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इंफोसिस जैसा कमाल कर पाएगी जोमैटो?

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प्रबल बसु रॉय
तीस साल पहले भारत ने आर्थिक सुधार शुरू किए, जिससे देश हमेशा के लिए बदल गया। आज फिर से एक नए बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। अर्थव्यवस्था की हालत खराब है, लेकिन कम से कम वित्तीय बाजार के लिए उम्मीद की रोशनी दिख रही है। वैश्विक बाजार में कर्ज बहुत सस्ता मिल रहा है और उसका एक हिस्सा भारत के शेयर बाजारों में भी आया है, जिससे उसका वैल्यूएशन काफी बढ़ गया है, लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है।

इन सबके बीच स्टार्टअप्स यानी उभरती हुई कंपनियों को लेकर भी एक आशा दिख रही है। जनधन, आधार और मोबाइल (जैम) और आबादी के एक हिस्से तक डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की पहुंच, नए तकनीकी प्लैटफॉर्मों और ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) से लैस आधार, नैशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के कारण स्टार्टअप्स को तरक्की की जमीन मिली है। अब आम निवेशकों के पास भी इसका फायदा उठाने का मौका है। आने वाले वक्त में इस सेग्मेंट की जोमैटो, पेटीएम और ओयो जैसी कंपनियों की शेयर बाजार में लिस्टिंग होने वाली है। इसकी शुरुआत ऑनलाइन फूड प्लैटफॉर्म जोमैटो से हो रही है। यानी वह वक्त आ गया है, जब ऐमजॉन और अलीबाबा जैसे हमारे उदाहरण खड़े नजर आएं।

कुछ इसी तरह का बदलाव 1993 में इंफोसिस के शेयर बाजार में आने से हुआ था। उससे पहले वित्तीय बाजार के सुधार लागू हुए थे, जिससे इस तरह की कंपनियों को विदेशी निवेशकों का नया वर्ग मिला। उन्हें इंफोसिस जैसी कंपनियों के बिजनेस की अच्छी समझ थी। ऐसा ही बदलाव जोमैटो, पेटीएम और ओयो जैसी कंपनियों की लिस्टिंग से आ सकता है। अभी तक भारतीय शेयर बाजार बिना मुनाफे की तूफानी ग्रोथ वाली कंपनियों से अनजान रहा है, लेकिन दुनिया इससे वाकिफ है। 1995-2000 के बीच ऐसी कंपनियां दुनिया भर में छा गईं। गूगल और फेसबुक ऐसी ही कंपनियां हैं, जिनसे आज कोई भी अनजान नहीं है।

जहां तक जोमैटो और दूसरी भारतीय स्टार्टअप्स की लिस्टिंग का सवाल है, भारतीय बाजार एक नए दौर की दहलीज पर खड़ा है। विदेशी निवेशक इसी तरह की कंपनियों को अमेरिका और चीन में बढ़ते देख चुके हैं। इसलिए वे भारतीय स्टार्टअप्स से तगड़ा मुनाफा कमाने का मौका नहीं चूकेंगे। इससे प्लैटफॉर्म, मोबाइल और ई-कॉमर्स सेग्मेंट की पहले से लिस्टेड एमसीएक्स, इंडियामार्ट, एफल और नजारा जैसी कंपनियों के शेयरों में भी तेजी आ सकती है।

हमने इधर देखा है कि देश में इक्विटी मार्केट में पैसा लगाने वालों की संख्या बढ़ी है। भविष्य में शेयर बाजार के वैल्यूएशन में इसकी भी अहम भूमिका होगी। ऐसी भारतीय कंपनियां जो यहां के मार्केटप्लेस में बड़ी उथल-पुथल मचा सकें और जिनका कारोबार काफी हद तक देश में सिमटा हुआ है, उन्हें घरेलू निवेशकों के सपोर्ट की भी जरूरत होगी। जो कंपनियां नए इनोवेशन से उथल-पुथल मचाती हैं, उनकी ‘सही कीमत’ का अंदाजा लगाना नए वर्ग के निवेशकों की खूबी है। वे बता सकते हैं कि अगर फलां कंपनी को अभी मुनाफा नहीं हो रहा है तो चिंता करने की बात नहीं है। वह भविष्य में बड़े आकार के लिए अभी मुनाफे की कुर्बानी दे रही है और एक बार ऐसा करने पर उन्हें बढ़िया मुनाफा हो सकता है।

शेयर बाजार के सामने आज जो जोखिम है, उससे भी निवेशक अनजान नहीं हैं। मार्केट का वैल्यूएशन काफी अधिक है। मैक्रो इकॉनमी के लेवल पर भी असंतुलन दिख रहा है। आगे अर्थव्यवस्था की हालत कैसी रहेगी, इसका पता नहीं है। और अगर वैश्विक बाजार में लिक्विडिटी (पैसों) की सप्लाई घट जाए तो भारी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। अक्सर यह भी कहा जाता है कि बड़े आईपीओ मार्केट के पीक वैल्यूएशन पर आते हैं, जैसे कि 2008 में रिलायंस पावर का इश्यू आया था। क्या जोमैटो को लेकर ऐसा नहीं सोचा जा सकता? मुझे लगता है कि ऐसा नहीं है। इसे इंफोसिस के आईपीओ से जोड़कर देखना चाहिए, जिसने एक बड़े बदलाव की शुरुआत की थी। हालांकि, यह तभी हो सकता है, जब हमारे उद्यमी कॉरपोरेट गवर्नेंस, बिजनेस को बढ़ाने, लागत कम रखने और निवेशकों से स्पष्ट बातचीत करने की पहल करें।

(लेखक लंदन बिजनेस स्कूल, ब्रिटेन में स्लोअन फेलो हैं)

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