अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*चतुरंग*

Share

जब अपने ही शतरंज का
खेल-खेलने लगते हैं तो
पराया भी अपने लगने लगते है।

जब हमदर्द ही दर्द
देने लग पड़ते हैं तो
बेदर्द भी हमदर्द लगने लगते हैं।

जब फूल भी चुभने लगते हैं तो
दर्द भरे कांटे भी
अपने लगने लगते हैं।

जब बिना कसूर के भी लोगों
नासूर जैसे चुबने लगे तो
कसूर भी अपने लगने लगते हैं।

जब मिठास भरे लोग भी
कड़वाहट उगलने लगते हैं तो
कटु वाणी भी मधुर स्वर लगने लगती हैं।

डॉ.राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश (युवा कवि लेखक)
(हिंदी अध्यापक)
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail.com

Add comment

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें