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 ‘भारत रत्न’ का सम्मान करुणानिधि को क्यों नहीं?

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क्या नागरिक सम्मानों के पीछे भी राजनीति होगी? जो काम बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने किया, वही काम तमिलनाडु में करुणानिधि ने किया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि करुणानिधि को ‘भारत रत्न’ का सम्मान क्यों नहीं?

 प्रो. रविकांत

बीते 22 जनवरी, 2024 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इसके 11 दिन पहले से मोदी दक्षिण भारत के तमाम मंदिरों में घूम-घूमकर अनुष्ठान करने में लगे थे। मीडिया के जरिए इस अनुष्ठान को चुनावी माहौल में तब्दील कर दिया गया। भाजपा, संघ, विश्व हिन्दू परिषद और अनेक हिंदूवादी संगठनों ने इस आयोजन को देशव्यापी बना दिया। मीडिया ही नहीं तमाम राजनीतिक विश्लेषक भी यह कहने लगे थे कि राम मंदिर की लहर में मोदी को 2024 में रोकना नामुमकिन है। यानी हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा की जीत तय है, लेकिन 24 घंटे के भीतर नरेंद्र मोदी के एक एलान ने सबको चौंका दिया। 

नरेंद्र मोदी ने जननायक कहे जाने वाले बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने का ऐलान किया। मंडल कमीशन से पहले, कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया था। उन्होंने ओबीसी को कुल मिलाकर 20 फ़ीसदी आरक्षण दिया था, जिसमें अति पिछड़ा वर्ग के लिए 12 फीसदी और पिछड़ा वर्ग के लिए 8 फीसदी आरक्षण निर्धारित था। इसे सामाजिक न्याय के कुशल फॉर्मूले के तौर पर याद किया जाता है। 

बताते चलें कि अति पिछड़ा वर्ग में कारीगर, हुनरमंद और दस्तकार तथा सेवादार जातियां आती हैं। इनके लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान करके कर्पूरी ठाकुर ने बड़ा काम किया था। इसलिए आज अति पिछड़ा तबका उन्हें मसीहा के तौर पर देखता है।

कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ दिया जाना सराहनीय है। लेकिन यहां कई सवाल उठते हैं। क्या यह वास्तव में कर्पूरी ठाकुर का सम्मान है या छिपा हुआ राजनीतिक एजेंडा? क्या नागरिक सम्मानों के पीछे भी राजनीति होगी? जो काम बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने किया, वही काम तमिलनाडु में करुणानिधि ने किया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि करुणानिधि को ‘भारत रत्न’ का सम्मान क्यों नहीं? हालांकि कई और ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में चर्चा हो सकती है। लेकिन यहां मसला सामाजिक न्याय और आरक्षण के जरिए पिछड़ों के सशक्तिकरण का है। इसीलिए कर्पूरी ठाकुर की तरह करुणानिधि की चर्चा जरूरी है। करुणानिधि की चर्चा इसलिए भी क्योंकि तमिलनाडु पहला राज्य है, जिसने सामाजिक न्याय के लिए पिछड़ों को सबसे पहले आरक्षण दिया।

भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर और एम. करुणानिधि

ब्रिटिश हुकूमत की मद्रास प्रेसीडेंसी में सबसे पहले 1921 में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। लेकिन तात्कालिक विरोध के चलते यह 1927 में लागू हुआ। दरअसल, मद्रास प्रेसीडेंसी में आरक्षण लागू करने का ठोस और बुनियादी कारण मौजूद था। इस प्रेसीडेंसी में ब्राह्मणों का वर्चस्व और पिछड़े-दलितों की बड़ी दयनीय स्थिति थी। आंकड़ों के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्राह्मण आबादी केवल 3.2 प्रतिशत थी, लेकिन (1912 में) 55 प्रतिशत डिप्टी कलेक्टर, 72.6 प्रतिशत जिला मुंसिफ और 83 प्रतिशत उपन्यायाधीश के पदों पर ब्राह्मण काबिज थे। 1921 की जनगणना के अनुसार तीन चौथाई ब्राह्मण शिक्षित थे। जबकि यहां पर देवदासी जैसी अमानवीय प्रथा मौजूद थी। जमीनों पर एक खास तबके का कब्जा था। दलितों-पिछड़ों का शोषण और उत्पीड़न होता था। इसके खिलाफ मद्रास प्रेसिडेंसी में 1915-16 में पिछड़ी जातियों के नेतृत्व में जस्टिस आंदोलन शुरू हुआ। इसे द्रविड़ आंदोलन भी कहा गया। सी.एन. मुद्लियार, टी.एन. नायर, त्यागराज चेट्टी जस्टिस आंदोलन के मजबूत स्तंभ बने। आगे चलकर जस्टिस आंदोलन एक राजनीतिक दल में तब्दील हो गया। 1920 में जस्टिस पार्टी ने पहला चुनाव जीता। देवदासी प्रथा को समाप्त किया गया। भूमि सुधार लागू किए गए। दलितों की वंचना को गैर-कानूनी घोषित किया गया। आगे चलकर जस्टिस पार्टी और द्रविड़ आंदोलन के साथ ई.वी. रामास्वामी पेरियार जुड़े। इससे पहले पेरियार 1919 में कांग्रेस के सदस्य थे। उन्होंने गांधी के साथ 1924 में वायकॉम सत्याग्रह में भाग लिया। लेकिन 1925 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि कांग्रेसी ब्राह्मण दलितों के साथ भेदभाव करते थे। 1926 में पेरियार ने दलितों-पिछड़ों के स्वाभिमान को जगाने के लिए आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया। वहीं वर्ष 1939 में पेरियार जस्टिस पार्टी के प्रमुख बने। फिर 1944 में उन्होंने इसका नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया। बाद में पार्टी का एक समूह अलग हो गया और 1949 में सी.एन. अन्नादुरई ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) का गठन किया।

द्रविड़ आंदोलन ने ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती दी। इसमें पेरियार की बड़ी भूमिका थी। तमिलनाडु में जल्दी ही कांग्रेस की जगह द्रविड़ राजनीति ने ले ली। 1967 में अन्नादुरै मुख्यमंत्री बने। 1968 में मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु हो गया। वर्ष 1957 में पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले करुणानिधि ने 13 बार जीत हासिल की। हमेशा अपराजेय रहने वाले करुणानिधि 1969 में पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1971 तक तमिलनाडु में कुल आरक्षण 41 प्रतिशत था। लेकिन 1969 में अन्नादुरै के निधन के बाद जब एम. करुणानिधि मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने सत्तनाथन आयोग का गठन किया, जिसकी अनुशंसाओं के आलोक में वहां पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 31 और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया। इस प्रकार कुल आरक्षण 49 प्रतिश्त हो गया। इसके बाद 1980 में आईडीएमके की एमजी रामचंद्रन सरकार ने पिछड़े वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया और तमिलनाडु में कुल आरक्षण 49 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया। हालांकि इसके पीछे की वजह भी करुणानिधि ही थे। दरअसल हुआ यह था कि एमजीआर ने पहले आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर का प्रावधान करते हुए यह तय किया था कि यह लाभ उन्हें ही मिलेगा जिनकी सलाना आय प्रति वर्ष 9 हजार रुपए से कम होगी। इसका तीखा विरोध करुणानिधि ने किया। इसके कारण जनता के बीच अपनी लोकप्रियता दुबारा पाने के लिए एमजीआर ने आरक्षण को बढ़ाकर 68 प्रतिशत किया। 

ये आंकड़े गवाह हैं कि तमिलनाडु में सामाजिक न्याय के लिए बहुत स्पष्ट नियम और नीतियां बनाई गईं। इसीलिए यह सवाल पूछा जा रहा है कि पिछड़ा समाज से आने वाले और पिछड़ों के लिए सामाजिक न्याय को बड़ी मजबूती से लागू करने वाले करुणानिधि को ‘भारत रत्न’ क्यों नहीं? क्या नागरिक सम्मान भी राजनीतिक जरूरत के हिसाब से दिए जाएंगे? क्या लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कर्पूरी ठाकुर को सम्मान दिया गया? बिहार में भाजपा की खिसकती जमीन को बचाने के लिए और खासकर अति पिछड़ों के बीच पैठ बरकरार रखने के लिए कर्पूरी जी को ‘भारत रत्न’ दिया गया है। यह महज छलावा है। इसका प्रमाण यह है कि 1978 में जब कर्पूरी ठाकुर ने आरक्षण लागू किया था तो भाजपा की पूर्व पार्टी जनसंघ ने उनकी सरकार को दिया गया समर्थन वापस ले लिया था और तमाम जनसंघियों (वर्तमान में भाजपा) ने खुलकर गालियां दी थी-

‘ई आरक्षण की नीति कहां से आई, करपुरिया की माई …!’

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3 जून 1924 को जन्‍मे मुत्तुवेल करुणानिधि एक भारतीय राजनेता और तमिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं। वे तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीतिक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम के प्रमुख हैं। करुणानिधि 1969 में डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई की मौत के बाद से इसके नेता हैं। आइये जाने उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें।

पांच बार बने मुख्यमंत्री
मुत्तुवेल करुणानिधि पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) तमिलनाड़ के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में चुनाव में लगातार अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है।

नाटककार और पटकथा लेखक
करुणानिधि तमिल सिनेमा जगत के एक पटकथा लेखक और नाटककार भी हैं। उनके चाहने वाले उन्हें कलाईनार यानि “कला का विद्वान” कहकर बुलाते हैं। एक पटकथा लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया और समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर हुए।

बड़े सितारों को दिया मौका
उन्होंने तमिल सिनेमा जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया।

सामाजिक विषयों पर फिल्में
करुणानिधि ने विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय को शामिल किया। जैसे-जैसे उनकी सामाजिक संदेशों वाली फ़िल्में और नाटक लोकप्रिय होते गए, वैसे-वैसे उन्हें सेंसरशिप के दवाब का सामना करना पड़ा। 1950 के दौरान उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया।

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राजनीति में प्रवेश
जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था।

पत्रकारिता से जुड़ाव
उन्होंने मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार शुरू किया। बाद में उन्होंने छात्रों के लिए एक अखबार चालू किया जो डीएमके दल के आधिकारिक अखबार मुरासोली के रूप में सामने आया। इसके अलावा उन्होंने कुडियारसु के संपादक के रूप में काम किया है और मुत्तारम पत्रिका को भी अपना काफी समय दिया है। वे स्टेट गवर्नमेंट्स न्यूज़ रील, अरासु स्टूडियो और तमिल एवं अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाली सरकारी पत्रिका तमिल अरासु के भी संस्थापक हैं।

तमिल साहित्य में अपने योगदान
करुणानिधि तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने तिरुक्कुरल, थोल्काप्पिया पूंगा, पूम्बुकर के लिए कुरालोवियम के साथ-साथ कई कविताएं, निबंध और किताबें लिखी हैं।

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करुणानिधि की लिखी किताबें
रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर, और तिरुक्कुरल उरई . उनकी कहानी और कविता की पुस्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है।

नाटक
करुणानिधि के नाटकों में विशेष रूप से मनिमागुडम, ओरे रदम, पालानीअप्पन, तुक्कु मेडइ, कागिदप्पू, नाने एरिवाली, वेल्लिक्किलमई, उद्यासूरियन और सिलप्पदिकारम के नाम लिए जाते हैं।

स्क्रिप्ट राइटिंग
20 वर्ष की उम्र में करुणानिधि ने ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखक के रूप में कार्य शुरु किया। उन्होंने पहली फिल्म राजकुमारी लिखी। उन्होंने कुल 75 पटकथायें लिखी हैं। अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा, अम्मियापन, मलाई कल्लन, रंगून राधा, राजा रानी, पुदैयाल, पुदुमइ पित्तन, एल्लोरुम इन्नाट्टु मन्नर, कुरावांजी, ताइलापिल्लई, कांची तलैवन, पूम्बुहार, पूमालई, मनी मगुड्म, मारक्क मुडियुमा?, अवन पित्तना?, पूक्कारी, निदिक्कु दंडानई, पालईवना रोजाक्कल, पासा परावाईकल, पाड़ाद थेनीक्कल, नियाय तरासु, पासाकिलिग्ल, कन्नम्मा, यूलियिन ओसई, पेन सिन्गम और इलइज्ञइन।

गीतकार भी हैं
करुणानिधि ने विश्व शास्त्रीय तमिल सम्मलेन 2010 के लिए आधिकारिक विषय गीत “सेम्मोज्हियाना तमिज्ह मोज्हियाम” लिखा जिसे उनके अनुरोध पर ए. आर. रहमान ने संगीतबद्ध किया।

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विवाद
करुणानिधि पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप हमेशा लगता रहा है। करूणानिधि के विरोधियों, उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों और अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने करूणानिधि इस बात को बढ़ावा देने और नेहरु-गांधी परिवार की तरह एक राजनीतिक वंश का आरम्भ करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। डीएमके को छोड़ कर जाने वाले नेता वाइको की आवाज़ सबसे बुलंद है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एम. के. स्टालिन और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए एक खतरे के रूप में वाइको को दरकिनार कर दिया गया। उनके भतीजा स्वर्गीय मुरासोली मारन एक केन्द्रीय मंत्री थे हालांकि ये भी सच है कि 1969 में करूणानिधि के मुख्यमंत्री बनने से काफी समय पहले से वे राजनीति में थे।

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भ्रष्टाचार का आरोप
उन पर सरकारिया कमीशन द्वारा वीरानम परियोजना के लिए निविदाएं आवंटित करने में भष्टाचार का आरोप लगाया गया। करुणानिधि, पूर्व मुख्य सचिव के. ए. नाम्बिआर और अन्य कई लोगों के एक समूह को चेन्नई में फ्लाईओवर बनाने में भष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें और उनकी पार्टी के सदस्यों पर आईपीसी की धारा 120 (b) (आपराधिक षड्यंत्र), 167 (घायल करने के इरादे से सरकारी कर्मचारी द्वारा गलत दस्तावेज का निर्माण), 420 (धोखाधड़ी) और 409 (विश्वास का आपराधिक हनन) और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा 13(1)(d) के साथ 13(2) के तहत कई आरोप लगाए गए लेकिन उनके और उनके बेटे एम. के. स्टालिन के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।

राम सेतु से संबंधित टिप्पणियां
करूणानिधि ने भगवान राम के वजूद पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि कहा जाता है कि 17 लाख्ा साल पहले राम नाम के व्यक्ति ने बिनाछुए समुद्र पर पत्थरों से पुल बनाया। ये राम कौन है और उसने किस इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री ली इसका कोई प्रमाण है। इस बात पर बबाल खड़ा हो गया और हर ओर से उन पर हमले किए जाने लगे। लेकिन इन बयानों के जवाब में करुणानिधि ने बेखटके कहा कि “राम के वजूद के दावे को सही साबित करने के लिए यहां न तो वाल्मीकि मौजूद हैं और न ही राम। यहां केवल एक ऐसा समूह है जो लोगों को बेवक़ूफ़ समझता है। वे गलत साबित होंगे।

एलटीटीई से संबंध
राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में करूणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। अप्रैल 2009 में करूणानिधि ने भी एक विवादस्पद टिप्पणी की थी कि प्रभाकरण उनका अच्छा दोस्त है, और यह भी कहा कि राजीव गांधी की हत्या के लिए भारत एलटीटीई को कभी माफ नहीं कर सकता।

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कई शादियां और बच्चे
पहले करूणानिधि मांसाहारी थे लेकिन अब शाकाहारी हो गये हैं। उनका दावा है कि उनकी स्फूर्ति और सफलता का रहस्य उनके द्वारा दैनिक रूप से किया जाने वाला योगाभ्यास हैं। उन्होंने तीन बार शादी की, उनकी पत्नियां हैं पद्मावती, दयालु आम्माल और राजात्तीयम्माल। एम.के. मुत्तु, एम.के. अलागिरी, एम.के. स्टालिन और एम.के. तामिलरसु उनके बेटे हैं। सेल्वी और कानिमोझी बेटियां हैं। पद्मावती जिनकी काफी पहले मृत्यु हो गयी उनके सबसे बड़े पुत्र एम.के. मुत्तु हैं। अज़गिरी, स्टालिन, सेल्वी और तामिलरासु दयालुअम्मल की संताने हैं। जबकि कनिमोझी उनकी तीसरी पत्नी राजात्तीयम्माल की पुत्री हैं।

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