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महान क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी

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,मुनेश त्यागी

      वैसे तो भारत के पत्रकारिता इतिहास में बहुत सारे पत्रकार हुए हैं जिन्होंने अपने समय में पत्रकारिता के उच्च पायदान कायम किये, मगर उन सब में सबसे बड़ा नाम महान क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी का है जो हमेशा आजाद पत्रकारिता के महान स्तंभ बने रहे, क्रांति के प्रणेता बने रहे और साहित्य के माध्यम से क्रांति का, आजादी का, समता और समानता का प्रचार प्रसार करते रहे और सामंतों और अंग्रेजों के तमाम जुल्मों सितम और अत्याचारों का सामना करके अपने पत्र प्रताप का प्रकाशन करते रहे।

      पत्रकारों के पत्रकार महान क्रांतिकारी पत्रकार, गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्यतिथि 25 मार्च 1931, पर शत शत नमन वंदन, अभिनंदन और क्रांतिकारी सलाम। 23 मार्च 1931 को शहीदे आजम भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिए जाने के बाद कानपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। गांधी जी ने इन दंगों को शांत करने की जिम्मेदारी हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक और सांप्रदायिक सौहार्द के सबसे बड़े महारथी महान पत्रकार प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी को दी थी।

     जब कानपुर में दंगा हो रहा था तो दंगों को शांत करने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी अकेले ही साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए दंगाग्रस्त  क्षेत्र में चले गए और वहां दंगों को शांत करने के लिए लोगों से अपील करने लगे। मगर उनका सांप्रदायिक भीड़ से सामना हुआ, सवाल जवाब हुए, मगर सांप्रदायिक लोग उनकी बातों का जवाब नहीं दे सके और इन से रुष्ट होकर सांप्रदायिक तत्वों ने उनकी हत्या कर दी। मगर अपने विचारों में प्रतिबद्ध होने के कारण और सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे के चैंपियन गणेश शंकर विद्यार्थी मरे नहीं हैं। उनके विचार, उनके लेख, उनकी क्रांतिकारी पत्रकारिता और उनका कार्यक्रम हमारे बीच में है जो जनता की एकता, समानता, समता चाहते थे, जो सदियों पुराने शोषण, अन्याय, जुल्म और भेदभाव का खात्मा करना चाहते थे और एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे कि जिसमें हिंदू और मुसलमान और सारे धर्म के लोग मिलजुल कर रहे, भाईचारे से रहे, आपसी सहयोग और सांप्रदायिक सौहार्द से रहें।

    गणेश शंकर विद्यार्थी इन्हीं विचारों के लिए जिए और मरे। यह गणेश शंकर विद्यार्थी ही थे जिन्होंने अपने पत्र ,”प्रताप” के माध्यम से अंग्रेजों के जुल्मों का विरोध किया, उनके दमन का विरोध किया, और किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, नौजवानों, दबे कुचले, पीड़ितों, वंचितों, गरीबों के मसीहा बने। उन्होंने गरीब तबके के लोगों को वाणी प्रदान की, उन्हें आवाज दी, उन्हें बोलना सिखाया, लिखना सिखाया।

      यह गणेश शंकर विद्यार्थी ही थे जिन्होंने भगत सिंह को असली भगत सिंह बनाया। भगत सिंह को अपने पत्र प्रताप में लिखने का मौका दिया और यहीं पर प्रताप में सैंकड़ों क्रांतिकारी लेख लिखकर भगत सिंह एक बड़े लेखक बने, बौद्धिक क्रांतिकारी बने। भगत सिंह ने यहीं पर अपने विचारों का आदान प्रदान किया और अंग्रेजों के जुल्मों का विरोध किया, आजादी की मांग को जनता के सामने लाए, अंग्रेजों की गुलामी और दमन का भंडाफोड़ किया और जनता को क्रांतिकारी वाणी प्रदान की।

    गणेश शंकर विद्यार्थी का कार्यालय जैसे शहीद क्रांतिकारियों का घर हो। अधिकांश क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र कार्यालय में आकर ठहरते थे, रुकते थे, क्रांति की योजनाएं तैयार करते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने उन्हें ये सब सुविधाएं उपलब्ध कराईं और अपने पत्र को क्रांति का उदघोष बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी सांप्रदायिकता और जातिवाद का खुलकर विरोध करते थे। वे अपने समय के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष पत्रकार थे जिन्होंने अपने पत्र प्रताप में खुलकर कहा था कि किसी राज्य का कोई धर्म नहीं होना चाहिए और धर्म को राजनीति से अलग किया जाना चाहिए।

    उनका अखबार प्रताप सांप्रदायिक एकता का सबसे अच्छा नमूना था। इसी के जरिए वे हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते थे, सांप्रदायिकता के परखच्चे उड़ाते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने एक अखिल भारतीय संस्था का निर्माण किया था जिसमें जातिवाद और सांप्रदायिकता का विरोध करने की बात कही गई थी, जनता के जनवादी अधिकार दिलाने की मांग की गई थी और भारत की गुलामी का जोरदार विरोध किया गया था।

     अपने इन विचारों के कारण गणेश शंकर विद्यार्थी अंग्रेजों की आंखों में कांटे की तरह चुभते थे। अंग्रेजों ने उनके पत्र प्रताप को कई बार जप्त किया, उस पर बंदिशें लगाई गईं, उस पर तमाम तरह के अंकुश लगाने की कोशिशें की गईं, मगर यह गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवटता और प्रतिबद्धता का कमाल था कि वह बार-बार जुर्माने भरते रहे, पत्र की जब्ती सहते रहे, मगर उन्होंने अपने “जनता के पत्र प्रताप” को कभी बंद होने नहीं दिया और उसे जनता की आवाज और आजादी का वाहक ही बना कर रखा।

     गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारों के पितामह  थे, एक महान पत्रकार थे। अगर किसी को सच्ची पत्रकारिता करनी है और सीखनी है तो वे गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र का अध्ययन करें, उसका जज्बा देखें, उसके तेवर देखें और पत्रकारिता के पेशे में आएं। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने पत्र को कभी भी मुनाफे का अड्डा नहीं बनाया।

     उन्होंने अपने पत्र में जनता की बात की, शोषण, जुल्म, अन्याय, गैरबराबरी का विरोध किया और अपने पत्र प्रताप के माध्यम से एक ऐसे समाज की कल्पना की कि जिसमें सब को रोटी मिले, सबको रोजी मिले, सबको शिक्षा मिले, सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए, सब को रोजगार मिले, पूरे समाज को सच्ची आजादी मिले, भूमि पर जोतने वाले को अधिकार मिले। चारों ओर समता, समानता, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, जनवाद, गणतंत्र और समाजवाद का साम्राज्य कायम हो। ये सब मांगें महान क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने पत्र प्रताप के माध्यम से उठायी थीं।

    गणेश शंकर विद्यार्थी आज के पत्रकारों की तरह गोदी पत्रकार नहीं थे। उन्होंने अपने पत्र को कभी भी मुनाफाखोरी का अड्डा नहीं बनाया बल्कि वह सदैव जनता के अधिकारों के लिए लिखते रहे लड़ते रहे और अपने पत्र को “जनता की वाणी” बनाए रखा। उन्होंने कभी भी जमीदारों की या अंग्रेजों की सहायता नही ली। वे हमेशा अंग्रेजों की गुलामी की, जमीदारी प्रथा की खिलाफत में लिखते रहे और अपने पत्र को आजादी का दीवाना और  पत्रकारिता का प्रकाश स्तंभ बनाए रखा।

       हमारे देश और समाज को आज भी हजारों गणेश शंकर विद्यार्थिओं की जरूरत है जो समाज को, सत्ता को, असली आइना दिखा सकें और उनके पंजों का शिकार न बने, उनके शोषण में शामिल ना हों, जो अपने पत्र को वैज्ञानिक विचारों का वाहक बनाए, जो समता समानता आजादी क्रांति और समाजवाद का प्रचार प्रसार करे, जो हिंदू मुस्लिम एकता की वकालत करे, जो पूरी जनता को वैज्ञानिक संस्कृति का वाहक बनाएं, उसे ज्ञानवान, विवेकवान और धर्मनिरपेक्ष बनाएं।

    गणेश शंकर विद्यार्थी हमेशा ही क्रांति के समर्थक और अहिंसा के पुजारी बन रहे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शोषितों और गरीबों के मसीहा बने रहे।वे कलम के निर्भीक योद्धा बने रहे। वे कभी भी अत्याचार के सामने नहीं झुके। वे एक महान राजनेता और प्रख्यात पत्रकार और महान त्यागी थे। वे अपनी पत्रकारिता में हमेशा अडिग और नितांत स्पष्टवादी बने रहे। वे स्वतंत्र पत्रकारिता के हामी ही बने रहे। वे मजदूरों के राज्य के प्रबल समर्थक थे और वे अपने पत्र के माध्यम से बोल्सेविक साहित्य का प्रचार प्रसार करते रहे। सच में गणेश शंकर विद्यार्थी एक दृढ़ प्रतिज्ञ और निर्भीक पत्रकार थे। उनका भारत के पत्रकारिता के इतिहास में कोई सानी नहीं है।

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