अग्नि आलोक
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छलकती आंखो  से किसी  गम का हल नहीं  होगा

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सरल कुमार वर्मा

छलकती आंखो से किसी गम का हल नहीं होगा
पियोगे आंसुओ को तब सुनहरा कल कहीं होगा

नजर झुकाकर शर्माने को अदा समझ लो मगर
आंखो में आंखे डालकर छिनोगे हक तभी होगा

ये चेहरे का नुर ये नाजुक जिस्म तो ढल जायेगा
निखारेगी वक़्त की तपिश रोशन रुख तभी होगा

अश्क बहा ले जाते हो भले ही दरिया दर्द का लेकिन
पथरीले रास्ते जो छोड़ जाते हैं सही पथ वही होगा

गमो से डरकर बहाने सुख के जुटाओगे कब तलक
बना लो जो दर्द से रिश्ता न फिर गम कभी होगा

किसी के हसीन ख्वाबों में डूबना है उम्र का तकाजा
यकीन ये हो खुले जो आंख तो दामन तर नहीं होगा

कुछ गुमनाम से रिश्ते है दुनिया में कोई चेहरा नहीं है
पड़ेगा वक़्त तो उनका सहारा कम नहीं होगा

बड़े नजदीक है कुछ लोग अक्सर मिल बैठते हैं
उनके ख्वाबों की दुनिया है सभी कुछ सच नहीं होगा

“सरल” हो जिंदगी माशूक के तबस्सुम की तरह ये
किसी बदशकल तवायफ के बुढ़ापे का सच नहीं होगा
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,यूपी
9695164945

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