-राकेश दुबे
आज बड़ी मुश्किल से उन लोगों को समझा पाया, जो मुझे श्री राजेन्द्र कोठारी का नजदीकी मानते हैं | उम्र के साथ कई फासले तो हैं ही, फिर भी हम दोनों यानि कोठारी जी और मैं, कई बार साथ- साथ होते हैं और लगभग समान सोचते हैं | सच में ,मैं पूछने वालों को मुश्किल से मुतमईन कर सका कि बीते परसों ४ जून को कोठारी जी का जन्मदिन नहीं था, फिर भी मेरे सहित सारे दोस्त उनके शतायु होने की कामना कर रहे थे | वैसे कोठारी जी दिसम्बर में ८० बरस के हो जायेंगे |४ जून को तो उन पर विशेष रूप से निकले “ राग भोपाली” नामक एक पत्रिका के अंक का विमोचन था, जिसे दोस्तों ने जश्न बना दिया |भोपाल के लोगों की आदत है, वे किसी की तारीफ भी करने में कंजूसी बरतते हैं या उनका नजरिया वन वे ट्राफिक की तरह एक तरफा होता है| श्री राजेन्द्र कोठारी ऐसे लोगों से अलहदा है, कोई माने या न माने,इस कार्यक्रम में मौजूद लोग मान गये |
कोठारी जी ने भोपाल की एक नई पहचान बताई, जिसने भोपाल की पेशानी पर पेबस्त “ जर्दा, पर्दा, गर्दा और — को झाडा ही साथ ही,उस बात को साफ कर दिया कि भोपाल की पहचान “ गंगा- जमुनी तहजीब” के दिन भी पूरे हो चुके हैं, भोपाल अब देश के नक्शे पर उभरता “औद्योगिक सितारा” है | जिसके इर्द-गिर्द कई बड़े उद्योग हैं, जिनकी पहुँच में दुनिया के कई देश हैं |
मूल रूप से इंदौर का होने के नाते कोठारी जी का स्वभाव हर बात के विश्लेष्ण का है| उनका विश्लेष्ण सटीक होता है, सामने भले कोई कुछ भी कहे, देर- सबेर लोग मानते हैं कि कोठारी जी उस दिन सही कह रहे थे | बहुत सी बातें,निचोड़ , और फ्लेश बेक वे साथ लिए होते हैं, जिनमें भोपाल की रानी कमलापति. दोस्त मोहम्मद खान, नवाब हमीदुल्ला, और बेगमों के बाद मध्यप्रदेश की अफसरशाही और वर्तमान सरकार तक होती है | मध्यप्रदेश की दुर्दशा और प्रशासनिक लेतलाली से वे खासे नाराज हैं और रहेंगे जब तक भोपाल और मध्यप्रदेश देश के उन्नत जिले के रूप में पहचाना न जाने लगे |
जिन दोस्तों ने कल कोठारी जी की बात से बाद में सहमति व्यक्त की उनके सन्दर्भ के लिए भोपाल की बात |भोपाल की स्थापना राजा भोज ने १०००-१०५५ ईस्वी में की थी। तब राज्य की राजधानी धार थी, जो अब मध्य प्रदेश का एक जिला है। शहर का पूर्व नाम ‘भोजपाल’ था जो भोज और पाल के संधि से बना था। परमार राजाओं के अस्त के बाद यह शहर कई बार लूट का शिकार बना। आज़ादी के पहले भोपाल हैदराबाद के बाद सबसे बड़ा राज्य था। सन् १८१९ ईस्वी से लेकर १९२६ ईस्वी तक भोपाल का राज चार बेगमों ने संभाला। अंतिम महिला शासक सुल्तान जहाँ बेगम बेगम थीं। बाद में उनके पुत्र हमीदुल्लाह ख़ान गद्दीनशीं हुए, जिन्होंने मई १९४९ तक भोपाल रियासत के विलीनीकरण तक शासन किया। अब चुनी हुई सरकारें आती –जाती है,पर मध्यप्रदेश का विकास पैमाने पर नीचे हैं|
कोठारी जी, एक मुख्यमंत्री का किस्सा भी चर्चा में सुनाते हैं, कैसे बिडला मध्यप्रदेश में पिलानी का इंजीनियरिंग संस्थान नहीं ला सके | उनका दर्द और उनकी पहचान में पिलानी का योगदान सबको दिखता है | मध्यप्रदेश के विकास के लिए उनकी चिंता जायज है | ख़ैर ! “राग भोपाली” ने अपने इस अंक लोकार्पण के बहाने से ६ माह पहले एक उत्सव की शरुआत कर दी है, कोठारी जी के जन्म दिन के पहले मध्यप्रदेश के माथे पर सजे ताज में कुछ और नए पंख दिखे इसकी कामना है |
इस लोकार्पण कार्यक्रम में भोपाल के हर क्षेत्र के नामचीन लोग शामिल थे, जिनसे लोकार्पण भव्य हो गया | “ राग भोपाली” के सम्पादक शैलेन्द्र शैली अंक संयोजन के लिए साधुवाद के पात्र हैं | सर्वधर्म सद्भाव जिस मानवता की पहली शर्त है, उसका जिक्र भी जरूरी है | भोपाल के चुनिन्दा लेकिन बेहतरीन संगठनो ने कोठारी जी का सम्मान कर एक अच्छी परम्परा की शुरुआत की है | वैसे सब जानते हैं, भोपाल उत्कृष्टता की सराहना में कंजूस है, और इससे ही पीछे है |
कोठारी जी,के निमित्त आयोजन संगीत और गायन के बगैर अधूरा रहता | पंडित जसराज के शिष्य नीरज पारिख और उनकी पत्नी अमी पारिख ने कल इसकी पूर्ति की | मेरे सहित दोस्तों को दिसम्बर के उस कार्यक्रम का इंतजार है, जब कोठारी जी ८० बरस के होंगे | बधाई का सिलसिला आज से ही |