भाजपा के ‘मिशन- 2024’ की रणनीति में उसका अपना विस्तार तो सबसे ऊपर है ही, विपक्षी खेमे को कमजोर करने में भी पार्टी जुटी हुई है। कहीं तो वह सीधे तौर पर खुद ही सेंध लगा रही हो कहीं विरोधी खेमे में मतभेदों का लाभ उठा रही है। यह स्थिति कई राज्यों में है। हाल में उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम और अब गुजरात में विरोधी खेमे में मची उथल-पुथल के राजनीतिक निहितार्थ अहम है।
हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के विरोधी खेमे में खलबली है। तमाम नेता अपने राजनीतिक भविष्य की तलाश में पाला बदल रहे हैं। उत्तर प्रदेश, असम, पंजाब और गुजरात की हलचल इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि विरोधी खेमे में भाजपा रणनीतिक ढंग से काम कर रही है, ताकि उनको कमजोर किया जा सके। कई जगह पर वह विपक्षी नेताओं को अपने साथ लाएगी तो कई जगह नए विरोधी गुट खड़े कर विपक्षी खेमे को नुकसान पहुंचाएगी।
सपा की कमजोरी से भाजपा को फायदा
उत्तर प्रदेश में सपा में उभर रहे मतभेद भाजपा को लाभ पहुंचाने वाले हैं। चाहे वह आजम खां की नाराजगी हो या शिवपाल यादव के बगावती तेवर। दोनों नेता भले ही भाजपा के साथ न आएं, लेकिन सपा को तो नुकसान पहुंचा ही सकते हैं।
पंजाब में भी मिल सकता है लाभ
इसी तरह पंजाब में सुनील जाखड़ का इस्तीफा भी कांग्रेस को और कमजोर करने वाला होगा। साथ ही भाजपा के लिए भी यह स्थिति बेहतर हो सकती है। असम में रिपुन बोरा का जाना भी कांग्रेस खेमे के लिए झटका और भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा कांग्रेस एवं अन्य विरोधी दलों को वहां पर ज्यादा झटका दे रही है, जहां विरोधी दल निकट भविष्य में मजबूत होने की स्थिति में हैं और भाजपा को बड़ी चुनौती दे सकते हैं। आने वाले दिनों में विरोधी दलों को और ज्यादा नुकसान हो सकता है।
2024 तक और मजबूत हो जाएगी भाजपा
दरअसल, देश में मौजूदा राजनीतिक माहौल में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव तक भाजपा और मजबूत होगी। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां आंकड़ों से ज्यादा केमिस्ट्री पर काम कर रही हैं। ऐसे में विभिन्न दलों में हाशिए पर पड़े नेता तो बेहतर भविष्य के लिए भाजपा की तरफ देख ही रहे हैं, महत्वाकांक्षी नेता भी भाजपा के करीब आ सकते हैं। ऐसे में विरोधी खेमे को और ज्यादा झटके लग सकते हैं।