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बिहार में सत्ता गवाने से सतर्क भाजपा?

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देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी व्यापक राजनीतिक पहुंच बनाने के बाद भाजपा अब गठबंधन को लेकर नई रणनीति पर काम करेगी। जिन राज्यों में पार्टी तेजी से बढ़ रही है, वहां बड़े क्षेत्रीय दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन को वरीयता देगी, ताकि उसका अपना विस्तार प्रभावित न हो। साथ ही वह गठबंधन में सहयोगी दल की राजनीतिक ताकत के बजाय सामाजिक समीकरण को ज्यादा ध्यान में रखेगी।

बीते कुछ सालों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से उसके सबसे पुराने साथियों के अलग होने से पार्टी में गठबंधन को लेकर नई सोच बन रही है। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्ता में आने के बाद भाजपा की व्यापक राष्ट्रीय पहुंच बनी है। दक्षिण के कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो देश के अधिकांश हिस्सों में वह सत्ता में भागीदार बन रही है।

ऐसे में भाजपा अपनी क्षमता को विस्तार देने में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के दबाव से बचना चाहती है। मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में पार्टी को उन राज्यों में अपने विस्तार में दिक्कत आती है। बाद में उन दलों के दबाव में छोटे भाई की भूमिका में काम करने से भी उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित होता है।पार्टी के एक प्रमुख नेता का कहना है कि चूंकि भाजपा अब देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, ऐसे में लोगों की अपेक्षाएं और उम्मीद उससे कहीं ज्यादा हैं।

छोटे दलों के साथ आने से ज्यादा लाभ
हाल के सालों में पार्टी ने महसूस किया है कि छोटे दलों के साथ गठबंधन से उसे ज्यादा लाभ मिला है। यह गठबंधन विभिन्न राज्यों के सामाजिक समीकरण को प्रभावित करते हैं, जिससे कि ज्यादा लाभ होता है। दूसरी तरफ बड़े दलों के साथ गठबंधन में पार्टी को न सिर्फ अपना बड़ा हिस्सा छोड़ना पड़ता है, बल्कि उनके साथ काम करने में खुद को ही पीछे रखना पड़ता है। इससे पार्टी न तो अपने एजेंडे को पूरी तरह लागू कर पाती है और न ही जनता से किए वादों को।

पार्टी का एक सोच यह भी है कि मौजूदा समय में गठबंधन राजनीति नब्बे व दो हजार के दशक की तरह ज्यादा प्रभावी नहीं रही हैं। ऐसे में पार्टी को अपनी राजनीतिक रणनीति भी बदलनी होगी। अलग-अलग राज्यों में वहां के दलों के साथ तालमेल को ज्यादा प्रमुखता दी जाएगी। इसमें वहां के सामाजिक समीकरणों का ज्यादा ध्यान रखा जाएगा।

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