मुनेश त्यागी
कल हम नाई की दुकान पर अपने बाल बनवा रहे थे। वहीं पर चुनाव की चर्चा शुरू हो गई और एक सज्जन कहने वालों की आएगा तो मोदी ही। हमने और कई अन्य जनों ने उनसे पूछा कि मोदी क्यों आएंगे? उसने एकदम भड़क कर कहा कि मोदी ने मुसलमान को ठिकाने लगा दिया है और वह हिंदू मुसलमान के बीच फैलाई गई नफरत का गुणगान करने लगा। जब हमने उनसे भारत की साझी संस्कृति के हीरे मोतियों के बारे में संक्षेप में बताया तो वहां मौजूद सारे लोग हमारी बातों पर मोहित हो गए और हिंदू मुस्लिम नफरत फैलाने की बात करने वाले सज्जन उठ कर चले गए।
इस घटना को देखकर, वर्तमान चुनावों के दौरान, यह बात आज सबसे ज्यादा जरूरी हो गई है कि हिंदुत्वादी साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा जनता के बीच जो हिंदू मुस्लिम नफरत के बीज बो दिए गए हैं, उनके बारे में जनता को बताना बेहद जरूरी है, क्योंकि ये सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी ताकतें, जनता की बुनियादी समस्याओं की बात नहीं कर रही हैं, उनसे लगातार भाग रही हैं। ये ताकतें संविधान पर हो रहे हमलों की, जनतंत्र पर हो रहे हमलों की, शिक्षा रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहे हमलों के बारे में कोई बात नहीं कर रही हैं। बस वे जनता को हिंदू मुसलमान की नफरत के जहर की घुट्टी पिलाकर ही संतुष्ट कर देना चाहते हैं और इसी तरकीब से पुनः सत्ता में आना चाहते हैं।
भारतीय इतिहास के इस सबसे अंधेरे काल में तमाम जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष ताकतों समेत हमारे तमाम लेखकों, कवियों और संस्कृति कर्मियों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी हो गई है कि वे भारत की गंगा जमुनी तहजीब की और साझी संस्कृति के हीरे मोतियों के बारे में जानकारी हासिल करें और इन तमाम हासिल की गई जानकारियों को जनता के बीच ले जाएं, अपने जान-पहचान वालों, अपने यारों, दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच ले जाएं और उन्हें इन सबकी जानकारी मोहिया करायें, तभी जाकर सत्ता में बैठीं इन हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला किया जा सकता है और तभी जाकर जनता इनके नफरती जाल से निकलकर अपना वोट डालेगी और संविधान, जनतंत्र, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य पर हो रहे हमलों का मुकाबला करके इन फासीवादी और पूंजीवादी लुटेरों को सत्ता से हटा पाएगी।
अब हमारे देश में सांप्रदायिक ताकतों और पूंजीपति घरानों का गठजोड़ पैदा हो गया है। आज हमारी सरकार सिर्फ और सिर्फ देश और विदेश के चंद पूंजीपति घरानों की धन-दौलत बढ़ाने का और उनकी तिजोरियां भरने का ही काम कर रही है। ऐसा करते हुए उसने सारी नैतिकता और मर्यादाएं ताक पर रख दी हैं, कानून के शासन को रौंद दिया है और सारे संवैधानिक मूल्यों को और आदर्शों को धराशाई कर दिया है। वर्तमान सरकार पिछले दस सालों से लगातार, जनता की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए जनता में, हिंदू मुस्लिम नफरत का जहर घोल रही है और उसकी एकता को तोड़ रही है।
आज हमारा देश और समाज बहुत बडे संकट के दौर से गुजर रहा है। पूरा देश जैसे साम्प्रदायिक फासीवादियों और पूंजीपतियों के घनघोर समर्थकों के भयानक हमलों का शिकार हो रहा है। दोनों ओर की ताकतें झूठे प्रचार द्वारा इतिहास की सच्चाईयों को झुठलाने पर आमादा हैं। अब जब पूंजीवादी और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों का गठजोड़ सत्ता पर आरूढ और काबिज़ हैं तो यह मामला और ज्यादा गंभीर हो गया है।
हिंदुस्तान की संस्कृति विविधतापूर्ण, साझी और मिली जुली रही है। हमारे यहां बाहर से कई जातियां जैसे हूण, शक, कुषाण, मंगोल, पठान, तुर्क, यूनानी, अंग्रेज़, पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि जातियों के लोग आये और यहां की संस्कृति, आचार विचार और चिंतन से प्रभावित हुए, यहां की संस्कृति और चिंतन को प्रभावित किया और कालांतर में उनमें से कुछ यहां से लूट पाट करके चले गए और कुछ यहीं बस गए और यहां की संस्कृति में रच बस गये। लगभग सौ साल पहले तक हिंदू और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं का सम्मान और आदर करते थे।
इन दोनों समुदायों ने एक दूसरे से काफी कुछ सीखा और एक दूसरे को प्रभावित किया लेकिन पिछले काफी अरसे से तमाम तरह की साम्प्रदायिक ताकतें, इस साझी संस्कृति और साझी विरासत पर सबसे ज्यादा हमले कर रही हैं। आरएसएस और मुस्लिम लीग ने यह काम सबसे ज्यादा बढ़कर किया है। ये ताकतें प्रदर्शित करना चाहती हैं कि यहां हिंदू और मुसलमान सदा से परस्पर युध्दरत रहे हैं, इनके हित और मिजाज अलग अलग रहे हैं, ये एक साथ नही रह सकते। मगर हकीकत और सच्चाई व एतिहासिक तथ्य, इस सरासर झूठ, इस झूठी मानसिकता और सोच के बिल्कुल खिलाफ हैं। आरएसएस और उसके तमाम संगठन सत्ता पर आरूढ हैं, इसलिए वे ज्यादा खतरनाक होकर हमारे सामने मौजूद हैं।
आज के संकटग्रस्त और विवादास्पद समय में यह बेहद जरूरी हो गया है कि इन तमाम भारत विरोधी, गंगा जमुनी तहजीब विरोधी और साझी संस्कृति विरोधी ताकतों के इस झूठे अभियान का भंडाफोड किया जाये और इनके विभाजनकारी मंसूबों को करारी मात दी जाये। हमारा इतिहास सैंकडों हिंदू मुस्लिम हीरे मोतियों और नायक नायिकाओं से भरा पडा है, जिनके बारे में वर्तमान पीढी को बताना और अवगत कराना निहायत ही जरूरी हो गया है ताकि इन सांप्रदायिक ताकतों के झूठे अभियान का मुकाबला किया जा सके और ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़ मरोड़ का मुकाबला किया जा सके और भारत की जनता को हिंदू मुस्लिम एकता की और साझी संस्कृति की, अनमोल विरासत और असलियत से अवगत कराया जा सके।
भारत की साझी विरासत पर गौर करें तो पता चलेगा कि मुगल सरदार बाबर, दौलत खां लोदी और राणा सांगा के साथ, दिल्ली के बादशाह इब्राहीम खां लोदी और गवालियर के हिंदू राजा मानसिंह तौमर के गठजोड़ के साथ पानीपत के मैदान में लड रहा था, जिसने इब्राहीम खां लोदी को हराया था। यहां हमें याद रखना चाहिए कि बाबर को यहां, राणा सांगा और दौलत खां लोदी, काबुल से बुलाकर लाये थे ताकि दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी को हराकर, दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ जा सके। आप सोचिए, क्या यह हिंदू मुसलमान की लडाई थी?
इससे पहले भी मुस्लिम शासक आपस में लडते रहे हैं। रजिया सुल्तान को भी मुसलमानों ने गद्दी से हटाया था, शेरशाह सूरी ने भी हुमांयु को परास्त किया था, क्या ये सब धर्मयुद्ध थे? नही नही, बिलुकुल भी नही, यह सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक और सत्ता प्राप्ति का संघर्ष था, इसमें मजहब का कोई रोल नही था। इससे पहले भी मुस्लिम शासक गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश और लोदी वंश के बादशाह सत्ता संघर्ष के लिए आपस में लडते मरते और खपते रहे हैं और आपस में एक दूसरे की हत्या करते रहे हैं और एक दूसरे का तख्ता पलट करते रहे हैं।
हल्दीघाटी के युध्द में अकबर महान के साथ राजा मानसिंह थे, तो महाराणा प्रताप के साथ उनके सबसे बडे सहयोगी और सेनापति मुस्लिम सरदार हाकिम सूर ख़ान थे। यहीं पर एक आश्चर्य चकित करने वाला एक तथ्य और भी काबिले गौर है, वह यह कि महाराणा प्रताप के बाद, जब उनका बेटा राजा अमरसिंह सत्तानशीं हुआ तो उसने अकबर के बेटे बादशाह जहांगीर से संधि कर ली और उसके साथ मिल गया। अब इसे क्या कहियेगा, क्या यह भी धर्म युध्द था? क्या यह भी एक राजनैतिक और सत्ता का गठजोड़ न था?
मुग़ल बादशाह औरंगजेब के मुख्य सेनापति हिंदू राजा मिर्जा जयसिंह थे और उनकी सेना में जाधव राव, कान्होजी सिर्के, नागोजी माने, आवाजी ढल, रामचंद्र और बहीर जी पंढेर शामिल थे, तो वहीं महाराजा शिवाजी के निजी सचिव मौलवी हैदर खान थे, तौपची इब्राहीम गर्दी खान, और सेनापति दौलत खां व सिद्दीकी मिसरी थे। क्या यह कोई धार्मिक लडाई थी? जी नहीं, यह सिर्फ राजनैतिक संघर्ष था, यानी यह मात्र सत्ता की लडाई थी। इसका तथाकथित धर्म युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था, यह कोई धर्म युद्ध नहीं था।
बंगाल के मुस्लिम सरदार सिराजुदौला के सबसे विश्वसनीय दोस्त, राजा मोहन लाल थे। मीर मदन उनके सबसे वफादार सेनापति थे। सिराजुदौला परम देशभक्त थे, जिन्होंने अपने देश भारत को कभी धोखा नही दिया। हैदर अली आजाद जिये और अपनी और हिंदुस्तान की आजादी की रक्षा करते हुए अंग्रेजों से लडते हुए मैदानेजंग में वीर गति को प्राप्त हुए।
टीपू सुल्तान हमारे इतिहास के सबसे तेज चमकते हुए सितारे हैं। टीपू सुल्तान ने भारत के इतिहास में अपनी राजधानी में सबसे पहले “आजादी का पौधा” लगाया था। पूर्णिया उनके प्रधान मंत्री थे और कृष्ण राव उनके मुख्यमंत्री थे। टीपू सुल्तान भी अंग्रेजों से युध्द करते हुए मैदाने जंग में ही मारे गये थे। यहीं पर यह भी याद रखना जरूरी है कि ये दोनों तथाकथित हिंदू राजा पूर्णिया और कृष्णराव, अपने बादशाह टीपू सुलतान को धोखा दे रहे थे और अंग्रेजों के साथ मिल गये थे। इतिहासकारों का कहना है कि यदि ये दोनों हिंदू राजा, टीपू सुल्तान को धोखा नहीं देते और उसके साथ गद्दारी ना करते, तो टीपू सुल्तान ने उसी युद्ध में अंग्रेजो को पराजित कर दिया होता। क्या यह भारत के साथ हद दर्जे की गद्दारी ही नही थी? ये दोनों कौन से हिंदू और भारतीय थे?
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महासंग्राम के सर्वोच्च सेनापति बहादुर शाह जफर और उनके निजी सचिव मुकुंद थे। भारत की आजादी के इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महायुध्द की संचालन समिति में आधे हिंदू और आधे मुसलमान थे। इस महा संग्राम को एकता के सूत्र में पिरोने वाले नाना साहेब थे और उनके सचिव और दाहिने हाथ अजीमुल्ला खान थे। इन्हीं अजीमुल्ला खान में कई देशों में जाकर क्रांति का अध्ययन किया था। उन्होंने ही उस 1857 की क्रांति की पूर्ण रूपरेखा तैयार की थी। यहां पर याद रखिए कि इन्हीं अजीमुल्ला खान ने “भारत माता की जय” का इतिहास प्रसिद्ध नारा दिया था।
इस महासंग्राम की एक बहुत ही मजबूत कडी महारानी लक्ष्मीबाई थीं। हिंदू मुस्लिम एकता का महान नमूना देखिए कि इस महा संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई के तौपची गौस खान थे और जमाखां और खुदाबख्श उनके कर्नल थे। क्या इसे हिंदू मुसलमान की लड़ाई कहा जा सकता है? या इसे कोई धर्म युद्ध कहा जा सकता है? क्या यह भारत की साझी संस्कृति की अद्भुत मिसाल नहीं है?
इस आजादी के महासंग्राम की एक और बहुत ही कुशल और पराक्रमी शासक बेगम हजरत महल थीं। उनके साथ राव बख्शसिंह, चंदा सिंह, गुलाबसिंह, हनुमंत सिंह आदि अवध के प्रमुख सामंत सरदारों ने फिरंगियों के खिलाफ मोर्चा लिया और इन्होंने रणक्षेत्र में कभी अपनी पीठ नही दिखाई थी। अंग्रेजों ने उनसे समझौता करने की बहुत कोशिश की मगर बेगम हजरत महल ने मना कर दिया और वे अपने जीवन की अंतिम सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रहीं। क्या यह भारत की साझी संस्कृति का अद्भुत और महान कारनामा नहीं था?
1857 की महाक्रांति, जिसे ब्रिटेन में बैठे हुए क्रांति और वैज्ञानिक समाजवाद के महान विचारक कार्ल मार्क्स ने “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” की उपाधि दी थी, का आगाज मेरठ से हुआ था जिसमें मेरठ के 85 सैनिकों को लंबी लंबी सजाऐं दी गयी थीं। इनमें 53 मुसलमान थे और 32 हिदू स्वतंत्रता सेनानी थे। यह भारत के इतिहास में कौमी एकता की सर्वश्रेष्ठ और अदभुत मिसाल है।
हिंदुस्तान की सबसे पहली अस्थायी सरकार 1915 में काबुुल, अफगानिस्तान में बनी थी, जिसके राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह और प्रधान मंत्री बरकतुल्ला खान और गृहमंत्री ओबेदुल्ला खान बनाये गये थे। क्या यह भारत की साझी संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब की अद्भुत मिसाल नहीं थी?
अमीर खुसरो हिंदी के पहले कवि थे। अपने को सच्चा भारतीय मानते हुए उन्होंने लिखा था कि “भारत मेरी मादरेवतन है, भारत मेरा देश है,और भारत संसार में स्वर्ग है, जन्नत है।” क्या यह भारत की साझी संस्कृति की महानता की मिसाल नहीं है?
भारत के इतिहास में संपूर्ण स्वतंत्रता और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा सबसे पहले मौलाना हसरत मोहनी ने 1921 में दिया था जिसे बाद में शहीदों के शहीद, शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और उनके साथियों ने आजादी की लड़ाई में इस्तेमाल किया था और इस नारे को भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नारा बना दिया था जो भारत की संघर्षशील जनता का, आज भी सबसे मुख्य नारा बना हुआ है। क्या यह क्रांतिकारी नारा भी भारत की साझी संस्कृति का आज तक भी महान नारा नहीं बना हुआ है?
काकोरी केस के हीरो रामप्रसाद बिस्मिल का दाहिना हाथ अशफाकउल्ला खान थे। इन दोनों महान क्रांतिकारियों ने, फांसी पर चढने से एक दिन पहले अपने देशवासियों से अपील की थी कि “जैसे भी हो, भारतवासी हिंदू मुस्लिम एकता बनाकर क़ायम ऱखें, इसी एकता के बल पर हमारा मुल्क आजाद होगा और हमारे लिये यही सच्ची श्रध्दांजलि होगी।”
मेरठ षडयंत्र केस में स्वतंत्रता सेनानी कामरेड मुजफ्फर अहमद को, भारत की आजादी, मजदूर राजनीति और साम्यवादी कार्यकर्ता होने के कारण, अंग्रेजों द्वारा, आजीवन कारावास की सजा दी गयी थी। भारतीय आजादी के संग्राम के सबसे बडे दीवाने, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के वरिष्ठ और सबसे करीबी साथी आबिद हसन, एसी चटर्जी, एमजेड कयानी और हबीबुर्रहमान थे। उनकी अस्थायी सरकार में चार हिंदू और चार मुसलमान प्रतिनिधि थे। ये वही आबिद हसन हैं जिन्होंने भारत की जनता को “जय हिंद” का अमर नारा दिया था।
यहीं पर यह भी गौर करने वाली बात है कि जब 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था तो तब पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा दिए गए “पैटन टैंकों” का मुकाबला, भारत के दो महान सैनिक शहीद “आशाराम त्यागी” और “अब्दुल हमीद” कर रहे थे। इन दोनों ने मिलकर ही इन पैटन टैंकों का विनाश किया था और उन्हें इन्हें धरती में मिला दिया था। ये दोनों महान सैनिक भारत भूमि की रक्षा करते हुए मैदान-ए-जंग में शहीद हो गए थे। क्या यह भारत की साझी संस्कृति की महान विरासत नहीं थी?
इस प्रकार, हम संक्षेप में देखते हैं कि हमारे यहाँ भूतकाल में जो संघर्ष रहें हैं, वे कोई धर्म युध्द नही थे, बल्कि वे राजनैतिक और सत्ता के लिये संघर्ष थे, जिनमें हिंदू और मुसलमान साथ साथ तो कभी एक दूसरे के खिलाफ भी लडते रहे हैं। वर्तमान समय में हर प्रकार की साम्प्रदायिकता और आतंकवाद के खिलाफ प्रचार में, ये हिंदू-मुस्लिम हीरे मोती, नायक महानायक और वीरांगनायें, जनता के एकजुट संघर्ष में, हमारे लिये बहुत ही कारगर हथियार हैं। भारत की साझी संस्कृति, गंगा-जमुनी तहज़ीब और साझी विरासत को बचाने के लिये हमें इन चमकते सितारों और हीरे मोतियों का इस्तेमाल करना चाहिये और साम्प्रदायिक ताकतों के झूठे प्रचार का भंडाफोड़ करना चाहिए और माकूल जवाब देना चाहिए। यह आज का सबसे महत्वपूर्ण काम है।
वर्तमान में ये साम्प्रदायिक ताकतें हमारे मिले जुले और एकजुट समाज की एकता को झूठी बताकर, अफवाहें फैलाकर, तोडना और खंडित करना चाहती हैं कि हम लोग हिंदू मुस्लिम के नाम पर लडकर और कटकर मर खिर जायें और अपनी एकता खंड खंड कर दें। आज हमारे तमाम जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, वामपंथी पार्टियों और ताकतों की और लेखकों व कवियों और तमाम साहित्यकारों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि इन, फासीवादी, जनविरोधी, देशविरोधी और जनता और देश की दुश्मन ताकतों का मिलजुलकर विरोध करें और जनता को सही इतिहास से अवगत करायें। इसके लिए हम गोष्ठियों, सम्मेलनों, भाषणों और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन करके, जनता को शिक्षित, प्रशिक्षित और जागरूक कर सकते हैं।
यही वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है और इनका माकूल इस्तेमाल करके ही इन सांप्रदायिक ताकतों के मुस्लिम विरोधी, झूठे और फासीवादी व नफरत मरे अभियान का माकूल और कारगर जवाब दिया जा सकता है और मुकाबला किया जा सकता है और अपने तमाम यारों, दोस्तों, परिचितों, जानकारों और जनता को प्रबुद्ध बनाया जा सकता है। याद रखना कि प्रबुद्ध, जानकार, एकजुट और संघर्षरत जनता ही इन सांप्रदायिक, फासीवादी, जातिवादी और जनविरोधी ताकतों की, देश और समाज विरोधी मुहिम और नीतियों का मुकाबला कर सकती है और उन्हें परास्त कर सकती है और इन्हें सरकार और सत्ता से उखाड़ कर बाहर फेंक सकती है। ऐसी जागरूक जनता ही भारत के संविधान, जनतंत्र, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय की नीतियों की हिफाजत कर सकती है।