेमा की सबसे महान फिल्मों में शामिल कर दिया।

इसलिए मेरा मानना है कि As a Communicator आपकी निष्ठा, आपकी चिंता आपका वक्त नहीं आपकी Conviction होनी चाहिए। आपको क्या सही लगता है। अगर सही लगता है तो कहिए। लोगों के बुरे मानने की परवाह मत कीजिए। हो सकता है आज लोग में आपके सच को समझने की परिपक्वता न हो लेकिन कल को जब समाज ग्रो कर जाएगा, तो आपके विचार को उसका जायज़ हक ज़रूर मिलेगा। और जब समाज ग्रो करेगा तो कल को कही आपकी बचकानी बातों पर हंसेगा भी फिर चाहे आप अपने वक्त में कितने सार्थक क्यों न रहे हों।

और रजनीश ने इसी लोकप्रियता की, इसी खेमेबाजी की, इस Relevant बने रहने की कभी परवाह नहीं की। सरकारों के लिए भले ही आज भी मान्यता देना मुश्किल हो लेकिन उनकी लोकप्रियता हर दिन बढ़ती जा रही है। हर दिन उनको सुनने-पढ़ने वाले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे हज़ारों लोग हैं जो सहमत या असहमत होने के बजाए सिर्फ सुनने के लिए उन्हें सुन रहे हैं। और बिना किसी अपेक्षा के सिर्फ इसी सुनने या पढ़ने में रजनीश के असल मायने छिपे हैं। मैं अक्सर कहता हूं कि हिंदुस्तान के महान बौद्धिक विमर्श, चिंतन की उसकी हज़ारों सालों की परम्परा को छोड़ भी दें अगर ये देश सिर्फ रजनीश को ही पढ़-समझ ले, तो बहुत कुछ जान सकता है।

खिलाड़ियों की महानता पर बोलते हुए एक दफा डेविड गॉवर ने कहा था कि कोई खिलाड़ी कितना महान है ये उसके रिटायर होने पर ही समझ आता है। तब भी हम उसकी महानता का सही आकलन करते हैं।

शोले पर बोलते हुए जावेद अख्तर ने कहा था कि जब भी आप कुछ बड़ा क्रिएट कर रहे होते हैं तब आपको भी ये अहसास नहीं होता कि आप क्या कर रहे हैं। वक्त बीत जाने पर ही उस काम की महानता का अहसास होता है।

अपनी मौत के बाद आज भी रजनीश जितने सार्थक हैं और जिस तरह उनकी सार्थकता बढ़ती जा रही है ये कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि इस देश को उनकी महानता समझने में शायद अभी कई साल और लगेंगे। मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि कि रजनीश सच्चे अर्थों में भारत के सबसे बड़े गुरु हैं इसलिए उन्हें गुरुओं का गुरू भी कहा जाता है। गुरु रजनीश को उनके जन्मदिन पर सादर नमन।

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