ध्रुव गुप्त
मात्र 23 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने प्राण की बलि देने वाली अट्ठारह सौ सत्तावन के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नायिका झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का आत्म उत्सर्ग आज़ादी की लड़ाई में देश के युवाओं के लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है। 19 नवंबर, 1835 को बनारस में जन्मी मराठी माता-पिता की संतान मणिकर्णिका या मनु की झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई तक की जीवन-यात्रा किसी परीकथा की तरह रोमांचक रही थी। दत्तक क़ानून की आड़ लेकर झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाने की साज़िशों का लंदन के न्यायालय से लेकर युद्ध के मैदान तक प्रतिकार करने वाली लक्ष्मी बाई के शौर्य और युद्ध नीति के बारे में तत्कालीन ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज ने लिखा था – ‘लक्ष्मी बाई अपनी सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे ज्यादा खतरनाक भी थी।’ जन्मदिन के मौके पर उनके स्वतंत्रता-प्रेम, संघर्ष और बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन !
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फांसी
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
(सुभद्रा कुमारी चौहान)