सुसंस्कृति परिहार
पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय से जाकिया जाफरी की पराजय और याचिका कर्ता को मदद करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता तिस्ता सीतलवाड़ और तत्कालीन डी जी पी श्रीकुमार की गिरफ्तारी के बाद एक और हृदय विदारक फैसला सन् 2002के बिल्किस बानो के 11 बलात्कारियों को आजीवन कारावास के तहत 14 साल जेल काटने के बाद आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर जेल से आज़ाद कर दिया गया।उनके अच्छे आचरण के मद्देनजर हालांकि यह रिहाई विवादग्रस्त है और 1992 के अधिनियम के तहत हुई है जबकि 2019में बने कानून के अनुसार बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में रिहाई नहीं हो सकती पर सैंया भए कोतवाल तो डर किस बात का है।
दोनों मुस्लिम महिलाओं ने न्याय पाने के लिए जितनी जद्दोजहद की वह कम नहीं उस राज्य में जहां नरसंहार के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री और गृहमंत्री वहां के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री थे। उन्होंने कितनी प्रताड़नाएं इस दौरान झेलते हुए न्याय की आशा में ये हौसला कायम रखा वह अब टूट चुका है। जाकिया और बिल्किस बानो इन फैसलों से हताश हुई हैं। उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या करें और कहां जाएं।उनकी खामोशी यह बताती है कि वे कहां गलत है जिसकी सजा वे भुगत रहीं हैं।
विगत बीस सालों में देश कहां पहुंच गया है जहां भले ही लाल किले से नारी उत्थान और कल्याण पर ज़ोर दिया गया हो किंतु हाथ कंगन को आरसी क्या सब कुछ सामने है। आज़ादी के इतिहास में मुस्लिम समाज के भारी अवदान की सजाया कि आज उन पर हर जगह तलवार लटक रही है। शाहनवाज हुसैन को ही देखिए कैसे बलात्कार का मामला दर्ज हो गया लंबे अर्से तक वे सरकार के गले के हार बने थे।उधर कुलदीप सेंगर मज़े में है। नुपुर शर्मा चैन और सुकून में है।
लग तो यही रहा है कि सी ए ए कानून लाने वाली सरकार अब मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह बर्बाद करने का मन बना ली है इसलिए सब कुछ एक पक्षीय होता जा रहा है।हाल ही में जिस नए संविधान की बात सामने आई है उसमें मुस्लिमों से मतदान का अधिकार छीना जाना है। शाहनवाज पर कार्रवाई इसी बात का संकेत दे रहे हैं। पहले नवाज़ के लाउडस्पीकर पर आपत्ति, हिजाब का मसला, मदरसों और मुस्लिमों पर बेवजह हमले और अब महिलाओं की याचिकाओं पर इस तरह के फैसले दबाववश लिए गए हैं।यह देश के लिए शर्मिंदगी की बात है जहां न्यायालय ही सरकार के अधीन हो फैसलें दें तो क्या कहिएगा।आने वाले संविधान में न्यायालय को राष्टाध्यक्ष के अंकुश में रखने की बात कही गई है।वह अभी से दिखाई दे रहा है।
इससे ज़्यादा शर्मिंदगी और क्या हो सकती है कि सामूहिक बलात्कार के गुनहगारों का स्वागत हमारा समाज करता है महिलाएं उनकी आरती उतारती हैं उन्हें मिठाई खिलाई जाती है जीत का हार पहनाकर फोटो सोशल मीडिया पर दिखाई जाती है।बिल्किस और उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। जैसे तैसे वह पिछले 14साल से राहत की सांस ले रही थी न्याय व्यवस्था से संतुष्ट अपने काम में सब भूल कर लगी थी इस ख़बर से वह दहशत में है।क्या भरोसा उन आदर्श गुनहगारों का वे बिल्किस परिवार को फिर बर्बाद करने की ठान लें क्योंकि उसकी सजगता और जागरूकता से ही इन सबको आजीवन कारावास मिला था। आश्चर्यजनक तो यह है कि इन सभी गुनहगारों ने बिल्किस की डेयरी से रोज़ दूध ख़रीद कर पिया था। इसलिए उसने सबको पहचान लिया था।साथ ही साथ उसने मामला महाराष्ट्र स्थानांतरित करवाया था क्योंकि उसे गुजरात में न्याय की उम्मीद नहीं थी।
2002 गुजरात नरसंहार में लगभग 3000मुसलमान लक्षित कर मारे गए थे। बिल्किस को न्याय मिला भी लेकिन अब जिस तरह उन गुनहगारों की गुजरात सरकार ने रिहाई की है वह बिना किसी साजिश के नहीं हो सकता था।सर्वमतेन फैसला ही इस बात की पुष्टि करता है।उधर 2002 दंगों में मृत कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नि जाकिया जाफरी की याचिका पर जिस तरह का फैसला जस्टिस खानविलकर ने सुनाया वो लोकतांत्रिक इतिहास के नाम पर कलंक है।ये दोनों मामले ताकीद करते हैं कि आने वाला कल अच्छा नहीं होगा। धुव्रीकरण की यह नीति सिर्फ अब वोटों के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों को हिंदू राष्ट्र में तमाम अधिकारों से वंचित रखने का भी दूरगामी सिलसिला है।
संयुक्त राष्ट्र संघ बहुत पहले यह टिप्पणी कर चुका है कि ‘भारत बीमार मानसिकता का गुलाम है जहां बलात्कारियों के पक्ष में रैलियां निकाली जाती हैं।’यह टिप्पणी कश्मीर में एक नन्हीं बच्ची आसिफ़ा के मंदिर के पीछे बलात्कार करने वाले के पक्ष में भाजपाइयों द्वारा निकाली रैली पर थी ।आज वही सामूहिक बलात्कार के गुनहगारों का स्वागत कर रहें हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश में ऐसा हुआ है।यह इनकी रीति नीति का हिस्सा है।याद रखना चाहिए बहुत पहले भाजपा की जानी मानी हस्ती राकेश सिन्हा तो यह भी कह चुके हैं कि बलात्कार किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता।जिस सरकार के तथाकथित विद्वान की यह राय हो।उसे क्या कहा जाए।
नारी सम्मान की बात इनके मुखारबिंद से शोभा नहीं देती।इस दुनियाई दिखावा के पीछे ये भारत को मनुवादी व्यवस्था की ओर लाने बेताब हैं।मुस्लिम महिलाओं के और दलित यौन उत्पीड़न पर यदि देश की महिलाएं चुप हैं, खुश हैं तो कल यह गाज उनके ऊपर भी गिर सकती है।ध्यान दें संघ की जो विचारधारा है उसमें स्त्री से दूर रहने पर ज़ोर दिया जाता है विवाह की अनुमति नहीं होती यदि हो गया हो तो सहजता से उसे छोड़ दिया जाता है।यौन कुंठा में जीने वाला ही बलात्कार के प्रति सहज हो सकता है उसे गलत नहीं मानता।इसे समझने की जरूरत है।
आज सवाल इस बात का है कि यह साफ कर दिया जाए कि सरकार क्या चाहती है।चोरी चोरी यह तो मुख में राम बगल में छुरी जैसा है यह बिल्कुल ग़लत बात है।यदि यह पता होता तो देश में जन्मी ये भारतीय महिलाएं इतनी गहन पीड़ा और उत्पीड़न क्यों झेलती? दोहरी मानसिकता का कहर क्यों और कब तलक? इसका जवाब ज़रूरी है।