भीष्म साहनी का प्रसिद्ध उपन्यास ‘तमस’ इन दिनों साहित्य और कला जगत में खूब चर्चा बटोर रहा है. इसकी वजह है राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) द्वारा स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर यानी 14 अगस्त को होने वाले ‘तमस’ नाटक का रद्द होना. नाटक का मंचन रद्द होने की चर्चा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस कार्यक्रम में भारत सरकार के तीन मंत्री, और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष भी शामिल होने वाले थे.
नाटक का मंचन रद्द करने के पीछे आरएसएस से जुड़े लोगों और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों की भूमिका सामने आ रही है. विरोध करने वालों का तर्क है कि यह एक वामपंथी लेखक द्वारा लिखा गया उपन्यास है और इस उपन्यास में सांप्रदायिक हिंसा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है. यह भी महत्वपूर्ण है कि जिस आखिरी वक्त में नाटक को स्थगित करने की घोषणा की गई उस समय तक इसके शत प्रतिशत टिकट बिक चुके थे.
एनएसडी द्वारा जारी पोस्टर के मुताबिक, यह नाटक दिल्ली के मंडी हाउस स्थित अभिमंच ऑडिटोरियम में दोपहर दो बजे होना तय था. इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी, विशिष्ठ अतिथि के तौर पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और विदेश राज्य मंत्री मानाक्षी लेखी को शामिल होना था. इनके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय भी कार्यक्रम में उपस्थित रहने वाले थे. इसकी अध्यक्षता एनएसडी के निदेशक रमेश चंद्र गौड़ करने वाले थे.
हमने इस विवाद की पड़ताल में पाया कि भारतीय जनता पार्टी से पूर्व राज्यसभा संसद बलबीर पुंज ने सबसे पहले इस नाटक का विरोध शुरू किया था. पुंज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं. उन्होंने संघ से जुड़े एक व्हाट्सएप ग्रुप में इस नाटक के खिलाफ एक लंबा संदेश लिखा. जिसका मजमून कुछ यूं था-
‘मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का उपरोक्त निमंत्रण देखा, तो एक बार फिर समझ में आया कि सरकार भले ही हमारी हो, परंतु सत्ता में आज भी वही लोग बैठे हैं, जो आजादी के बाद से इस देश पर शासन कर रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ‘तमस’ का आयोजन क्यों?
‘तमस’ भीष्म साहनी की रचना है, जो फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के सहोदर भी थे. दोनों भाई घोषित रूप से वामपंथी थे. ‘तमस’ का प्रकाशन वर्ष 1973 में हुआ था. इस उपन्यास में सांप्रदायिक हिंसा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया गया था. तत्कालीन जनसंघ और आरएसएस ने इस उपन्यास में प्रस्तुत गलत तथ्यों पर अपनी आपत्ति भी जताई थी.
इस पृष्ठभूमि में जब 14 अगस्त, 2023 को दोपहर 2 बजे से दिल्ली में मंडी हाउस स्थित एक सभागार में ‘तमस’ आधारित मंचन हो रहा है, तो बकौल निमंत्रण-पत्र, उसमें भाग लेने वाले सभी बंधु अपने ही हैं. क्या हम बौद्धिक रूप से आज भी इतने दिवालिए हैं कि विभाजन की विभीषिका और उसे प्रेरित करने वाली मानसिकता को प्रस्तुत करने के लिए हमारे पास कोई साहित्यिक विधा नहीं है? यदि हमें इन्हीं सभी झूठों को दोहराते रहना है, तो हमारे चिंतन और अस्तित्व का कोई औचित्य नहीं है.
मैं आपके साथ यह विचार किसी रोष-क्षोभ से नहीं, अपितु शोक और दुख के साथ साझा कर रहा हूं. यदि फिर भी किसी को मेरे शब्दों से ठेस पहुंची हो, तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं.”
जानकारी के मुताबिक, पुंज के इस संदेश पर एक बड़ा दक्षिणपंथी धड़ा सक्रिय हो गया. उसने सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर सरकार से विरोध दर्ज करवाया और नाटक को रद्द करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.
इस बाबत बलबीर पुंज कहते हैं, “आपको जो पूछना है एनएसडी से पूछिए मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है. यह एनएसडी का शो था इसलिए उन्हीं से बात कीजिए.”
जिस व्हाट्सएप ग्रुप में पुंज ने यह बात कही थी, उसके एक सदस्य से हमने बात की. उन्होंने बताया कि ग्रुप में उनका (पुंज) का संदेश आने के बाद तमाम लोगों ने ‘तमस’ उपन्यास में सांप्रदायिक बातों का हवाला देते हुए आपत्ति दर्ज करना शुरू कर दिया.
इन लोगों ने एनएसडी के अध्यक्ष रमेश चंद्र गौड़ और उपाध्यक्ष भरत गुप्त से भी अपना विरोध दर्ज किया. इतना ही नहीं इस ग्रुप में एनएसडी के जुड़े लोगों को काफी खरी-खोटी सुनाई गई.
उनका कहना है, “ग्रुप में सारे लोग बिफरे हुए हैं. इन लोगों का कहना है कि जिन लोगों को अपना समझकर सांस्कृतिक संगठनों में भेजा था वह सब उल्टा सीधा काम कर रहे हैं. राम बहादुर राय इस कार्यक्रम में अथिति के तौर पर जाने वाले थे. उनसे भी सब लोग नाराज हैं.”