अग्नि आलोक
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आप और आपका मोबाइल नम्बर

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मैं शर्ट खरीदने के लिये एक प्रतिष्ठित showroom के लिए गाड़ी से जा रहा था कि फोन की घण्टी बज उठी, “सर, महावीर होटल से बोल रहे हैं, हमारे यहाँ गुजराती-food-festival चल रहा है। पिछली बार भी आप आये थे। आप visitor book में अच्छे comments देकर गए थे, सर!”
“देखता हूँ”, कहकर मैंने फोन बंद कर दिया। गाड़ी, थोड़ी आगे चली ही होगी कि फिर से एक call आया, “सर, आपके जूते घिस गए होंगे। नए ले लीजिए।”
“कौन बोल रहे हो, भाई? आपको कैसे पता चला मेरे जूते घिस गए हैं?”
“सर, मैं सुंदर फुटवियर से बोल रहा हूँ। हमारी दुकान से आपने डेढ़ साल पहले जूते खरीदे थे। हमारा कंप्यूटर बता रहा है आपके जूते फट रहे होंगे या फटने ही वाले होंगे!”
“भैया, क्या ये जरूरी है कि मेरे पास एक जोड़ी जूते ही हों? वक़्त-बेवक्त इस तरह फोन करना कहाँ की सभ्यता है, मेरे भाई?”, कहकर मैंने फिर फोन काट दिया।
मैंने फोन काटा ही था कि घण्टी वापस घनघना उठी, “सर, आपकी गाड़ी की servicing due हो गई है, छह महीने हो गए हैं।”
“भाई, आपको क्यों परेशानी हो रही है? मेरी गाड़ी की मैं servicing करवाऊँ या न करवाऊँ? मेरी मर्ज़ी। privacy नाम की भी कोई चीज़ होती है, दुनिया में?” गुस्से में मैंने फोन काट तो दिया पर वो एक बार फिर बज उठा, “सर, कल Padman की Inox में matinee show की ticket book कर दूँ।” इस बार एक लड़की थी।
“क्यों, मैडम?”
“सर, हमारा system बता रहा है कि आप अक्षय कुमार की हर movies देखते हैं, इसलिये!”
मैं मना करते-करते थक चुका था, सो पीछा छुड़ाते हुए बोला, “चलो, book कर दो।”
“ठीक है, सर! मैं mobile number Nine nine two… वाली madam को भी बता देती हूँ। हमारा system बता रहा है वो हमेशा आपके साथ ticket book कराती रही हैं।” 
अब तो मैं घबरा गया, “आप रहने दीजिए।” कहते हुये मैंने एक बार फिर फोन काट दिया। Showroom पहुँचकर मैंने शर्ट खरीदी। Bill counter पर गया तो उसने पूछा, “सर, आपका mobile number?”
“मैं नहीं दूँगा।”
“सर, mobile number देने से आपको २०% loyality discount मिलेगा।”
“भाई, भले ही मेरे प्राण माँग लो, लेकिन mobile number नहीं दूँगा।” मैंने दृढ़ता से जवाब दिया।
“सर, इतनी नाराजगी क्यों?”
“इस mobile के चक्कर में मेरी privacy की ऐसी की तैसी हो गई है। मेरा नम्बर, पता नहीं कितनों में बँट गया है? कल को नाई कहेगा, “सर, आपके बाल बढ़ गए होंगे!”
मुझे तो डर है अस्सी-पचासी के बाद अर्थीवाला भी ये न कह दे कि, “समय और बच्चों का आजकल कोई भरोसा नहीं है। अंतिम-यात्रा के लिए एक सुन्दर-सी अर्थी बुक करवा लीजिये, सर!” 😜😍
( साभार – तरुण मंडलोई खंडवा  की वाल से )

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