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भागी हुई बेटियों का पिता…!

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प्रिया

घर से भागी हुई बेटियों का पिता…
इस दुनिया का सबसे अधिक
टूटा हुआ व्यक्ति होता है.!!

पहले तो वो महीनों तक घर से निकलता ही नही
और फिर जब निकलता है तो
हमेशा सिर झुका कर चलता है,
आस पास के मुस्कुराते चेहरों को देख
उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हों,

जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात नहीं करता,
डरता है कहीं कोई उसकी भागी हुई
बेटी का नाम न ले ले,
जीवन भर डरा रहता है,
अंतिम सांस तक घुट घुट के जीता है,
और अंदर ही अंदर रोता रहता है।

जानते हैं भारतीय समाज अपनी बेटियों को
लेकर इतना संवेदन शील क्यों है,
भारतीय इतिहास में हर्षवर्धन के बाद तक
अर्थात सातवीं आठवीं शताब्दी तक
बसन्तोत्सव मनाए जाने के प्रमाण मौजूद हैं,

बसन्तोत्सव बसन्त के दिनों में एक महीने का उत्सव था जिसमें विवाह योग्य युवक युवतियाँ अपनी इच्छा से जीवनसाथी चुनती थीं और समाज उसे पूरी प्रतिष्ठा के साथ मान्यता देता था,

आश्चर्यजनक है ना आज उसी देश में कुछ गांवों की पंचायतें जो प्रेम करने पर कथित रूप से
मृत्यु दण्ड तक दे देती थी,
पता है क्यों?
इस क्यों का उत्तर भी उसी इतिहास में है,
वो ये कि भारत पर आक्रमण करने आया मोहम्मद बिन कासिम भारत से धन के साथ और क्या लूट कर ले गया
था जानते हैं,
सिंधु नरेश दाहिर की दो बेटियां…
उसके बाद से आज तक प्रत्येक आक्रमणकारी यही करता रहा है..
गोरी, गजनवी, तैमूर सबने एक साथ हजारों लाखों बेटियों का अपहरण किया,

प्रेम के लिए…? नहीं… बिल्कुल नही…
उन्होंने अपहरण किया सिर्फ और सिर्फ
बलात्कार व यौन दासी बनाने के लिए,

जबकि भारत ने किसी भी देश की बेटियों को नहीं लूटा, भारत की बेटियाँ सब से अधिक लूटी गई हैं,
कासिम से ले कर गोरी तक,
खिलजी से ले कर मुगलों तक,
अंग्रेजों से ले राँची के उस रकीबुल हसन
ने राष्ट्रीय निशानेबाज तारा सहदेव को,
आफताब ने श्रद्धा को,
सबने भारत की बेटियों को लूटा;

भारत का एक सामान्य पिता
अपनी बेटी के प्रेम से नहीं डरता,
वह डरता है अपनी बेटी के लूटे जाने से!

भागी हुई लड़कियों के समर्थन में खड़े होने वालों
का गैंग अपने हजार विमर्शों में एक बार भी इस मुद्दे पर बोलना नहीं चाहता कि भागने के साल भर बाद ही उसका कथित प्रेमी अपने दोस्तों से उसके साथ दुष्कर्म क्यों करवाता है,
उसे कोठे पर क्यों बेंच देता है
या उसे अरब देशों में लड़की सप्लाई करने
वालों के हाथ क्यों बेंच देता है,
आश्चर्य हो रहा है न,
पर सच्चाई यही है..!!

देश के हर रेडलाइट एरिया में
सड़ रही प्रत्येक बेटी जिहादियों द्वारा
प्रेम के नाम पर फँसा के यहां लाई जाती है,

उन बेटियों पर, उस “धूर्त प्रेम” पर
कभी कोई चर्चा नहीं होती,
उनके लिए कोई मानवाधिकार वादी,
कोई स्त्री वादी विमर्श नहीं छेड़ता।

यही एक पिता की आज्ञा ना मान कर
कसाई के साथ भागी हुई बेटियों का सच है,

प्रेम के नाम पर “पट” जाने वाली
मासूम बेटियां नहीं जानती कि वे अपने
व अपने पिता के लिए कैसा अथाह दुःख का
सागर खरीद रही हैं
जानता और समझता है तो बस
उनका बेबस निरीह पिता।

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