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अनीश मालपानी:चिप्स के पैकेट से बना दिए इको फ्रेंडली सनग्लासेस

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अमेरिका में 10 साल रहने के बाद अनीश मालपानी को ग्रीन कार्ड भी जारी होने वाला था लेकिन फिर उन्होंने भारत आकर कुछ अलग करने का तय किया। इसी जुनून में उन्होंने चिप्स के पैकेट को रिसाइकल करके सनग्लासेस तैयार किए हैं। जानिए पूरी कहानी-

पुणे: चिप्स के जिन पैकेट्स को आप कचरे में ऐसे ही फेंक देते हैं उससे ट्रेंडी और कूल सनग्लासेस बन रहे हैं। सुनने में जरूर अजीब लगेगा लेकिन यह सच है। पुणे में आशय नाम से एक सोशल एंटरप्राइज चलाने वाले अनीश मालपानी ने दो साल की रिसर्च के बाद ऐसे सनग्लासेस तैयार किए हैं जो चिप्स पैकेट यानी मल्टि लेयर प्लास्टिक को रिसाइकिल करके तैयार किए हैं। इसके जरिए अनीश न सिर्फ पर्यावरण को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक छोटी कोशिश कर रहे हैं बल्कि वह कूड़ा बीनने वालों की जिंदगी भी संवार रहे हैं। हमने अनीश से बात कर इसके पीछे की पूरी कहानी जानी, आगे पढ़िए इसके कुछ अंश-

पुणे में आशय नाम से सोशल स्टार्टअप चला रहे अनीश मालपानी बताते हैं कि इन मल्टिलेयर प्लास्टिक्स को रिसाइकल करने का अनुपात 1 फीसदी से भी कम लगभग जीरो परसेंट है। कोई भी इस काम को करना नहीं चाहता है। वह कहते हैं, ‘शुरुआत में हमें पता नहीं था कि चिप्स पैकेट से हम सनग्लासेस बनाएंगे। हम इस टेक्नॉलजी पर पिछले दो साल से काम कर रहे हैं। सिर्फ चिप्स पैकेट ही नहीं बल्कि दूसरी मल्टि लेयर प्लास्टिक जैसे चॉकलेट रैपर, ट्रेटापैक इन सबको हम रिसाइकल करते हैं। हमने एक ऐसी टेक्नॉलजी डिवेलप की जो इन पैकेट्स से मटीरियल निकालता है जिसकी रिसर्च पर हमें पता चला कि हम इससे सनग्लासेस भी बना सकते हैं।’

Anish Malpani success story

अनी श मालपानी डॉ. जितेंद्र सामदानी

पहले ही हफ्ते मिले 500 ऑर्डर

अनीश दावा करते हैं कि ये दुनिया के पहले ऐसे सनग्लासेस हैं जो चिप्स के पैकेट को रिसाइकल करके तैयार किए गए हैं। अनीश के ये सनग्लासेस मार्केट में इतने पसंद किए तो लॉन्चिंग के एक हफ्ते में ही उन्हें 500 सनग्लासेस के ऑर्डर मिल गए। वह कहते हैं, ‘हमें मालूम नहीं था कि ये बिकने वाले हैं और लोगों को पसंद आएंगे। पहले हफ्ते में ही इतने ऑर्डर मिले कि अभी भी हम इसे पूरा कर रहे हैं।’

अनीश चश्मे बनाने के साथ-साथ कूड़ा बीनने वाले वालों को भी कमाई का जरिया दे रहे हैं। अनीश बताते हैं, ‘भारत में करीब 10 से 40 लाख कूड़ा बीनने हैं जो बहुत गरीब जीवन बिताते हैं। जब हम एक प्रॉब्लम सॉल्व करने की कोशिश कर रहे हैं तो हमने इन इनफॉर्मल इकॉनमी को भी अपनी मुहिम में शामिल किया। अनीश की लैब में 6 वेस्टपिकर्स भी काम करते हैं। इसके अलावा वह चश्मे की बिक्री का 10 फीसदी भाग उनके बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘उनकी प्रगति, उन्हें गरीबी से निकालना और सम्मानित जीवन देना हमारे यह जरूरी है।’

WITHOUT सनग्लासेस के पीछे क्या है कहानी?

अनीश ने इन चश्मों WITHOUT सनग्लासेस के नाम से मार्केट में लॉन्च किया है। वह बताते हैं, ‘अगर मार्केट में नया प्रोडक्ट उतारना है तो नाम आकर्षक और अलग हटकर होना चाहिए। मेरे एक दोस्त ने इस नाम का सुझाव दिया तब मुझे लगा कि हां, वाकई यह काफी अलग है। हमारा आइडिया यह था कि जब लोग हमारे प्रोडक्ट खरीदें तो उन्हें यह यकीन दिलाना है कि आप इसे बिना किसी चिंता या दोष के खरीद सकते हैं। यह सबसे ज्यादा टिकाऊ प्रोडक्ट हैं और समाज और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।’

सनग्लासेस की खूबियों के बारे में अनीश बताते हैं कि ‘ये सनग्लासेस ड्यूरेबल है, आसानी से मुड़ जाते हैं। अगर इन पर गाड़ी भी चलाई जाए तो टूटेगे नहीं। इसके अलावा यूवी पोलराइज्ड है जो सन प्रोटेक्शन देता है। साथ ही साथ ट्रेंडी और फैशनेबल भी हैं।’ चश्मे के फ्रेम में एक बार कोड भी है जिसे स्कैन करने पर सनग्लासेस को प्रोसेसिंग से जुड़ी सारी जानकारी मिल जाएगी।

Anish Malpani success story 1

1 टन प्लास्टिक को रिसाइकल करने का उद्देश्य

अनीश का कहना है कि आशय फिलहाल इस तरह की तकनीक रखने वाली दुनिया की पहली कंपनी है। उनकी लैब में एक माइक्रो पायलट प्लांट भी है जो हर दिन 5 किलो मल्टि लेयर प्लास्टिक को रिसाइकल करता है। वह बताते हैं, ‘अभी हमारा सेटअप छोटा है। 1200 वर्ग फीट की छोटी सी लैब है। सब कुछ प्रोसेस करते हैं चिप्स पैकेट से लेकर सनग्लासेस तक। कुछ भी आउटसोर्स नहीं करते।’

वह कहते हैं, ‘सिर्फ पैसे बनाना मकसद नहीं है बल्कि हमें प्लास्टिक की समस्या को भी दूर करना है। ऐसे में सिर्फ 5 किलो प्लास्टिक को रिसाइकल करने से समस्या नहीं हल होगी। अभी 100 किलो या 1 टन ऐसी मात्रा में प्लास्टिक को रिसाइकल करना है। यह हमारा उद्देश्य है।’ अनीश मल्टिलेयर प्लास्टिक से फर्नीचर, लैम्प और कई तरह के पोस्टर पर भी काम कर रहे हैं।

‘स्टार्टअप के लिए भारत सबसे अनुकूल’

अनीश स्टार्टअप के लिए भारत को अनुकूल जगह मानते हैं। वह कहते हैं, ‘हम जब इस पर रिसर्च कर रहे थे तब मालूम था कि हमारा विकास बहुत धीमा होने वाला है। लेकिन एक पॉजिटिव एटिट्यूट था कि हमें ये करना है। भारत स्टार्टअप के लिए अच्छी जगह है। स्टार्टअप इंडिया सीड जैसी स्कीम हैं जिनसे मदद मिलती है। यही काम अगर मैंने किसी दूसरे देश में किया होता तो लागत 10 गुना अधिक होती लेकिन प्रोग्रेस की रफ्तार ऐसे ही रहने वाली थी।’

‘नौकरी, पैसा सब था फिर भी कुछ मिसिंग था’

अनीश मूल रूप से महाराष्ट्र के औरंगाबाद से हैं। 9 साल के बाद उनके पिता परिवार के साथ दुबई में बस गए। अनीश ने यूएस से फाइनेंस और स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में ग्रैजुएशन किया। फिर 5 साल फाइनेंस सेक्टर में ही नौकरी की। वह बताते हैं, ‘मैं पैसा बना रहा था , न्यूयार्क में रह रहा था। ग्रीन कार्ड भी मिलने वाला था लेकिन फिर भी कुछ मिसिंग था। मैं डिप्रेशन में था जबकि मेरे पास सबकुछ था। मैं कोई उद्देश्य ढूंढ रहा था।’

अनीश ने बताया, ‘मुझे इंडिया के बारे में सीखना था। मैं यहां की गरीबी पर कुछ करना चाहता हूं। आशय शुरू करने से पहले एक साल तक रिसर्च की, वॉलनटिअर के रूप में भी काम किया। वेस्ट मैनेजमेंट पर सीखा और फिर मैंने अपना स्टार्टअप शुरू किया। यहां मैंने जो कुछ भी पहले सीखा उसका अच्छा उपयोग किया।’

sunglass from chips packet success story

चिप्स के पैकेट से चश्मे बना दिए

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