राकेश पासवान
रामभद्राचार्य कह रहे हैं कि जो राम को नहीं भजेगा, वह चमार है। यह जितना निंदनीय है, उतना ही दंडनीय भी है। संत रामभद्राचार्य को तत्काल दंडित करना चाहिए। इसके साथ ही उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए। (यदि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य को लोक स्थान पर अपमानित या शर्मिन्दा करने के आशय से “चमार” कहा गया था, तो यह सचमुच अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के अन्तर्गत अपराध है। यह बात स्वरन सिंह बनाम स्टेट धू स्टैंडिंग काउंसिल, 2008 के मामले में कही गई है।)
रामभद्राचार्य भाजपा के कार्यकर्ता हैं। इसलिए उनके खिलाफ योगी सरकार कोई कार्रवाई नहीं करेगी। लेकिन आप सभी एससी, एसटी, ओबीसी को आने वाले 22 जनवरी को डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित 22 प्रतिज्ञाएं सभी जनपदों में पढ़नी चाहिए। क्योंकि इनका सबसे सही और सटीक जवाब बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएं ही हो सकती हैं। और इस रामभद्राचार्य के खिलाफ एफआईआर लिखवा कर गिरफ्तारी की मांग करनी चाहिए जिससे की दुबारा इस तरह का बयान देने का कोई दुस्साहस न करे।
रामभद्राचार्य से पूछा जाना चाहिए कि अपने तथाकथित धर्म शास्त्रों के अध्ययन अनुसार बताएं कि धृतराष्ट्र की तरह इन्होंने कौन से पाप किए थे जो आंख से ही नहीं मन और बुद्धि से भी अंधे हो गए हैं इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।
इस तरह के बयान आए दिन क्यों आते हैं?
डॉ. बीआर अंबेडकर के हिन्दू धर्म की खिलाफत करने से उस समय के हिन्दू संगठन खुद को असहज महसूस करते रहे। लेकिन दलित पिछड़े हिन्दू धर्म के साथ बने रहें इसलिए कभी-कभी दलितों पिछड़ों को भी हिन्दू धर्म का पोषक बनाने में ये पंडे पुजारी लगे रहते हैं। पंडे-पुजारी जातिवादी बयान इसलिए देते हैं जिससे कि दलित पिछड़े मंदिरों में जाने के लिए और सबसे अच्छे हिन्दू खुद को दिखाने के लिए, हिन्दू धर्म का चोला पहन कर घूमते रहें और उसपर गर्व करते रहें, जिससे कि इन समंतियों की दुकान चलती रहे।
संघ और उससे जुड़े संगठन राष्ट्रगान, बीफ़, गोरक्षा और राम मंदिर पर जो तेवर दिखा रहे हैं, वो तो केवल आगाज़ है। रामभद्राचार्य ही नहीं बल्कि आरएसएस प्रमुख मोहन भावगत ने पूरे देश में गो हत्या रोकने वाला क़ानून लागू करने की वक़ालत की। आरक्षण पर पुनर्विचार का बयान भी वो पहले दे चुके हैं।
हिंदू संस्कृति को पूरे भारत के लिए आदर्श जीवन संहिता बनाना संघ का घोषित लक्ष्य है। महिलाओं के लिए ड्रेस कोड, लव जिहाद के विरुद्ध अभियान आदि तो चलते ही रहते हैं।
डॉक्टर आंबेडकर ने 1940 में ही धर्म आधारित राष्ट्र पाकिस्तान की मांग पर आगाह करते हुए कहा था, “अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा। हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक ख़तरा है। इस आधार पर लोकतंत्र के लिए अनुपयुक्त है। हिंदू राज को हर क़ीमत पर रोका जाना चाहिए।”
आज से लगभग 81 वर्ष पहले जिस ख़तरे के प्रति आंबेडकर ने आगाह किया था, वो आज भारत के दरवाज़े पर पुरज़ोर तरीके से दस्तक दे रहा है। भले ही संविधान न बदला गया हो और भारत अभी भी, औपचारिक तौर पर धर्म निरपेक्ष हो, लेकिन वास्तविक जीवन में हिंदुत्ववादी शक्तियां समाज-संस्कृति के साथ राजसत्ता पर भी प्रभावी नियंत्रण कर चुकी हैं।
आंबेडकर हर हालत में भारत को हिंदू राष्ट्र बनने से रोकना चाहते थे क्योंकि वे हिंदू जीवन संहिता को पूरी तरह स्वतंत्रता, समता, बन्धुता का विरोधी मानते थे। उनके द्वारा हिंदू राष्ट के विरोध का कारण केवल हिंदुओं का मुसलमानों के प्रति नफ़रत तक सीमित नहीं था।
सच तो यह है कि वह ‘हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों की तुलना में हिंदुओं के लिए ज़्यादा ख़तरनाक मानते थे।’ वे हिंदू राष्ट्र को दलितों और महिलाओं के ख़िलाफ़ मानते थे। आज वो तमाम चीजें दिख रही हैं समाज संविधान और इस देश की संस्कृति सभ्यता की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है दलित पिछड़े उन्ही की पिच पर खेल रहे हैं आज भी वो अपनी पिच तैयार नहीं कर पाएं हैं!