अग्नि आलोक
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* बहु तुम्हें गोबर उठाने वाले हाथों से घिन आती है, पर गोबर उठाने वाली के बेटे से नहीं*

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लक्ष्मी कुमावत

शॉपिंग के बैग हाथ में लिए सुनंदा घर में घुसी ही थी कि देखा तो उसका सात महीने का बेटा प्रिंस उसकी सास सरला जी के हाथों में था और जोर जोर से रो रहा था। जबकि उसकी सास सरला जी उसे चुप कराती जा रही थीं और बीच-बीच में प्रिंस की केयरटेकर रोजी को डाँट भी रही थीं।

अचानक सुनंदा को सामने देखकर रोजी सुनंदा से बोली,

” देखिए मैम, अब हम यहां पर काम नहीं करेंगे। आपकी सास ने हमारी अच्छी खासी बेइज्जती करी है। आप किसी और को रख लीजिएगा”

” अरे! पर.. पर… हुआ. क्या”

” जो भी हुआ है, पूछ लीजिए अपनी सास से। अब हम यहां एक पल भी नहीं रुकेंगे”

सुनंदा सारे बैग्स एक तरफ रख कर रोजी को रोकती रही और रोजी उतनी ही तेजी से घर के बाहर निकल गई जैसे कोई चोरी की हो। यह देखकर सुनंदा को बहुत गुस्सा आया। गुस्से में आँखें लाल कर वो घर में घुसते हुए सरला जी से बोली,

” क्या किया आपने? आपको पता भी है कि केयरटेकर मिलना कितना मुश्किल होता है। खुद ने तो अपनी पूरी जिंदगी घर और बच्चों में बिता दी। पर मेरा सुखचैन आप से देखा नहीं जा रहा। गांव की गँवार हैं आप, और गँवार ही रहेंगी। कितनी बार कहा है आपसे कि जिन हाथों से आप गोबर उठाया करती थीं, उन हाथों से मेरे प्रिंस को छुआ मत कीजिए। पर फिर भी ….”

कहते-कहते सुनंदा सरला जी के पास गई और प्रिंस को जबरदस्ती इनकी गोदी से छीनने की कोशिश करने लगी। प्रिंस को परेशान देखकर सरला जी ने प्रिंस को अपनी गोद से हटाकर सुनंदा को उसे ले जाने दिया। पर अंदर से सरला जी की आत्मा चित्कार उठी। आंखों में से आंसू आ चुके थे।

उनकी गलती क्या थी? सिर्फ यह कि वह गांव की रहने वाली थीं। पति तो बहुत पहले ही छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे। एक ही बेटा था रमन। गांव में खेती बाड़ी कर अपने उस बेटे को बड़े प्यार से पाला था उन्होंने। बेटा पढ़ने में अच्छा था तो उसे शहर पढ़ने के लिए भी भेजा। हालांकि इसके लिए उन्होंने अपनी खेती की जमीन बेच दी। बस रहने के लिए छोटा सा घर और दो गाय थी उनके पास अब। जिनका दूध बेचकर वो अपना गुजारा कर लेती थी।

इधर रमन पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया और शहर में ही उसने सुनंदा से शादी कर ली, पर सरला जी तो फिर भी खुश थीं। शादी के बाद सुनंदा एक ही बार अपने ससुराल गई थी जब सरला जी ने कुलदेवी की पूजा के लिए उन्हें बुलाया था। सरला जी का गाय का गोबर उठाना, उनकी साफ सफाई करना सुनंदा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। मन ही मन वो सरला जी से घृणा करने लगी। मुश्किल से सुनंदा गांव में सिर्फ एक ही दिन रुकी।

उसके बाद सरला जी जब भी गांव से शहर आतीं, सुनंदा उन्हें रसोई में किसी चीज को हाथ भी नहीं लगाने देती। यहां तक कि जब प्रिंस हुआ तब भी सुनंदा सरला जी को प्रिंस से हमेशा दूर रखतीं। प्रिंस के लिए सुनंदा ने रोजी को केयरटेकर रख लिया पर कभी सरला जी को हाथ ना लगाने देतीं।

सरला जी कई बार प्रिंस को गोद में लेने के लिए तड़पतीं पर सुनंदा बवाल खड़ा कर देती। रमन ने एक दो बार कहा तो सुनंदा ने काफी हंगामा भी किया। बेटा बहू को लड़ते देखकर सरला जी ने खुद अपने मन को रोक लिया।

पर आज सुनंदा अपने बेटे को रोजी के हवाले छोड़ कर शॉपिंग गई हुई थीं। इधर रोजी अपने मोबाइल में लगी हुई थी। उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि प्रिंस खेलता खेलता सीढ़ियों की तरफ आ चुका है। और सीढ़ियां चढ़ने के चक्कर में तीन-चार सीढ़ियां ऊपर भी चढ़ चुका है। अचानक प्रिंस का पैर फिसला और वो नीचे गिर गया और जोर जोर से रोने लगा। उसका रोना सुनकर सरला जी खुद को रोक नहीं पाई।

वो प्रिंस को गोद में लेकर चुप कराने लगी साथ ही साथ रोजी को भी डांट रही थी। उसी समय सुनंदा आ गई और बिना किसी बात को जाने उसने तिल का ताड़ बना दिया। जिसका फायदा रोजी ने उठाया और चुपचाप घर से निकल गई। सुनंदा इतनी गुस्से में थी कि उसने एक बार भी यह नोटिस नहीं किया कि प्रिंस के सिर पर चोट लगी हुई है।

थोड़ी देर बाद रमन घर आया तो सुनंदा कमरे में से प्रिंस को लेकर बाहर निकल कर आई और आते ही सरला जी को चिल्लाते हुए बोली,

” लगा दी ना मेरे बेटे के सिर पर चोट”

अचानक सुनंदा को इस तरह चिल्लाते देखकर रमन हैरान रह गया,

” क्या हुआ सुनंदा? तुम चिल्ला क्यों रही हो और क्या हुआ प्रिंस को”

” मुझसे क्या पूछते हो अपनी मां से पूछो। देखो जरा प्रिंस के सिर पर कैसे स्वेलिंग आई हुई है? गिरा दिया तुम्हारी मां ने मेरे बेटे को। इन्हीं के कारण आज रोजी भी काम छोड़ कर चली गई। क्यों आती है यह मेरे बेटे के पास? आखिर क्या बिगाड़ा है मैंने इनका?”

सुनंदा ने रमन को प्रिंस की चोट दिखाते हुए कहा।

रमन ने सवालिया नजरों से सरला जी की तरफ देखा।

” बेटा तुम्हारे घर में कैमरे तो लगे हैं। खुद देख लो रोजी कितना अच्छे से ध्यान रखती थी इसका। पर उससे पहले बेटा मेरा गांव का टिकट करा दे। मेरे स्वाभिमान की बहुत धज्जियां उड़ चुकी हैं। बहू तुम्हें गाय का गोबर उठाने वाले हाथों से घिन आती है। तो एक काम करो दूध दही पनीर सब खाना बंद कर दो क्योंकि ये किसी मशीन से नहीं बनते। अगर मुझसे घिन आती है तो मेरे बेटे से भी घिन आनी चाहिए। आखिर इन्हीं हाथों ने पाल पोस कर इसे बड़ा किया है। 

कितनी आसानी से तुम कह देती हो कि दूर रहो मेरे बेटे से। अरे वो मेरा पोता भी है। उसे तुम अपने मां के घर से नहीं लाई थी तो उस पर कुछ तो मेरा भी हक होगा। पर कुछ कहने का फायदा नहीं। तुम तुम्हारे शहर में खुश रहो मैं अपने गांव में अपनी गायों के साथ खुश हूं। माना कि दोनों जानवर हैं, पर कम से कम मुझे अपना समझती तो हैं”

कहते हुए सरला जी ने हाथ जोड़ दिये और कमरे में जाकर अपना सामान बांधने लगीं। इधर रमन ने फुटेज चेक की तो पता चला गलती रोजी की थी। लेकिन सुनंदा से तो यह भी नहीं हुआ कि वह सरला जी से माफी मांग ले। रमन ने जरूर सरला जी को रोकने की कोशिश भी की, पर प्यार पर स्वाभिमान हावी हो चुका था।

✍️लक्ष्मी कुमावत

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