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बकरी पालन उन्नति का आधार:कृषि आधारित , नगद व्यवहार , जीरो मार्केटिंग

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GOATWALA FARM AND TRAINING INSTITUTE मध्य प्रदेश के धार जिले के एक छोटे से गाँव सुंद्रेल में स्थित है , जिसकीस्थापना वर्ष 2000 में संस्थान के संस्थापक श्री दीपक पाटीदार के द्वारा की गई है | श्री दीपक पाटीदार की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम सुंद्रेलमें ही हुई है उसके पश्चात वर्ष 2000 में कृषि महाविद्यालय इंदौर से B Sc. (AG) की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात वर्ष 2000 में केंद्रीयबकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह जिला उत्तर प्रदेश से व्यवसायिक बकरी पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया और 14 फरवरी वर्ष2000 को GOATWALA FARM की स्थापना करके बकरी पालन का कार्य प्रारंभ किया और इस व्यवसाय का सफल संचालन कियाजा रहा हूँ |


कृषक परिवार होने के कारण इनका शुरू से ही झुकाव कृषि आधारित व सहयोगी व्यवसायों में रहा | इन्होने बकरीपालन को एक नवीन उपक्रम , कृषि आधारित , नगद व्यवहार , जीरो मार्केटिंग को ध्यान में रखते हुए बकरी पालनव्यवसाय को चुना और आगे इसी बकरीपालन को ही अपना करियर बनाना सुनिश्चित किया |

राष्ट्रीय / राज्य पुरस्कार / अन्य पदभार :-
 वर्ष 2008 बकरी पंडित का पुरस्कार, केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान मखदूम मथुरा उत्तरप्रदेश |
 वर्ष 2011 भूमि निर्माण अवार्ड, इंदौर म प्र |
 वर्ष 2015 इनोवेटीव फार्मर अवार्ड, केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मखदूम मथुरा उत्तरप्रदेश |
 वर्ष 2016 प्रोग्रेसिव फार्मर अवार्ड, केन्द्रीय भेड़ एवं उन अनुसन्धान संस्थान अविकानगर राजस्थान |
 वर्ष 2023 इनोवेटीव फार्मर अवार्ड, केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मखदूम मथुरा उत्तरप्रदेश |
 वर्ष 2009 से जून 2019 तक श्री नानाजी देशमुख पशु चिकीत्सा विश्वविद्यालय जबलपुर मप्र के प्रमंडल के
सदस्य के पद पर पदस्थ |
 वर्तमान में भेड़ एवं बकरी की एक राष्ट्रीय संस्था Goat & Sheep Farmer welfare Association
(GSFWA – India ) के उपाध्यक्ष पद परपदस्थ |
 इसके अतिरिक्त कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारो, वर्कशॉप आदि में स्पीकर के तौर पर शामिल होकर
भाग लिया गया |
मेरे (दीपक पाटीदार) के बकरी पालन के अपने व्यक्तिगत अनुभव :-
एक वर्ष तक बकरी पालन करने के पश्चात मुझे कुछ ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा जो सामान्यतः प्रत्येक
बकरी पालक को करना पड़ती है | इन समस्याओं में खासकर बीमारी उसका ईलाज, दवईया, नस्ल और आहार आदि
सम्बंधित थी जिसकी जानकारी पहले के प्रशिक्षण में भी दी जा चुकी थी लेकिन 1 वर्ष के अनुभव के बाद उस

जानकारी को प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करने के बाद कुछ और बातें थी जो जानना बहुत आवश्यक थी इसके लिए
मुझे दोबारा प्रशिक्षण करने की आवश्यकता महसूस हुई और इसलिए मैंने एक वर्ष तक के बकरी पालन के सारे अच्छेबुरे अनुभवों को लेकर मैंने पुनः वर्ष 2001 में एक बार फिर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान से दोबारा व्यवसायिकबकरी पालन प्रशिक्षण लिया और मुझे इस एक वर्ष में बकरी पालन के दरमियान आने वाली काफी समस्याओं केकारण और उनके उपाय जानने के लिए केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के विषय विशेषज्ञ, साइंटिस्ट और हर उसआदमी से जो इन समस्याओं के बारे में मुझे वैज्ञानिक सलाह और प्रायोगिक सुझाव दे सकता था उनसे मैंने बातचीतकी और जानकारी प्राप्त कि और लगभग संस्थान के सभी साइंटिस्टो और कर्मचारियों ने मुझे पूरा सहयोग किया औरमेरी बकरी पालन से जुड़ी हुई प्रत्येक समस्या को हल करने का प्रयास किया |


मेरे कारण प्रशिक्षण की कक्षाओ के दौरान भी बहुत अच्छा प्रश्नोत्तरी का एक माहौल बना जिससे प्रशिक्षण में आए हुएअन्य प्रशिक्षणार्थियों को भी इसका लाभ हुआ क्योंकि उस प्रशिक्षण कार्यक्रम में सिर्फ में ही एक ऐसा प्रशिक्षणार्थी थाजिसके पास एक वर्ष का बकरी पालन का अनुभव था |
व्यवसायिक बकरी पालन के क्षेत्र में केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान द्वारा दिए गए प्रशिक्षण का बहुत अधिक महत्वहै और निश्चित ही मेरे इस व्यवसाय की सफलता में बकरी अनुसंधान संस्थान का भरपूर सहयोग रहा और मैं यहीकहना चाहता हूं कि किसी भी नए बकरी पालन को बिना प्रशिक्षण के बकरी पालन प्रारंभ नहीं करना चाहिए |
व्यवसाय का प्रारंभ 100 लोकल नस्ल की बकरियों की के साथ किया गया, व्यवसाय के प्रारंभिक समय में लगभग डेढ़ से दो वर्ष तककई परेशानियों का सामना करना पडा, और ऐसा लगने लगा की बकरियों को शेड के अंदर पालना संभव नही है इन्हें तंदुरुस्त रखनेऔर विकास के लिए इनका घुमाना आवश्यक है परन्तु धीरे धीरे समस्याओ का वैज्ञानिक समाधान निकाल कर, अच्छा प्रबंधन करइस बकरी से सम्बंधित केन्द्रीय संस्थानों CIRG & CSWRI से लगातार संपर्क करके कुछ बुनियादी परिवर्तन करके बकरी पालनलाभकारी साबित होने लगा | उसके पश्चात फार्म में कुछ बड़े परिवर्तन किये जैसे की लोकल नस्ल को हटाकर विभिन्न प्रजाति की
उन्नत भारतीय नस्ल की प्रजाति को रखकर एक प्रजनन फार्म बनाया, साथ ही फार्म उत्पादित बकरियों एवं बकरों को जीवित भार केआधार पर बेचने के लिए मार्केटिंग करके व्यवसाय लाभकारी साबित हुआ है |
वर्तमान में मेरे गोटवाला फार्म पर सिरोही , बरबरी , जमुनापारी , सोजत एवं बीटल नस्ल की 500 बकरिया एवम बच्चे है | बकरियोंएवम बच्चो को बेचने की प्रक्रिया जीवित भार के आधार पर है एवम 400 से 800 रु प्रति किलो भार के बीच में बिक्री की जा रही है |वर्ष 2008 में Goatwala farm की वैबसाइट बनाकर फार्म को इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया के साथ जोड़ने का प्रयास कियाऔर उसमे अच्छी सफलता प्राप्त हुई | इंटरनेट के माध्यम से पुरे देश और विदेशो से भी सिधे संपर्क जुड़ गया व तकनीक और ज्ञानका आदान प्रदान आसान हो गया | फार्म पर कई देशो के कृषक व प्रतिनिधि भ्रमण कर चुके है और इजराईल और अफ्रीका के
विश्वविध्यालयो प्रतिनिधि मण्डल द्वारा भ्रमण कर MOU भी किया जा चुका है |
वर्ष 2010 के बाद में इंटरनेट में शोशल मिडिया के एक नए युग का उदय हुआ इसी दौर में Goatwala farm द्वारा नए तरीके सेदुनिया से जुड़ने व छोटे – बड़े बकरी पालको के साथ जुड़ने की दिशा में प्रयास करते हुए FACEBOOK , WHATSAPP और TWITTER
पर कई ग्रुप बनाकर एक बड़ा तकनीकी और व्यापार का एक बड़ा प्लेट फार्म निर्मित किया | जिसमे आपस में सभी को लाभ हुआ औरव्यापार करना और मार्केटिंग करना आसान हो गया |

बकरियों का पालन करना कठिन अवश्य है और सतत श्रम का काम है, परन्तु बकरियों की अच्छी किमत प्राप्त करने के लिए उनकीमार्केटिंग बहुत अधिक आवश्यक है और यह काम शोशल मिडिया के कारण और आसान हो गया व व्यापार online करने में सुलभताहो गयी |
Goatwala farm दवारा वर्ष 2011 में एक हईटेक फार्म का निर्माण कर एक बकरी पालन प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना करआधुनिक उपकरण युक्त ट्रेनिंग रूम आदि का निर्माण कर एक दिवसीय / तिन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्रारम्भ किया | इनप्रशिक्षण कार्यक्रमों में पुरे देश और विदेश से प्रशिक्षनार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करने आते है, इन्ही प्रशिक्षनार्थियो द्वारा देश में कई बकरीफार्म सफलतापूर्वक संचालित हो रहे है |
शाशन की विभिन्न योजनायों और अन्य NGO के भ्रमण एवम प्रदर्शन कार्यक्रम के लिए भी Goatwala farm द्वारा एक दिवसीयप्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमे 25 से 50 कृषको / फार्मबकरी पालको को प्रशिक्षण व फार्म भ्रमण, वीडियो शो,आदि किया जाता है | बकरी पालन व ग्रामीण विकास व स्वरोजगार से जुडी शाशन की विभिन्न योजनाओ और गैर सरकारी संघटनो(NGO) की लगभग 50 से अधिक संस्थाओ का Goatwala farm के साथ मिलकर बकरी पालन के विकास की दिशा में काम किया जारहा है | Goatwala farm द्वारा कई कम्पनियों के CSR. फंड इकाई के अंतर्गत भी बकरी पालन के क्षेत्र के विकास की दिशा में फिल्ड
लेवल पर भी कार्य भी किया जा रहा है |
शासन की विभिन्न योजनाओ, NGO के हितग्राही, और व्यक्तिगत रूचि रखने वाले कृषक एवं सामान्य ग्रामीणों द्वारा Goatwalafarm का भ्रमण किया जाता है और बकरी पालन सम्बंधित जानकारी ली जाती है प्रत्तेक माह के दो कार्यकालिन दिवस की तारीख 15एवं 30 को फार्म का भ्रमण और परामर्श निशुल्क रहता है और अभी तक लगभग 25000 से अधिक व्यक्ति Goatwala farm काभ्रमण कर चुके है |
वर्ष 2021 में Goatwala farm द्वारा अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ले जाने के लिए प्रयास किया गया , इसके लिएGoatwala farm द्वारा रॉकेट स्किल्स जो अब वर्तमान में कृषि नेटवर्क का हिस्सा हो गई है के साथ एक MOU करके बकरी पालन का 42दिनों का बकरी पालन का प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है जिसमे विडियो के साथ साथ लाइव क्लास के माध्यम से किसानो औरबकरी पलको को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है और यह प्रशिक्षण बहुत ही न्यूनतम शुल्क में बकरी पालकों को उपलब्ध कराया जा रहा है,जिससे पूरे देश के बकरी पालक मोबाइल और कंप्यूटर के माध्यम से ऑनलाइन जुड़कर प्रशिक्षण भी ले रहे हैं और साथ में लाइव क्लासेज मेंसवाल-जवाब के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान भी प्राप्त कर रहे हैं वर्तमान में यह कोर्स बहुत ही अधिक पसंद किया जा रहा हैऔर अभी तक जिससे लगभग 5000 प्रशिक्षणार्थी जुड़ चुके है |
Goatwala farm अपने आप में एक integrated farming system का एक वैज्ञानिक और प्रेक्टिकल माडल है और अनूठी इकाई है जहांवैज्ञानिक प्रबंधन से बकरीपालन के साथ साथ डेयरी इकाई भी संचालित है जहां गायों के बैठने के लिए रबर मेट्स, गर्मियों के समय में फागर्सऔर दूध निकलने की सम्पूर्ण व्यवस्था ऑटोमेटिक मिल्किंग मशीन द्वारा की जाती है |गाय के गोबर और बकरी के मेगनी का उपयोग गोबर गैस संयंत्र में किया जाता है और इससे उत्पादित गैस का उपयोग फार्म पर रहने वालेलेबर द्वारा खाना बनाने में उपयोग किया जाता है और शेष बची हुई बायो गैस का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है | सिंचाई केलिए सोलर एनर्जी से चलने वाला 5 एचपी का पंप सेट लगाकर रिन्यूएबल एनर्जी का भरपूर उपयोग किया जाता है |

Goatwala farm पर उपयोग किए जाने वाला सारा वेस्ट पानी भी रीसायकल कर सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और पानी की एकभी बूंद वेस्ट नहीं होती है साथ ही बायो गैस से निकली हुई स्लरी का उपयोग एक स्लरी पम्प से उठाकर सीधे खेत में सिचाई के साथ खाद केरूप में उपयोग किया जाता है और वर्मीकम्पोस्ट में उपयोग किया जाता है |

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