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संदेहास्पद है: सूरत से भाजपा सांसद का निर्विरोध चुना जाना  

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सुसंस्कृति परिहार 

चुनाव चाहे वो पंचायत से लेकर लोकसभा का हो, प्रत्याशी जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। लाखों-करोड़ों रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता है, फिर भी कुछ लोग चुनाव नहीं जीत पाते हैं। हर किसी की किस्मत सूरत के मुकेश कुमार दलाल जैसी नहीं होती कि पर्चा भरा नहीं और बिना लड़े ही चुनाव जीत गए।बताया जा रहा है कि सूरत लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी मुकेश कुमार दलाल के सामने चुनौती दे रहे तमाम प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस ले लिया इससे मुकेश कुमार निर्विरोध चुनाव जीत गए हैं।यह ऊपरी तौर पर ही गहरी साज़िश ही मुमकिन लगता है।

देश में आमचुनाव 2024 की प्रक्रिया सतत चल रही है किंतु शातिर लोग अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहे हैं।बात सूरत की ही है जहां चुनाव परिणाम तिथि आने से पहले ही चुनाव अधिकारी ने जल्दबाजी दिखाते हुए भाजपा प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र  जारी कर दिया।जय हो गुजरात माडल की जहां  नियम कानूनों की सरे आम धज्जियां उड़ाई जाती रही हैं।इस घोषणा के पीछे भाजपा का पूरी तरह हाथ है जिससे यह बताया जा सके कि दमदार भाजपा के आगे किसी की खड़े होने की ताकत नहीं। यह देश भर में गोदी मीडिया ने प्रचारित भी खूब किया किंतु इससे उनके पक्ष में माहौल बनने की बात तो दूर ,देश की जनता और नेता समझ गए कि चार सौ पार के लिए गुजरात प्रयोगशाला ने यह नया प्रयोग किया है ऐसे  अभी कई मामले सामने आऐंगे।इससे यह भी साफ हुआ है कि गुजरात के निर्वाचन अधिकारी अभी भी चुनाव आयोग के निर्देश को मज़ाक समझ रहे हैं।

एक ऐसी ही कोशिश खजुराहो संसदीय क्षेत्र में भी निर्वाचन अधिकारी ने की थी उसने सपा प्रत्याशी के आवेदन को देखा परखा और जमा कर लिया उसने उम्मीदवार के हस्ताक्षर भी नहीं देखे बाद में फार्म निरस्त कर दिया बाकी प्रत्याशियों को खरीदने की कोशिश हुई किंतु वे नाकाम हो गए। अब इंडिया गठबंधन के फारवर्ड ब्लाक के साथी यहां चुनाव लड़ेंगे।दोनों जगह इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को हटाने की नई साज़िश का खुलासा हुआ है। कहीं कोई इंडिया गठबंधन का साथी निर्विरोध नहीं आया मतलब साफ़ है यह चुनाव जीतने का नया हथकंडा है।

सूरत के चुनाव अधिकारी का कहना है कि कांग्रेस उम्मीदवार निलेश कुंभानी के नामांकन पत्र के

 प्रस्ताव में  मौजूद हस्ताक्षर में प्रथम दृश्या विसंगति होने के बाद और पार्टी के वैकल्पिक उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल करने वाले सुरेश पडसालाश का नामांकन की रद्द कर दिया गया एक एजेंसी का कहना है की निलेश के चार प्रस्तावकों में तीन के हस्ताक्षर नकली हैं  यह बात उनके प्रस्तावकों बहनोई, भतीजे और बिजनेस मेन मित्र ने अपने हलफनामे में कही। नीलेश को एक दिन  का समय भी दिया गया लेकिन वे प्रस्तावक नहीं ला पाए। लगता है कि वे एक बड़े गिरोह के जाल में फंस गए क्योंकि अन्य दलों के आठ लोगों ने भी नाम वापस ले लिए।

 हालांकि यह नई बात नहीं है,निर्वाचन आयोग ने जब 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की घोषणा की थी, तो उसके दो हफ्ते बाद ही अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के लिए 10 भाजपा उम्मीदवार चुनावों से पहले ही निर्विरोध चुन लिए गए। इनमें मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं। विदित हो,इससे पहले खांडू 2014 के अरुणाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी निर्विरोध चुने गए थे।

अब ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस और सपा के प्रत्याशियों ने ही जानबूझकर त्रुटियां की है और भाजपा को मजबूत करने साथ हुए हैं यह सब कपोल कल्पित कहानियां है सच तो यह है कि ये दोनों निर्वाचन अधिकारी भाजपा के दबाव में ‌हैं। अरुणाचल विधानसभा चुनाव में निर्विरोध विधायक चुनाव जीतने वाले 10 विधायक भाजपा के ही हैं। भाजपा की तासीर देखते हुए वहां भी किसी खेला की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। भाजपा की ऐसी लोकप्रियता तो कहीं नज़र नहीं आ रही।आगे बहुत सावधानी उम्मीदवारों को रखनी होगी।

 बहरहाल, निर्वाचन  अधिकारियों की गतिविधियां संदेह के घेरे में है चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए तथा सूरत के अधिकारी को जिसने आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए प्रमाण पत्र जारी कर दिया दंडित किया जाना चाहिए। अरुणाचल में जीते विधायकों को इसी वजह से अब तक प्रमाणपत्र नहीं मिले हैं।

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