22 मार्च जल बचाने के संकल्प का दिन
राकेश चौकसे, बुरहानपुर
विश्व जल दिवस संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के पीछे जल संरक्षण के साथ जागरूकता फैलाना था….
बदलते कलेंडर के 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। समूचे विश्व के बजाय हम मध्यप्रदेश के अलावा बुरहानपुर जिले मे व्याप्त जल संकट पर नजर दौड़ाएं तो चौकाने वाले अनुभव, और परेशानियां दिखाईं दे रही है। नल के बजाए टैंकर से होने वाले जल प्रदाय व्यवस्था ने शीतल जल की व्यवस्था के साथ भ्रष्टाचार का खेला कर जल संकट को बड़ाने का काम ही किया है! इस विषय की पढ़ताल का अभी वक्त मुफीद नही है। बुरहानपुर और मध्यप्रदेश की बात करे तो विकास और औधोगीकरण की राह पर चल जरूर रहे, किंतू क्या इन क्षेत्रो को स्वच्छ जल और कीटाणु रहित पानी मिल पाना संभव हो रहा है ,इसकी पढताल करने की न किसी को फिक्र है न चिंता! गली, मोहल्ले, कालोनियों मे पानी और पीने के पानी को लेकर हो हल्ला, विवाद, मारपीट के किस्से इसी कडी का हिस्सा है।साफ पानी की कमी के चलते पानी से संबंधित रोग बढ़ रहे है। भारत के प्रगतिशील व देश की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले शहर बेंगलूर मे
(जल संकट)जल समस्या को लेकर वर्क फ्रॉम होम, और स्कूली बच्चों को घर से ही पढ़ाई -कोचिंग (ऑन लाईन पढ़ाई) करने पर जोर दिया जा रहा है। जल संकट पलायन का कारण बने इस संशय से इंकार भी नही किया जा सकता। नलों मे पानी बचाने के उपकरण लगाने शुरु हो गए है। हाउसिंग सोसायटीयो मे चार से पांच घंटे जल सप्लाय रोकने के आदेश निकाल दिए है। एक अनुमान के अनुसार प्रति व्यक्ति निर्धारित खपत को भी आधा करने की ख़बर समाचार पत्रों की सुर्खियो मे बन गया है। यही हाल हैदराबाद, चेन्नई मे बन गया है। चेन्नई को लेकर 2019 का साल भूलना बेईमानी होगा जब वाटर ट्रेन चलवाकर पानी पूर्ति करवाना पड़ी थीं अनुमानित खर्च 66 करोड़ रूपए के आसपास आया था। जल संकट रोकने के लिए कारगार उपाय नही किए गए तो तो आने वाले समय मे गुजरात के कुछ शहरों,राजस्थान के जयपुर, देश की राजधानी दिल्ली, एमपी का इंदौर, पंजाब का अमृतसर, लुधियाना के आलावा छोटे बड़े शहर है जहां के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
*भारत की जल संचय की परंपराएं कहा है !*
हमे मालूम है पानी,समाज और सरकार के रिश्तों की कहानी बहुत पुरानी है। और इस कहानी का मुख्य पात्र मनुष्य ही रहा होगा।
भारत मे जल संचय की पुरानी प्रणालियों – परंपराओं का इतिहास बहुत पुराना शायद 5000 साल पुराना रहा होगा।
*वराहमिहिर का भू -जल विज्ञान*
आर्यभट्ट के प्रथम शिष्य वराहमिहिर के ग्रंथ वृहत्तसंहिता मे भू जल की खोज और उपयोग के बारे मे 125 सूत्र प्रस्तुत किए। यह सच है प्रथम जल वैज्ञानिक! वराहमिहिर ने धरती पर मौजूद विभिन्न लक्षणों और उन लक्षणों को पैदा करने मे पानी की भुमिका को समझा होगा इसके बाद जल की मौजूदगी की सही जानकारी और सूत्र को लिपिबद्ध किया होगा। ऐसा माना जाता है इसी सूत्र के आधार पर धरती मे उपलब्ध 600 मीटर अंदर की गहराई तक पानी है या नही पता लगाना संभव हो सका है।
आधुनिक युग मे इकोलाजी परिचित विज्ञान है यह वनस्पति विज्ञान की शाखा है इसकी अपनी वैज्ञानिकता और शोध है। पर जल की उपलब्धता और जल का उपयोग निर्धारित मापदंड कौन तैयार करेगा प्रश्न यह है।
*भारत मे जल संचय की परंपराए*
भारत मे जल संचय की प्राचीन परम्पराए, प्रमाणिक दस्तावेजी सेंटर फार साइंस एंड इंवाययमेंट नई दिल्ली के अनिल अग्रवाल और सुनीता नारायण ने किया है। इसके अलावा अनुपम मिश्र की पुस्तक राजस्थान की रजत बूंदे, आज भी खारे है तालाब मे प्राचीन परम्पराओं का सजीव चित्रण और विवरण मिलता है।इलाहाबाद से 60किलोमीटर दूर स्तिथ श्रंग्वेश्वर मे भी मिलते है जिसकी आयु 2700साल से अधीक आंकी जा रही है।
महाभारत काल के जल तालाब ब्रह्मसर, कर्णझील, शुक्रताल की बात हो या कौरव पांडवो की युद्ध भूमी मे विख्यात कुरुक्षेत्र मे ब्रह्मसर है। करनाल के पास कर्ण झील, है तो हस्तिनापुर मे शुक्रताल। सिंधु घाटी की प्राचीन जल प्रणालियों की झलक 10वी शताब्दी मे दिखाईं दिए थे।
आपको जानकारी हो दसवीं शताब्दी मे जैसलमेर और जोधपुर के रेगिस्तानी इलाके मे बरसात का पानी खडीनो मे रोककर इस पानी से सैंकड़ों मन अनाज उत्पन्न किया जाता था।
भोपाल के पास जल संचय की अनोखी प्रणाली है यहां के एक नगर के पास हलाली और पातरा नदी के संगम है, इन दोनो नदियों के लंबवत दो बांध बनाए है जो नहर को एक दुसरे से जोड़ते है।एक बांध का पानी सूखता तो दूसरा बांध पूर्ति करता है। अगर बांध पुरा भर जाता तब पानी पातरा नदी मे आ जाता है।
मध्य हिमालय , कश्मीर घाटी, जम्मू, हिमालय, टिहरी गढ़वाल, दार्जिलिंग, सिक्किम, अरुणाचल, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, मे जल हेतू नगर पहाड़ी इलाकों के ढाल काटकर खेती की जाती थीं।
मध्यप्रदेश के अलीराजपुर के सोंडवा ब्लाक के भील आदिवासियों की भू आकृतियों से व्यवस्था मिला पाट पद्धति विकसित कर पानी खेतो मे लेकर जाते और खेती करते है। पूर्णत देशी तरीके से गुरुत्व बल के विपरीत खेत मे पानी पहुंचाने का माध्यम बनी हुई है।
देश के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु मे तालाब, कुएं और नहर के माध्यम से जलापूर्ति और नदियों के पानी के बूते नहर और नहर के माध्याम से तालाबों मे पानी भरा जाता था।
मध्य प्रदेश का महा कौशल का इलाका नरसिहपुर, जबलपुर, सागर, और दमोह क्षेत्रो मे काली मिट्टी मे नमी कर फसल लेने की देशी परंपरा उपयोग मे ली जाती थीं।
*पुरे विश्व मे बुरहानपुर मे है भूमिगत जल प्रणाली*
1615 मे भूजल प्रवाह के अध्यन पर आधारित जलापूर्ति के लिए भूमिगत सुरंग के निमार्ण के बाद गुरुत्वाकर्षण पर आधारित प्रणाली से जलापूर्ति की जाती थीं। सतपुड़ा पर्वत की पर्वत श्रेणी पर स्थापित 108 कुंडियों के भंडारण का कुंडी भंडारा है। मान्यता है इस पानी का पानी टीडीएस के मानक के अनुरूप शुद्ध जल माना जाता है।
जिम्मेवारो ने भूमिगत जल प्रणाली की अनदेखी, नेताओ की नेता गिरी, पास मे ही खेत होने से खेत मालिको की हटधर्मिता से पानी की मोटर से पानी लेने का कंपन होना, असामाजिक तत्वों का कुंडियों को नुकसान पहुंचाना। और बढ़ती आबादी के बाद कुंडियों पर अतिक्रमण करने से बड़ा नुकसान विश्व धरोहर को उठाना पड़ा है।राज्य सरकार विश्व धरोहर को लेकर चिंतित होती तब पुरे क्षेत्र को अधिग्रहण कर निर्माण कार्य पर रोक लगवाती। ट्रेन स्पीड पर नियंत्रण हेतू रेल प्रशासन से आग्रह करती। पर ऐसा हुआ नही। भारी वाहनों के प्रवेश, अतिक्रमण, निर्माण कार्य और कम्पन के कारण कुंडिया धंस गई है आज प्रवाह रुका हुआ है। प्रतिदिन तेरह लाख लीटर पानी विभिन्न स्रोतों (कारंजा) मे जमा होकर वितरीत किया जाता था पर रोक लग गई है।
*बारिश के पानी का महत्व*
पानी की प्रत्येक बूंद जरूरी है और इसे सहजना भी उतना ही जरूरी है।बुरहानपुर मे बन रहे पीएम आवास, और खुलते मॉल, निजी भवनों मे वाटर हार्वेस्टिंग की गाईड लाईन को लेकर निगम प्रशासन कितना अलर्ट है इस पर सोचना जरूरी है। पानी सहेजने के लिए निजी और शासकीय स्तर पर कितने प्रयास किए जा रहे है। पानी को सहेजना जरूरी है अगर हम अब भी नही सुधरे तब पानी केवल हमारी आंखों मे बच जाएगा।
जल को सहेजना जरूरी ही नही प्राथमिकता मे होना चाहीए।
संकल्प के साथ , जल ही जीवन है के महत्व को समझना होगा।
*बिन पानी सब सून*