अग्नि आलोक
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*अलविदा का. अतुल अंजान!*

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*अतुल अंजान जिन्हें कम्युनिस्ट होने पर गर्व था*

*खांटी कम्युनिस्ट नेता थे का. अतुल कुमार अंजान*

*किसान आंदोलन में का. अतुल अंजान के योगदान को सदा याद रखा जाएगा*

डॉ सुनीलम

   जिंदगी में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ बहुत ज्यादा समय न बिताने के बावजूद भी आत्मीय रिश्ता कायम हो जाता है। मेरे लिए ऐसे ही अत्यंत आत्मीय थे का. अतुल कुमार अंजान। 

   वे जिंदादिल, मनमौजी, फक्कड़ और विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी क्रांति का सपना देखने वाले साथी थे।

   1982 के बाद जब मैं दिल्ली गया, तब युवा जनता के युवा नेता होने के चलते वामपंथी युवा संगठनों की बैठकों और साझा कार्यक्रमों में का.अतुल कुमार अंजन से मुलाकात होने लगी लेकिन मंदसौर गोली चालन के बाद गठित एआईकेएससीसी की बैठकों में मुलाकात ज्यादा बढ़ती चली गई।

   संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के दौरान का. अतुल अंजान की उपस्थिति बहुत सीमित हो गई थी लेकिन कोरोना काल के दौरान उनसे लगातार फोन पर बातचीत होती रहती थी। जब मुझे दूसरी बार कोरोना हुआ तथा हालत बिगड़ने के बाद एम्स जाने का विचार बना तब उन्होंने कहा कि दिल्ली आ जाओ पैसे की चिंता मत करना, मैं सब इंतजाम कर लूंगा।

   मैं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय में सक्रिय था। जब भी कामरेड से मुलाकात होती थी वे मेधा पाटकर जी के बंगाल में सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलन को लेकर उलाहना दिया करते थे। एक बार सीपीआई के संसदीय दल के कार्यालय में मेरी उनसे जबरदस्त बहस हो गई। उन्हें लगता था की जन आंदोलनकारियों ने वामपंथियों की 33 वर्षों की सरकारों को अपदस्थ करने में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें यह एहसास हो गया कि जन आंदोलनों के साथ वामपंथियों को नजदीकी रिश्ता बनाना होगा। 

   इस बीच  नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई। देश में भूमि अधिग्रहण को लेकर केंद्र सरकार अध्यादेश लाई । जन संगठनों ने सीपीआई के कार्यालय में ही भूमि अधिग्रहण आंदोलन के गठन का विचार बनाया था।

   हर बैठक में कामरेड अपनी बात बहुत मजबूती से रखते थे लेकिन साथियों के निर्णय को अपनी अलग राय होने के बावजूद भी सहर्ष  स्वीकार कर लेते थे। इसलिए उन्हें सभी दो टूक, बेबाक  राय रखने वाला  लेकिन समन्वयवादी साथी मानते थे।

    अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्होंने एक बार मुझे बुलाया। उसी दिन कन्हैया कुमार जेल से छूटे थे। मैंने अपने भाषण में कहा कि सीपीआई को कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के विस्तार के लिए देशभर में कार्यक्रम कराना चाहिए। वे मुझसे बहुत नाराज हो गए। उन्होंने मुझसे कहा कि आप कन्हैया कुमार को नहीं जानते। बाद में का. अतुल अंजान की आशंका सही निकली, कन्हैया कुमार सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए।

   एक बार हमने समाजवादी समागम के कार्यक्रमों में उन्हें बुलाया। जहां उन्होंने जेपी आंदोलन के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की, जिसका समाजवादियों ने विरोध किया। उन्होंने तुरंत बात सम्भाल ली।

   मुझे याद है कामरेड अतुल अंजान के साथ डॉ राम मनोहर लोहिया के जन्म शताब्दी वर्ष के बाद कम्युनिस्टों- सोशलिस्टों के एक साथ आने को लेकर चर्चा होते रहती थी। मधु लिमये जी ने कम्युनिस्टों- सोशलिस्टों की एकजुटता को लेकर जो विचार दिए थे, उसकी आवश्यकता को वे स्वीकारते थे। हमने जब समाजवादी समागम की सक्रियता बढ़ाई तब यह तय हुआ कि हम मधु लिमये जी के जन्म शताब्दी वर्ष में कम्युनिस्टों- सोशलिस्टों की एकजुटता को लेकर देशभर में छह बड़े साझा कार्यक्रम करेंगे। लेकिन कामरेड की लम्बी बिमारी के चलते यह संभव नहीं हो सका। लेकिन वे सदा समाजवादियों के करीब और नजदीक बने रहे। मैंने यह कई बार देखा कि नेताजी- मुलायम सिंह यादव उन्हें बहुत मानते थे तथा नेताजी के निधन तक दोनों के बीच आत्मीय रिश्ता बना रहा।

   मैं अतुल अंजान जी से मेयो अस्पताल में जब मिलने गया तब उन्होंने खूब बातचीत की। मैंने देखा कि वे अपने साथियों के प्रति कितना विश्वास रखते हैं । अस्पताल में रहते हुए भी पूरे देश दुनिया की जानकारी रखते थे। मैंने उनसे कहा कि कामरेड आपके बिना 14 मार्च 2024 को दिल्ली की किसान मजदूर महापंचायत कैसे होगी? तब उन्होंने बाकायदा देश के किसानों से  मेरे साथ वीडियो अपील तैयार की थी।  जो आज भी का. अतुल अंजान की धरोहर के रूप में मेरे पास है।

   मैं कामरेड की अंतेष्ठी में शामिल नहीं हो सका, इसका मुझे दुख है । मुझे लगा कि आज 4 मई 2024 को ग्वालियर और मुरैना में  होने वाले ‘संविधान बचाओ, देश बचाओ’ सम्मेलन में उन्हें श्रद्धांजलि देना तथा उनके विचार को  साथियों के साथ साझा करना ज्यादा बेहतर होगा।

   का. अतुल अंजान किसानों के मुद्दों की इतनी गहरी समझ रखते थे कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन में सदस्य के तौर पर शामिल किया गया था। वे बार-बार कहते थे कि स्वामीनाथन की रिपोर्ट असल में उन्हीं के द्वारा तैयार की गई थी। किसानी मुद्दों के जानकार होने के साथ-साथ वे अंतरराष्ट्रीय मामलों के भी जानकार थे। तथ्यात्मक जानकारी, गहरी समझ और शानदार विश्लेषण की क्षमता के कारण उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया में अपना स्थान बना लिया था। पत्रकार और दर्शक दोनों उन्हें बहुत पसंद करते थे।  वे वामपंथी विचार के चेहरे के तौर पर देश और दुनिया में जाने जाते थे।

अलविदा, कामरेड अतुल अंजान! 

आप बहुत याद आएंगे!

डॉ सुनीलम

पूर्व विधायक, सपा एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान संघर्ष समिति

8447715810

samajwadisunilam@gmail.com

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