रश्मि त्रिपाठी
योजना आयोग का नाम जब भी सुनने में आता था तो सच बताऊं समझ नही आता था कि एक ऐसा आयोग जो कि संवैधानिक नही है पर इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?
समझने पर पता चला कि चूंकि ये जरूरी तो नही कि ब्यूरोक्रेसी में सब विद्वान ही हों।
क्योंकि नेताओं के लिये योग्यता का कोई पैमाना नही होता है ।
इसलिए कुछ टैलेंटेड लोगों को लेकर नेहरूजी ने एक संस्था बनाई और इसे खुद अपने अंडर में रखा पर सबकी सलाहों से काम किया , आगे चलकर ये देश के लिये बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई , अच्छे पढ़े लिखे लोगों की रिसर्च पर ही रिपोर्ट बनाई जाती और लक्ष्य तय किया जाता , फिर बनती थी कोई योजना ।
उस पर अमल सही से हो ये भी देखना इसका ही काम था इसलिये नेहरू ने यहां पर खुद भी काम किया , वहां एक प्रधानमंत्री के अंडर में काम करना लोगों को दुगने उत्साह से भरता था।
एक थिंकटैंक के रुप में ये मनमोहन के कार्यकाल तक ये अपनी सेवायें देश को देती रही।
विपक्ष के लिये कभी कभी इसका असंवैधानिक होना बेहद भारी पड़ता रहा । इसलिए जैसे ही ये सरकार सत्ता में पहुंची इसने सबसे पहले इसको ही हटाया ,लोगों को उस समय ये लगा कि बस नाम ही बदला है ,लेकिन नही दरअसल इनका मकसद पूरा स्वरूप बदलना था और वो कर दिया गया।
क्योंकि सरकार को फैसले अब टैलेंटेड लोगों की सलाह पर लेने नही थे।
और जिन्हें नीतियां बनानी थीं उनकी योग्यता का पैमाना बस चुनाव जीतने की कला तक ही सीमित होना था।
काश ! कोई इन लोगों को समझा दे कि इस देश को बनाते समय हर ईंट बहुत सोच समझ कर रखी गई है ,अगर ईमारत में चोरी करने के ईरादे से घुसना था तो चोरी करना था उस निर्माता का दिमाग।
अगर उनके जैसे कपड़े पहनकर और फोटोशूट कराके उसके जैसा बनना था तो फिल्मों में जाकर आस्कर लेना ज्यादा बेहतर था न कि राजनीति में आकर देश के भविष्य से खिलवाड़ करना।